देश के अलग-अलग हिस्सों में पैदा हो रहे विरोध प्रदर्शनों को देखकर ऐसा लगता है कि, चीन मानो कोई एक देश न होकर जबरदस्ती कब्ज़े में लिए गए कई देशों का समूह है। दरअसल, अब तिब्बत और शिंजियांग के बाद चीन के उत्तर में स्थित “Inner Mongolia” में भी विरोध की आवाजें उठनी शुरू हो चुकी है। लोग स्कूलों में चीनी भाषा के थोपे जाने का विरोध कर रहे हैं। दुनियाभर में बढ़ रही चीन विरोधी लहर के बीच Inner Mongolia के शोषित लोगों को भी अब उम्मीद की किरण नज़र आने लगी है।
हालिया मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक Inner Mongolia के लोग चीनी सरकार से इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि सरकार ने सुनियोजित तरीके से Mongolian पढ़ा रहे स्कूलों का सफाया करने की तैयारी कर ली है। इस कारण Inner Mongolia के उत्तरी इलाकों में छात्र और अभिभावक ज़ोर-शोर से चीनी सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। ऐसे में Inner Mongolia में स्वतन्त्रता प्राप्त करने की मांग भी तेजी पकड़ सकती है।
Radio Free Asia की एक रिपोर्ट के मुताबिक Inner Mongolia के कई शहरों जैसे Tongliao, Ordos और राजधानी Hohhot में छात्र प्रदर्शन देखे जा रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने ऊंची जगह से छलांग लगाकर जान भी दे दी क्योंकि उसकी माँ को चीनी प्रशासन द्वारा एक स्कूल के बाहर गिरफ्तार कर लिया गया था।
अब Inner Mongolia के लोग स्कूलों का बहिष्कार करने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि, वे अपने बच्चों को घर में ही रखेंगे। उनके मुताबिक CCP उनकी संस्कृति और भाषा को हमेशा के लिए मिटाना चाहती है और ऐसे में उसकी रक्षा के लिए वे अपने बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजेंगे। Mongolia में मानवाधिकारों पर नज़र रखने वाले अमेरिकी एक्सपर्ट Enghebatu Togochog के मुताबिक, “पिछले 70 सालों में Mongolia के लोगों को नरसंहार, राजनीतिक दमन, आर्थिक शोषण और सांस्कृतिक हमले झेलने पड़े हैं। चीन के 70 सालों के दमनकारी शासन के बाद अब Mongolia की संस्कृति से जुड़ी वहाँ केवल भाषा रह गयी है, अब उसे भी CCP हमेशा के लिए खत्म करना चाहती है।” माना जाता है कि, चीन में वर्ष 1966 से लेकर वर्ष 1976 तक चले Cultural revolution के दौरान Inner Mongolia में करीब 2 लाख छात्रों को जान से मारा गया था।
Mongolia में चीन उसी प्रकार की दमनकारी नीति अपना रहा है, जो वह अक्सर तिब्बत और शिंजियांग जैसे इलाकों में अपनाता रहा है। चीन अपने देश के अल्पसंख्यक समुदायों पर जमकर अत्याचार करता है। अगर वहाँ ज़रा भी विरोध देखने को मिलता है, तो चीनी सरकार नरसंहार करने से भी पीछे नहीं हटती है। तिब्बत में Buddhist Monks की सामूहिक हत्या और शिंजियांग प्रांत में तथाकथित “Concentration Camps” इसी बात का सबूत है।
इनर मंगोलिया, Mongolia देश के दक्षिण में पड़ता है। दोनों क्षेत्रों की संस्कृति शुरू से ही एक जैसी रही है। यह समुदाय चीनी लोगों से एकदम अलग रहा है। Mongolia और पूर्वकालिक चीनी राजाओं के बीच लड़ाई का ही परिणाम है कि आज Inner Mongolia चीन का हिस्सा है। वर्ष 1911 में Mongolia तो चीन से अलग हो गया, लेकिन क्षेत्रीय राजा की इच्छा के मुताबिक Inner Mongolia चीन का हिस्सा बन गया। इस बीच बेहद ही कम समय के लिए (9 सितंबर 1945 से लेकर 6 नवंबर 1945 तक) Inner Mongolia एक स्वतंत्र देश की तरह रहा, लेकिन उसके बाद ही CCP द्वारा इस पर कब्जा कर लिया गया।
Inner Mongolia पिछले 70 सालों से चीन के दमनकारी कब्ज़े में जी रहा है। लेकिन, अब यहाँ Mandarin भाषा के थोपे जाने के विरोध में बड़े आंदोलन से जन्म ले लिया है। चीनी सरकार के इस कदम ने Inner Mongolia के शोषित लोगों के सब्र का बांध तोड़ दिया है। उनके लिए यह “करो या मरो” की स्थिति बन गयी है। अगर वे अब खड़े नहीं हुए तो CCP हमेशा के लिए उनकी संस्कृति को उजाड़ देगी।