चीन के लिए हमेशा मुसीबत बने रहे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे अपने पद से इस्तीफा देकर जाने से पूर्व भी चीन के लिए नई चिंताएं खड़ी कर रहे हैं। उन्होंने यह तय कर दिया है कि उनके बाद जो भी प्रधानमंत्री बने वह चीन के प्रति और भी अधिक आक्रामक नीति पर कार्य करे एवं जापान की सुरक्षा को और मजबूत बनाए।
लंबे समय तक जापान ने मिलिट्री के लिए मिसाइल टेक्नोलॉजी का विकास नहीं किया। उसका अमेरिका के साथ समझौता उसके सुरक्षा की गारंटी थी। किंतु अब जापान और चीन का तनाव चरम पर पहुंच गया है ऐसे में जापान के प्रधानमंत्री आबे कोई भी विषय किसी अन्य के भरोसे नहीं छोड़ना चाहते।
उन्होंने फैसला किया है कि जापान शत्रु देशों की बैलेस्टिक मिसाइल से बचने के लिए अपने मिसाइल प्लान पर काम करेगा। इसके तहत बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में मार गिराने के साथ ही शत्रु देश पर मिसाइल हमले की क्षमता का विकास किया जाएगा। जापान अमेरिका की मदद से मिसाइल क्षमताओं का विकास करेगा।
अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा “मुझे लगता है कि रक्षात्मक क्षमता का विकास आवश्यक है और उसके द्वारा भविष्य में जापान पर बैलेस्टिक मिसाइल या अन्य किसी प्रकार के आक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है।” अगले सप्ताह तक यह तय हो जाएगा कि जापान का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। ऐसे में आबे आने वाले प्रधानमंत्री के लिए इस ओर ध्यान देने का निर्देश छोड़कर जा रहे हैं, जिससे वह सबसे पहले इस समस्या के समाधान हेतु कार्य करे।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आबे ने अपने बयान में बताया है कि जापान इस साल के अंत तक अपनी मिसाइल डिफेंस प्लान बना लेगा, अर्थात इसपर कार्य पहले से ही हो रहा था, अगले प्रधानमंत्री को केवल इसे अंतिम रूप देना होगा।
टोक्यो के Takushoka विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर और रक्षा मामलों के जानकार Hideshi Takesada ने AFP को बताया कि ” मिसाइल डिफेंस उन कुछ महत्वपूर्ण विषयों में एक है जिसे प्रधानमंत्री आबे सुलझा नहीं सके थे।” उन्होंने आगे बताया “आबे का इरादा मिसाइल डिफेंस की ओर आने वाली सरकार को निर्देशित करने और अपनी विरासत देने का है।”
महत्वपूर्ण यह है कि आबे के शासन के दौरान ही जापान में रक्षा विशेषज्ञों और अधिकारियों के बीच यह विचार लोकप्रिय हुआ है कि जापान को अपनी सुरक्षा हेतु आवश्यकता होने पर पहले पहल करते हुए, शत्रु देश पर मिसाइल हमला करने की शक्ति भी विकसित करनी चाहिए। आबे ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि आने वाले समय में भी जापान की सामरिक नीति नहीं बदलने वाली।
ऐसे में जापान द्वारा यदि इसी नीति का अनुसरण किया गया तो यह भूराजनैतिक समीकरण के लिहाज से महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अब तक जापान ने अपनी सेना की मारक क्षमताओं के विकास पर ध्यान नहीं दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि जापान की पारंपरिक सामरिक नीति Yoshida Doctrine पर निर्धारित थी, जिसके अनुसार जापान की सुरक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका ने ले रखी थी।
इसी वर्ष जून महीने में अमेरिका द्वारा जापान में Aegis ashore missile defense system लगाने की योजना को जापान ने खारिज कर दिया। जापान के रक्षा विशेषज्ञ ऐसा होने के दो मुख्य कारण मानते हैं, पहला की यह बहुत महंगा सिस्टम है और दूसरा जापान सरकार यह तय नहीं कर सकती थी कि हमले की स्थिति में, कहाँ-कहाँ मिसाइल अटैक हो सकता है।
इसी कारण जापान के रक्षा मंत्री ने बयान दिया था कि “इसकी तैनाती रोकने का एकमात्र कारण था कि हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते कि हमले कहाँ होंगे।” यही कारण था कि जापान में अपना मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करने और खुद हमले की क्षमता पैदा करने का विचार लोकप्रिय हुआ है। यह अपेक्षाकृत सस्ता भी होगा और स्वयं हमले की क्षमता विकसित कर लेने से स्वयं पर हमले की संभावना भी कम हो जाएगी।
जापान हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और स्वतंत्र नाविक आवागमन के लिए प्रतिबद्ध है। वास्तव में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को एकसाथ देखने और उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करने का विचार सर्वप्रथम शिंजो आबे ने ही दिया था। जापान की सक्रियता के कारण ही भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान ने साथ मिलकर QUAD का निर्माण किया। अब जब इस क्षेत्र में टकराव बढ़ रहा है तो जापान अपनी सुरक्षा को दूसरे के भरोसे नहीं छोड़ सकता। यही कारण है कि जापान एक अधिक रक्षात्मक नीति के साथ सामने आया है।
इतिहास बताता है कि जापान द्वारा आक्रामक नीति हमेशा ही चीन के विनाश का कारण बनी है। ऐसे में जापान के रुख में परिवर्तन चीन के लिए सबसे बड़ा खतरा है।