यह सभी जानते हैं कि, भारत और जापान के रिश्ते कितने मज़बूत हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर दोनों देशों की चिंताएं समान है और चीन के विरुद्ध दोनों एक दूसरे का सहयोग भी कर रहे हैं। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ताना संबंध भी रहे हैं। लेकिन इन सब के बावजूद यह देखा गया था कि जापान की कंपनियां भारत के बजाय पूर्वी एशिया के आसियान देशों जैसे, वियतनाम आदि का रुख कर रही थीं। पर अब जापान की सरकार ने यह फैसला किया है कि, वह उन जापानी कंपनियों को आर्थिक मदद देगी जो अपनी मनुफैक्चुरिंग यूनिट्स को भारत या बांग्लादेश में शिफ्ट करेंगे। जापान ने ऐसा कदम इसलिए उठाया है क्योंकि वह अपने सप्लाई चेन का विकेंद्रीकरण करना चाहता है।
इन कंपनियों को कितनी आर्थिक मदद दी जाएगी अभी यह तय नहीं हुआ है। लेकिन जापान का निवेश मूल रूप से मेडिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में होगा। एक मीडिया रिपोर्ट बताती है कि, 3 सितंबर के बाद जिन भी कंपनियों ने अपनी विनिर्माण इकाई को चीन से बाहर शिफ्ट करने के लिए सब्सिडी का आवेदन किया था, उनको जापान की सरकार ने भारत या बांग्लादेश में से किसी एक को चुनने का सुझाव दिया है।
गौरतलब है कि, कोरोनावायरस के फैलाव के बाद जापान पहला देश था जिसने अपनी आर्थिक इकाइयों को चीन से बाहर शिफ्ट करने के लिए कंपनियों को सब्सिडी देना शुरू किया था। जापान ने अपनी कंपनियों को 2.2 billion-dollar की सब्सिडी दी थी। हांगकांग का मुद्दा हो या WHO में चीन का प्रभाव, जापान ने हर जगह मुखरता से चीन का विरोध किया। इतना ही नहीं दोनों देशों की सेनाओं में सेनकाकू द्वीप को लेकर भी तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था।
बहरहाल, हमने एक लेख के माध्यम से यह बताया था कि, कैसे भारत की राज्य सरकारों के बुरे व्यवहार के कारण जापान की कंपनियों का भारत में तजुर्बा अच्छा नहीं रहा है। अहमदाबाद से मुंबई तक चलने वाली बुलेट ट्रेन को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने जो अड़चने पैदा की और आंध्र प्रदेश में जापानी कंपनियों के साथ जो दुर्व्यवहार किया गया उन सब का नतीजा यही हुआ कि, वो कंपनियां भारत में व्यापार करने से बचने लगीं। इतना ही नहीं CAA विरोधी आंदोलन के चलते जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अपना भारत दौरा भी रद्द करना पड़ा था।
पर इन सबके बाद भी जापान के प्रयास से भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच सप्लाई चेन को लेकर महत्वपूर्ण समझौते होने वाले हैं। यह बताता है कि, जापानी सरकार भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने जापान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को केवल सामरिक हितों पर एकजुट नहीं किया है बल्कि आपसी सहयोग और आर्थिक मोर्चे अपनी गति भी बढ़ाई है।
यह पूर्णतः प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के कुशल नेतृत्व का नतीजा है। गौरतलब है कि, यदि जापानी कंपनियां भारत में निवेश करती हैं तो भारत को पूंजी के साथ ही उच्च गुणवत्ता की तकनीक भी हासिल होगी। इसका लाभ मेक इन इंडिया तथा आत्मनिर्भर भारत जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं में भी मिलेगा।