देश में हमेशा से कम्युनिस्टों के रवैए के कारण रोजगार की स्थिति बिगड़ती रही है। उनकी मांगों और विरोध प्रदर्शन के चलते कंपनियों ने अपना काम या तो बंद कर दिया या समेट कर कही और स्थानांतरित कर लिया। कुछ ऐसा ही अब केरल में पेप्सिको की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के साथ हुआ है और कंपनी ने ऐलान कर दिया है कि केरल में कंपनी मैन्युफैक्चरिंग नहीं करेगी। रोजगार की जरूरत के बावजूद कम्युनिस्टों से परेशान होकर कंपनी का काम बंद करना ये दिखाता है कि ये लोग अपनी राजनीति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
बंदी का ऐलान
दरअसल देश की उच्च स्तरीय सॉफ्ट ड्रिंक निर्माता कंपनी पेप्सिको इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने ऐलान किया कि केरल में कंपनी मैन्युफैक्चरिंग नहीं करेगी। कोझिकोड के पलक्कड़ में पेप्सिको के फ्रैंचाइजी वरुण वेबरेजज़ के बॉटलिंग प्लांट ने मंगलवार को इस संबंध में नोटिस भी जारी कर दिया है। जिससे अनेकों लोगों के बेरोजगार होने की संभावनाएं बन गईं हैं और इसके लिए कम्युनिस्टों और वहाँ की सरकार को जिम्मेदार माना जा रहा है।
कम्युनिस्ट बने बड़ी वजह
गौरतलब है कि कंपनी के यूनिट को ठप करने का कारण कम्युनिस्ट पार्टियों की विचारधारा वाले मज़दूर संघों द्वारा यहां किया जा रहा आंदोलन है। ये आंदोलन पिछ्ले साल दिसंबर से जारी है जिसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों की वेतन-वृद्धि है। दरअसल यूनिट में प्रोडक्शन मार्च में लॉकडाउन के पहले ही कम हो गया था। कंपनी के करीब 120 रेगुलर और 250 कॉन्ट्रैक्ट मजदूर वेतन-वृद्धि को लेकर प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे है जिससे कंपनी का प्रोडक्शन लगभग ठप पड़ गया और अब कंपनी ने प्लांट बंदी का नोटिस दे दिया। गौरतलब है कि यूनिट 22 मार्च से बंद है।
कंपनी ने अपने नोटिस में कहा, ‘केरल उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस सुरक्षा मिलने के बावजूद स्थिति नाजुक बनी हुई है जिस कारण आपराधिक हमलों का खतरा बढ़ गया है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों की अवैध हड़ताल के कारण मैनेजमेंट को नुकसान हो रहा है और भविष्य में भी इसके सही होने की कोई संभावनाए नहीं हैं।’
गौरतलब है कि पेप्सिको के प्लांट बंद करने की वजह इसको भी माना जा रहा है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस दोनों के ही मजदूर संघ इस मामले में खुलकर विरोध कर रहे थे जिसके चलते कंपनी को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था। केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने भी कंपनी और मजदूर संघों के बीच तालमेल बिठाने की कोई कोशिश नहीं की और अंजाम ये कि कंपनी की यूनिट बंद हो गई।
इतिहास रहा है कि पश्चिम बंगाल से लेकर देश के कई बड़े राज्यों में कम्युनिस्टों के मजदूर संगठनों ने कंपनियों के मैनेजमेंट को ऐसे ही परेशान किया है और कंपनियां काम बंद कर चुकी है। बंगाल में कम्युनिस्ट शासन के दौरान फैक्ट्रीज और कंपनियों का मैनेजमेंट मजदूरों के ऐसे आंदोलनों से परेशान रहता था ऐसे में अब जब केरल में ही कम्युनिस्टों का अस्तित्व बचा है तो वहां से ऐसी खबरों का आना स्वाभाविक है क्योंकि ये उनकी मारपीट और हिंसक आंदोलन की असल फितरत उजागर करता है और जब लोगों को रोजगार की सबसे ज्यादा ज़रूरत है तो आंदोलन के नाम पर कम्युनिस्ट पार्टीयों ने लोगो बेरोजगार करवा कर उनकी मुसीबतों में बढ़ोतरी कर दी है।