ललितादित्य मुक्तपीड mode activate हो चुका है- अब भारत चीन पर चढ़ाई कर रहा है, और यह अच्छी बात है

अभी तो बस कालाटॉप छीना है, देखते जाओ तुम्हारे साथ क्या-क्या होता है

चीन

हाल ही में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने की एक और कोशिश नाकाम हुई, जब पेंगोंग त्सो झील के निकट एलएसी पर 29 अगस्त की रात चीन ने धावा बोला। भारतीय सैनिकों ने न केवल इस आक्रमण को ध्वस्त किया, अपितु चीनी सैनिकों को दुम दबाकर भागने पर विवश भी किया।

भारतीयों ने न केवल चीन के आक्रमण को रोका, बल्कि 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक्स की भांति एलएसी पार कर चीन के रातों की नींद उड़ा दी। इंडिया टुडे और एएनआई के रिपोर्ट्स की माने तो भारतीय सेना के स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स ने न केवल एलएसी पार कर चीनी सैनिकों की धुलाई की, अपितु रणनीतिक रूप से अहम एक क्षेत्र [जिसे रणनीतिक क्षेत्रों में ‘ब्लैक टॉप’ का नाम दिया गया है] पर स्थित चीनी कैंपों को ध्वस्तकर उसे पुनः भारतीय क्षेत्र में समाहित करा लिया।

इस आक्रामक प्रत्युत्तर से भारत ने उस शासक की कूटनीति को भी पुनः आत्मसात किया है, जिनके शौर्य के सामने अरबी और तुर्की आक्रांताओं की एक न चली। हम बात कर रहें है कश्मीर के सम्राट Lalitaditya Muktapida (ललितादित्य मुक्तपीड) की, जिनकी आक्रामक रक्षा नीति के कारण भारत विदेशी आक्रांताओं से तीन शताब्दियों तक मुक्त रहा।

बता दें कि कारकोट वंश के शासक ललितादित्य मुक्तपीड़ कश्मीर प्रांत के सम्राट बने थे, परंतु उनकी अभिलाषा तो कुछ और ही था। वे चाहते थे कि अखंड भारत का साम्राज्य दूर-दूर तक फैले, और वे इससे भी भली भांति परिचित थे कि किस प्रकार अरबी आक्रांताओं ने भारत पर अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ाई हुई थी। इसीलिए उन्होंने आक्रामक रक्षा नीति अपनाई, अर्थात शत्रु को केवल परास्त न करें, उन्हे उनके घर तक दौड़ा-दौड़ा कर मारें, ताकि वे फिर कभी आपके घर पर आक्रमण करने की हिमाकत न करें।

तो इस बात का वर्तमान घटनाओं से क्या संबंध है? दरअसल, चीन को उसी के घर में घुसकर परास्त करने का जो कार्य भारतीय सैनिकों ने किया है, वो ललितादित्य मुक्तपीड के इसी आक्रामक रक्षा नीति का एक बेजोड़ उदाहरण है। चीन ने सोचा था कि भारत पर वह आक्रमण करेगा, उसके 10 – 15 सैनिक मार देगा और बदले में भारत उसके कुछ सैनिक मार कर बातचीत के लिए द्वार खोल देगा। परंतु जो भारत ने 30 अगस्त को तड़के अंजाम दिया, उसके बारे में चीन ने अपने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा।

दरअसल, 29-30 अगस्त को भारत और चीन की सेनाओं के बीच पैंगोंग झील के दक्षिणी क्षेत्र में एक चोटी पर कब्जे के लिए टकराव हुआ। अभी तक भारत और चीन की सेना के बीच पैंगोंग झील के उत्तरी इलाके में ही टकराव की स्थिति बनी थी। पीएलए ने करीब 500 सैनिकों को इन पहाड़ियों पर कब्जा करने के इरादे से आगे बढ़ाया लेकिन जब तक चीनी सेना अपनी योजना में कामयाब होती भारतीय सैनिकों ने इन पहाड़ियों पर पहले ही कब्जा कर लिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन ने यहां पर सर्विलांस सिस्टम और कैमरे भी लगा रखे थे, जिससे भारतीय सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखी जाए, बावजूद इसके चीनियों को भनक लगने से पहले ही भारतीय सेना इन चोटियों पर काबिज हो गई।

यह इलाका सामरिक रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यदि चीन झील के दक्षिणी छोर पर भी काबिज हो जाता तो पूरे पैंगोंग झील क्षेत्र में उसे बढ़त हासिल हो जाती। जिससे भारत को पैंगोंग के अलावा चुशलू इलाके में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता। किंतु अब भारत को झील के दक्षिणी छोर पर काफी बढ़त हासिल हो चुकी है और यह सब संभव हुआ है भारत की एक स्पेशल फोर्स के कारण। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना को इस बात की आशंका थी कि चीन दक्षिणी छोर पर नया मोर्चा खोल सकता है। इसलिए भारत ने यहां पर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को पहले ही तैनात कर रखा था। 

बता दें कि स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन 1962 के युद्ध के बाद चीन के खतरे को देखते हुए किया गया था। इसमें मुख्य रूप से तिब्बत से आये शरणार्थियों को शामिल किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तिब्बती लोग ऊंचे इलाकों में रहने के आदी होते हैं, इसके कारण तिब्बती पठार में चीनियों  को धूल चटाने की क्षमता इनमें स्वतः होती है। अब भारत की इस स्पेशल रेजिमेंट में गोरखा सैनिकों को भी रखा जा रहा है जिन्हें माउंटेन वारफेयर का अच्छा अनुभव होता है। यही कारण था कि चीन की तमाम तैयारियों के बाद भी इन सैनिकों ने चीनी सेनाओं को चकमा देते हुए पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। चीन से अपने रणनीतिक रूप से अहम क्षेत्रों को वापिस लेकर भारत ने आक्रामक रक्षा नीति के सबसे मूलभूत सिद्धान्त का ही पालन किया है – अपने शत्रु को अपने ऊपर हावी होने का एक भी अवसर न प्रदान करे!

चीन भारत की इस बड़ी रणनीतिक जीत के कारण सहम गया है। पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण करने की ताजा कोशिश नाकाम रहने से चीन बुरी तरह बिलबिला उठा है और तरह तरह के दावे कर रहा है। अब वह उल्टे भारत पर समझौतों के उल्लंघन करने का आरोप मढ़ने लगा है। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने मंगलवार को अपनी प्रेस ब्रीफ़िंग में कहा, ‘चीन ने किसी भी देश की एक इंच ज़मीन पर भी कब्ज़ा नहीं किया है। प्रवक्ता ने आगे कहा, “चीन ने कभी भी किसी लड़ाई या संघर्ष के लिए नहीं उकसाया और ना ही किसी और देश की एक इंच ज़मीन पर कब्ज़ा किया है। चीनी सैनिकों ने कभी भी लाइन को पार नहीं किया”। दूतावास ने कहा कि, ”चीन ने औपचारिक तरीके से भारत से सीमावर्ती सैनिकों को नियंत्रित करने का आग्रह किया है।” 

चीन स्वीकार चुका है कि भारत ने उनकी सीमा में प्रवेश किया, जिसका अर्थ स्पष्ट है कि चीन की हरकतों के कारण भारत को ऐसा करने के लिए क्यों विवश होना पड़ा। यदि चीन इस क्षेत्र पर अपना दावा कर रहा है तो उसे भारत के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों के साथ बीहड़ SFF सैनिकों का सामना करने के लिए तैयार रहे।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रामक रक्षा की रणनीति जो बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल संभालते हैं, वह कश्मीर के करकोटा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ के सद्धांतों अनुरूप है।

बताते चलें कि ललितादित्य मुक्तपीड़ की तरह दुशमन को घेरने और उसे उसके ही शब्दों में जवाब देना भारतीय आर्मी बहुत पहले शुरू कर दिया था। इस नीति की नींव शायद कहीं न कहीं 2016 में ही पड़ चुकी थी, जब उरी में भारतीय सेना के बेस कैम्प पर हुए आतंकी हमले के प्रत्युत्तर में भारतीय सैनिकों ने एलओसी पार कर सर्जिकल स्ट्राइक्स को अंजाम दिया था। भारत ने कभी किसी देश पर पहले आक्रमण नहीं किया था, परंतु इसी नीति का दुरुपयोग करते हुए पाकिस्तान और चीन ने अनेकों बार सीमा का उल्लंघन किया है।

इससे पहले भी कई बार चीन और पाकिस्तान ने हमारी सीमा में घुसपैठ किया था, और अनेकों बार हमारी सम्पत्ति के साथ साथ हमारे सैनिकों और हमारे नागरिकों को भी नुकसान पहुंचाया है। परंतु प्रत्युत्तर में हम उतने आक्रामक नहीं थे, जितने अभी हुए हैं। उदाहरण के लिए ऐसे कई झड़प के साक्षी रहे बिहार रेजीमेंट को ही देख लीजिए। जब उरी का हमला हुआ था, तो बेस कैम्प पर स्थित डोगरा रेजीमेंट के जवानों सहित बिहार रेजीमेंट के जवानों को भी काफी नुकसान हुआ था।

परंतु बदलती रक्षा नीति का फायदा बिहार रेजीमेंट को भी मिला और उनकी घातक टुकड़ी ने सर्जिकल स्ट्राइक्स में अपना लोहा भी मनवाया। इसके अलावा जब गलवान घाटी में जब चीनियों ने अवैध कैम्प हटाने गए बिहार रेजीमेंट के जवानों पर हमला किया, तो भी आत्मविश्वास से लबरेज बिहार रेजीमेंट के घातक टुकड़ी के सैनिकों ने ना केवल मुंहतोड़ जवाब दिया, बल्कि चीन को ऐसा सबक सिखाया कि आज भी चीन अपने सैनिकों की मौत की वास्तविक स्थिति जगजाहिर करने से कतरा रहा है।

अब जिस प्रकार से चीन के वर्तमान हमले को भारतीय सैनिकों ने ध्वस्त किया, उससे एक बात तो स्पष्ट है – चीन को भी घर में घुसकर सबक सिखाने में भारत पूरी तरह सक्षम है, और कहीं न कहीं स्वर्ग में ललितादित्य इस अहम बदलाव को देख बहुत प्रसन्न होंगे।

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