मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार और मालदीव- ये चार देश जल्द ही चीनी निवेशकों को बड़ा झटका देने वाले हैं

चीनी कर्ज़ पर अब इन छोटे देशों की चलेगी कैंची

मालदीव

चीन की फितरत है कि वो किसी भी देश को कब्जाने के लिए सबसे पहले वहां निवेश बढ़ाता है। उसके इस रवैए से अब मालदीव के लिए नई परेशानियां खड़ी हो गईं हैं। मालदीव का तर्क है कि चीन ने कर्ज का दबाव इतना ज्यादा बढ़ा दिया है कि मालदीव उतना कर्ज चुका ही नहीं सकता। यही नहीं अब श्रीलंका, म्यांमार की तरह मालदीव भी भविष्य में चीन के निवेश को नकारने के एजेंडे पर काम करने लगेगा क्योंकि वो चीन की इस रणनीति को अच्छी तरह समझ चुका है।

चीन के निवेश को बढ़ते देखते हुए मलेशिया में जब सरकार बदली तो नई सरकार ने चीन के साथ रेलवे प्रोजेक्ट पर दोबारा समझौता कर उसकी मूल लागत को एक तिहाई तक कम करके 11 अरब डॉलर कर दिया गया। इसी तरह म्यांमार ने भी चीन के निवेश के जरिए कई अरब डॉलरों से बन रहे बंदरगाह के प्रोजेक्ट की कीमत को तीन चौथाई तक कर दी है जिससे दोनों ही देशों में चीन का इन्वेस्टमेंट शेयर काफी नीचे आया है। एशियाई देश चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट्स की भी फिर से समीक्षा कर रहे हैं। मालदीव इन देशों की तरह तो नहीं है लेकिन वो भी अपनी सोदेबाजी की सीमित नीतियों के तहत चीन के इन्वेस्टमेंट को धीरे-धीरे कम कर रहा है और उनके मूल्यांकन की भी बात कर रहा है। मालदीव की नई सरकार ने चीन के साथ अब तक कोई बड़ी डील साइन नहीं की है।

एक वक्त ऐसा था जब मालदीव में चीन समर्थक अब्दुल्ला यमीन की सरकार थी। इस दौरान चीन ने यहां कई प्रोजेक्ट्स लगाए, और यामीन ने चीन से खूब कर्ज लिया। मालदीव के एयरपोर्ट और शहर के बीच चीन द्वारा बनाया गया 20 करोड़ डॉलर का पुल यातायात को तो सरल बना रहा है लेकिन मालदीव में ऐसे ही प्रोजेक्ट्स ने अब उसकी नई सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं क्योंकि देश पर चीन का कर्ज बहुत अधिक हो गया है।

बहुत ज्यादा हुआ कर्ज

मालदीव की संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद ने बताया, “चीन का कर्ज़ तीन अरब 10 करोड़ डॉलर का है। उन्होंने कहा कि कर्ज ज्यादा है और इससे बनी परियोजनाओं के माध्यम से उतना पैसा नहीं मिल पाएगा। चीन ने इतना पैसा दिया भी नहीं जितना कागजी कार्रवाई में लिखित है इसे बढ़ाकर लिखा गया है।” वहीं चीन के पूर्व प्रतिनिधि ने बताया कि मालदीव पर चीन का 1.4 करोड़ डॉलर का कर्ज है। हालांकि, ये भी 4.8 अरब की जीडीपी वाले मालदीव के लिए एक बहुत बड़ा कर्ज है।

सता रही है चिंता

मालदीव सरकार में नशीद इस बात से बेहद चिंतित हैं कि इतना बड़ा कर्ज चीन कैसे चुकाएगा। उन्हें डर है कि कर्ज न चुकाने पर उसका हाल भी श्रीलंका, म्यांमार, मलेशिया जैसा न हो जाए।‌ श्रीलंका का उदाहरण सबसे बड़ा है जहां श्रीलंका का चीन से कर्ज लेना… और फिर न चुका पाने के एवज में हंबनटोटा पोर्ट का 99 वर्षों तक चीन को लीज पर देना है।

एक वक्त था जब चीन के साथ मिलकर श्रीलंका भारत को नीचा दिखाने की कोशिश में था लेकिन चीन के साथ दोस्ती ऐसी भारी पड़ी कि भारत को निवेश के मामले में प्राथमिक वरीयता देने की बात कह दी। म्यांमार और मलेशिया के साथ भी चीन ने इसी रणनीति पर काम किया। जिसके चलते इन देशों ने चीनी निवेश को कम करना शुरू किया और दक्षिण एशिया में चीन से पहले भारत को वरीयता देने का एजेंडा सेट किया।

म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया के साथ कर्ज देने के बाद चीन के द्वारा किए गए सलूक को मालदीव भी समझ चुका है। नशीद को भी डर है कि मालदीव के आइलैंड में बन रहे होटलों में चीन का निवेश इतना ज्यादा है कि चीन उन पर लंबे वक्त के लिए कब्जा कर सकता है। नशीद बोले, “ये देखा जा सकता है कि इन प्रोजेक्ट्स में जो मालदीव के पार्टनर हैं, उनके पास ऐसी परियोजनाओं में पार्टनर बनने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था। तो ये चीन के पार्टनर उन्हें कभी भी ख़रीद सकते हैं। मुझे तो लगता है कि बहुत जल्द आइलैंड उनके हाथों में चला जाएगा।”

दूसरी ओर चीनी राजदूत झांग लिझुंग ने इन बातों को नकारा है। उनका कहना है कि चीन इस तरह की कर्ज नीति पर नहीं काम करता है। चीनी राजदूत भले ही इन बातों को नकार रहे हों लेकिन नशीद के सामने श्रीलंका, मलेशिया, के उदाहरण उनकी चिंता बढ़ा रहे हैं। वहीं अब्दुल्ला यमीन की पार्टी ने कहा है कि उन्होंने चीन को कोई आईलैंड नहीं दिया है।

ऐसे में  मालदीव भी भविष्य में चीनी निवेश को ब्लॉक कर सकता है जिस तरह से श्रीलंका, म्यामार और मलेशिया ने किया था और भारत को इस क्षेत्र में प्रथम वरीयता देने की बात कही थी क्योंकि भारत विस्तारवाद की नीति पर काम नहीं करता है।

 

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