प्रधानमंत्री के आत्मविश्वास से डरा विपक्ष , सोनिया, राहुल समेत कई सांसद मानसून सत्र से रहेंगे गायब

सड़क पर बेबुनियाद सवाल उठाने वाला विपक्ष सदन में जाने से डर रहा

मानसून सत्र

संसद का मानसून सत्र आज से शुरू हो रहा है। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच संसद शुरू होना भारत के लोकतन्त्र में जनभागीदारी का एक जीता-जागता उदाहरण है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि, “संसद का सत्र एक अजीब स्थिति में शुरू हो रहा है। देश की जनता और सांसदों में भी भय का माहौल है, लेकिन दुनिया और राष्ट्र में स्थिति बदल रही है, और इस पर चर्चा करना महत्वपूर्ण है।’’ परंतु ऐसे समय में जब संसद की बैठक बेहद महत्वपूर्ण है तब कई नामी सांसद, सत्र शुरू होने से पहले ही विदेश निकल लिए तो सत्र में कई न जाने का बहाना ढूंढ रहे हैं।

कांग्रेस आज सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है लेकिन, इस पार्टी के अध्यक्ष सहित दो बेहद महत्वपूर्ण सांसद यानि सोनिया गांधी और उनके सुपुत्र राहुल गांधी मानसून सत्र शुरू होने से पहले ही कथित रूप से अमेरिका के लिए निकल लिए। कहने को सोनिया अपने रूटीन चेक अप के लिए गयी हैं लेकिन यह सवाल जरूरी है कि क्या यह चेक अप संसद सत्र शुरू होने से पहले ही नहीं करवा लेना चाहिए था?

राहुल गांधी तो सोशल मीडिया पर बेहद एक्टिव रहते हैं और कई बेतुके सवाल पूछते हैं, कभी अर्थव्यवस्था पर तो कभी NEET के विद्यार्थियों के लिए तो कभी बॉर्डर विवाद पर लेकिन जब सरकार से फ़ेस तो फेस वास्तविक सवाल पूछने की बारी आई है तो विदेश यात्रा पर चले गए।

भारत के लिए और भारत के लोगों के लिए इनके मन में कितनी भावना है, इससे से स्पष्ट हो जाता है। देशवासी अपने संसदीय क्षेत्र से अपने प्रतिनिधि को इसलिए नहीं चुनते है कि जब खतरा सर पर हो तो संसद में उस क्षेत्र की बात रखने का समय आए तो विदेश भाग जाए, बल्कि इसलिए चुनते हैं कि जब समय आए तो वह लोगों की बात लोकतन्त्र के मंदिर तक पहुंचाए। परंतु कुछ सांसदों को जनता की चिंता नाममात्र की भी नहीं है।

The Hindu की रिपोर्ट को माने को इस सत्र के दौरान राहुल गांधी और सोनिया गांधी के अलावा कई संसदो के अनुपस्थित रहने की आशंका है। तृणमूल कांग्रेस ने पहले अपने सांसदों को निर्देश जारी किए थे कि जिन सांसदों की उम्र 65 से ऊपर है वे स्वास्थ्य कारणों से सत्र को छोड़ सकते हैं। ऐसे में तृणमूल के तीन सांसद लोकसभा में और चार राज्यसभा में अनुपस्थित रहेंगे। इसके अलावा रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू दोनों को कई छुट्टी के आवेदन मिले हैं। विपक्ष की बेंचों में अनुपस्थिति अधिक रहने की उम्मीद है, क्योंकि केरल और तमिलनाडु के कई सांसदों ने सत्र में भाग लेने में असमर्थता व्यक्त की है।

ऐसा भी नहीं है कि कोरोना का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। मानसून सत्र शुरू होने से पहले सभी सांसदों का 72 घंटे कोरोना वायरस टेस्ट किया जाएगा। सांसदों के अलावा संसद में आने वाले स्टाफ का भी कोरोना टेस्ट होगा। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा कि संसद के मानसून सत्र शुरू होने से पहले सभी सांसदों के स्टाफ और परिवार का भी कोरोना टेस्ट किया गया है।

इसके अलावा संसद सत्र के दौरान भी रैंडम टेस्ट किए जाएंगे। सभी सांसदों के टेस्ट करवाने की व्यवस्था संसद परिसर में ही कारवाई जाएगी। यदि किसी सदस्य को स्वास्थ्य संबंधी शिकायत होती है तो उनके उचित उपचार की पूरी व्यवस्था की गई है। किसी भी व्यक्ति को कोरोना की RT PCR टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट के बिना संसद में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इनती सावधानियों के बाद भी अगर कोई सांसद इस बेहद अहम सत्र में न जाने का बहाना ढूँढता है तो यह उसकी देश और जनता के प्रति न्यूनतम प्रतिबद्धताओं को दर्शाता है।

अगर देखा जाए तो यह डर कोरोना का नहीं बल्कि पीएम मोदी के जवाबों का है। जब से यह सरकार बनी है तब से संसद के किसी भी सत्र विपक्ष सरकार को किसी भी मामले पर घेरने में असफल रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं था। केंद्र की मोदी सरकार ने जो भी किया वह पूरे ऐतिहात के साथ देश की गरिमा और देशहीत को सबसे ऊपर रख कर किया है। ऐसे में विपक्ष के पास कोई ऐसा मामला होता ही नहीं जिससे सरकार को घेरा जा सके। वहीं जब भी विपक्ष ने सावल करने की कोशिश की सरकार से बेहद सटीक जवाब मिला। उदाहर के लिए राफेल मुद्दा हो या अनुच्छेद 370 का मुद्दा हो। दोनों ही मामलों पर विपक्ष अपने ही सवालों के जाल और कांग्रेस के घोटालों में फंस कर रह गया। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी सवाल पर पीएम मोदी से मिलने वाले सटीक उत्तर के डर से सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित कई सांसद मानसून सत्र के दौरान अनुपस्थित रहने वाले हैं।

आज के समय में न सिर्फ कोरोना बल्कि बॉर्डर पर लगातार चीन के द्वारा किए जा रहे उकसावे और अंतराष्ट्रीय स्तर पर बदलते परिदृश्य के विषय में देश के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसे में सभी सांसदों को चाहिए कि देश की जनता की आवाज संसद तक पहुंचाए।  

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