हाल ही में एक अहम निर्णय में कर्नाटक हाई कोर्ट ने सरकारी भूमि पर अवैध रूप से निर्मित ईसाई क्रॉस और जीसस की मूर्ति को हटवाने का निर्देश दिया है। यह क्रॉस और जीसस की मूर्ति कर्नाटक के चिकबल्लापुर के सुसाइ पालिया हिल पर स्थित सरकारी कृषि भूमि पर अवैध रूप से बनाया गया था।
सरकारी कृषि भूमि [गोमाला] पर स्थित इस अवैध क्रॉस और जीसस की मूर्ति के निर्माण के विरुद्ध कर्नाटक के हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई थी। पीआईएल पर गौर करने के पश्चात हाईकोर्ट ने अवैध क्रॉस और जीसस की मूर्ति को तत्काल प्रभाव से हटवाने का निर्देश दिया, जिसे सहायक कमिश्नर रघुनंदन, चिकबल्लापुर के एसपी मिथुन कुमार और तहसीलदार तुलसी की देखरेख में किया गया।
इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी देते हुए सहायक कमिश्नर रघुनंदन ने मीडिया को बताया, “कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्देशानुसार इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, और यह पाया गया कि इस मूर्ति और क्रॉस को सरकारी भूमि पर बनाया गया था, बिना किसी आधिकारिक स्वीकृति या निर्देश के”। इस क्रॉस को हटाने से रोकने के लिए बड़ी संख्या में ईसाई प्रदर्शनकारी भी जुट गए, और उन्हें हटाने के लिए सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मियों की सेवायें भी लेनी पड़ी।
लेकिन ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि इससे पहले भी ईसाई संगठनों द्वारा सरकारी अथवा गैर सरकारी भूमि पर कब्जे की घटनायें इन क्षेत्रों, विशेषकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे इलाकों में बहुत आम बात है। उदाहरण के लिए अभी कुछ महीने पहले जुलाई में कुछ चर्च के पादरी आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के दोरासानीपल्ली ग्राम से अनुसूचित जाति के लोगों को उनके घरों से ज़बरदस्ती निकालते हुए पकड़े गए थे।
तब लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम ने अनुसूचित जाति राष्ट्रीय कमीशन के यहाँ दरवाजा खटखटाया और डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को भी चर्च प्रशासन के विरुद्ध एक्शन लेने के लिए अर्जी डाली। फलस्वरूप अवैध निर्माण पर ताला लग गया, जिसे TFI पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में कवर भी किया था। ईसाई संगठनों द्वारा अवैध रूप से सरकारी भूमि पर कब्ज़ा जमाने की रैकेट का जिस तरह कर्नाटक प्रशासन ने भंडाफोड़ किया है, वह अपने आप में सराहनीय है, और कर्नाटक हाई कोर्ट की इस नीति का अनुसरण देशभर में किया जाना चाहिए।