Nepal के PM ने भारत के खिलाफ स्कूली किताब में जहर भरवाया, मंत्रियों और Academicians ने लगवाई रोक

नेपाल

चीन के हाथों अपना आत्मसम्मान पहले ही बेच चुका नेपाली प्रशासन अब भारत के साथ अपनी अनबन को एक नए स्तर पर ले जाने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत के साथ पहले नए राजनीतिक नक़्शे को लेकर तनाव बढ़ाने के बाद नेपाली सरकार ने हाईस्कूल के बच्चों की किताब में न केवल किताब में विवादित नक्शा प्रकाशित करवाया है जिससे वो युवाओं में भारत के प्रति जहर घोल सके। इस किताब का नाम ‘नेपालको भूभाग र सीमा संबंधी स्वाध्याय सामग्री’ [Nepal के भूभाग और सीमा से संबन्धित स्वाध्याय सामग्री]। हालाँकि, इससे पहले कि ये पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल हो पाती, इसके लॉन्च को भारी जनविरोध के चलते स्थगित किया गया है।

पीएम केपी शर्मा ओली और शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरेल ने इस किताब में भारत के लिए भर भर के नफरत समाहित है। शिक्षित करने के बजाए ये पुस्तक नेपाल के खोखले भौगोलिक दावों को बढ़ावा देता है। ये पुस्तक नेपाली बच्चों को केपी शर्मा ओली और चीन का गुलाम बनाने की ट्रेनिंग देने के स्वरूप से तैयार किया गया है।

इस किताब में सुदूर पश्चिम Nepal से लगे कालापानी और मधेश के सुस्ता सीमा विवाद को तूल दिया गया है। इसके साथ ही किताब में नेपाल का पूरा क्षेत्रफल 147,641.22 वर्ग किलोमीटर बताया गया है, जिसमें भारत के लिंपियाधुरा और लिपुलेख का 460.28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भी शामिल किया गया है।

हालांकि, इस बुक के लॉन्च को मानो ग्रहण सा लग गया, क्योंकि इस बुक के प्रोपेगैंडा से नेपाल के शिक्षाविद काफी क्रोधित हैं। Nepal के शिक्षाविद ने इस किताब के अनावरण का विरोध किया है क्योंकि वे भली भांति जानते हैं कि ये किताब और कुछ नहीं, बल्कि Nepal और भारत के सम्बन्धों में पड़ी दरार को और बढ़ाना चाहता है। वे गलत भी नहीं है, क्योंकि कभी माओवादी रह चुके शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरेल इस पुस्तक के प्रस्तावना में बड़े बेशर्मी से लिखते हैं कि कैसे 24 साल पहले उन्होंने हिंदुस्तानी सेना को नेपाली क्षेत्र से दूर भगाने के लिए लड़ाई लड़ी थी।

गिरिराज मणि पोखरेल चीन के गुणगान नहीं थकते, ऐसे में इस किताब को यदि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र भी कहा जाये तो गलत नहीं होगा। लेकिन नेपाली सरकार ने ये कतई नहीं सोचा होगा कि चीन के बताये रास्ते पर चलने का परिणाम उसके लिए इतना बुरा भी हो सकता है।

नेपाल का पूरा शिक्षा जगत ही नेपाली युवाओं में इस विषबेल को बढ़ावा देने के विरुद्ध सामने आया है। इसी कारण नेपाली कैबिनेट को इस पुस्तक के अनावरण और उसके वितरण पर रोक लगानी पड़ी है। विधि मंत्री Shiv Maya TumbaHangphe ने काठमांडू पोस्ट को बताते हुए कहा, “हमने काफी सोच विचार के पश्चात इस निर्णय पर सहमति जताई है कि इस पुस्तक का वितरण रोक दिया जाये।”

यही नहीं स्वयं नेपाली सरकार में कुछ मंत्रियों ने इस भड़काऊ किताब के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई। विदेश मंत्री हो, भू प्रबंधन मंत्री, या फिर गरीबी उन्मूलन मंत्री, सभी ने इस पुस्तक के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया। भू प्रबंधन मंत्रालय के प्रवक्ता जनक राज जोशी ने कहा, “इस पुस्तक में काफी ऐसी त्रुटियाँ है जिसपर मंत्रालय से कोई चर्चा ही नहीं हुई। हमसे शिक्षा मंत्री ने इस परिप्रेक्ष्य में कोई सलाह ही नहीं ली”।

इसके अलावा शिक्षा मंत्रालय को बिना किसी परामर्श के इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। सेंटर फॉर नेपाल एंड एशियन स्टडीज से संबन्धित प्रोफेसर मृगेंद्र बहादुर कार्की ने कहा, “एक देश का शैक्षणिक प्रोग्राम ऐसा होना चाहिए कि उससे शिक्षित लोग निकले, एक्टिविस्ट नहीं। इस प्रकार की पुस्तकें केवल हमारे दूसरे देशों से संबंध ही खराब करते हैं”। जिस पुस्तक को यह सोचकर ओली सरकार बढ़ावा देना चाहती थी कि इससे वे अपने चीनी आकाओं को प्रसन्न करेंगे, उससे उल्टा एक बार फिर ओली प्रशासन की ही किरकिरी हुई है, और इस बार ओली के सरकार के ही कुछ मंत्री इस विषय पर उनसे मोर्चा लेने के लिए आगे आए हैं।

 

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