नेपाल अब भारत से देहरादून और नैनीताल मांग रहा है; भाई ओली! सीधा दिल्ली और मुंबई ही मांग लो ना

शर्मा जी को फिर पड़ा CCP का दौरा!

नेपाल

(pc- the chhichhaledar. com )

महीना भर शांत रहने के बाद केपी शर्मा ओली के अंदर नौटंकी का कीड़ा फिर कुलांचे मारने लगा है। चीन के दम पर उछलने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री अब चाहते हैं कि भारत निर्विरोध उन्हें देहरादून और नैनीताल जैसे शहर सौंप दे। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि नेपाली प्रशासन ने खुद अपनी मंशा जगज़ाहिर की है।

अपने ग्रेटर नेपाल अभियान के अंतर्गत अब नेपाल चाहता है कि भारत का अधिकांश हिस्सा नेपाल के अंतर्गत आ जाए। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, “इस अभियान के तहत वो उत्तराखंड के देहरादून, नैनीताल समेत हिमाचल, यूपी, बिहार और सिक्किम के कई शहरों को नेपाली बता रहा है। नेपाल की सरकार यानी सत्ताधारी पार्टी नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी ने यूनिफाइड नेपाल नेशनल फ्रेंट के साथ मिलकर एक ग्रेटर नेपाल अभियान चलाया है। इसके तहत ही ये लोग भारत के कई प्रमुख शहरों पर अपना दावा कर रहे हैं।”

भई, जब देहरादून और नैनीताल पर दावा ठोंका ही था, तो लगे हाथों, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद जैसे शहरों को भी अपना बना लेते। पिछले कुछ महीनों से ओली भारत के विरुद्ध जिस प्रकार से विष उगल रहे हैं, और जिस प्रकार से भारतीय क्षेत्रों पर दावा कर रहे हैं, उससे तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नियाज़ी भी एक वक्त के लिए देव मानुष लगेंगे।

हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब ओली ने ऐसे खयाली पुलाव पकाए हों। जब से लीपुलेख, धर्चूला और लिंपियाधुरा पर नेपाल ने दावा ठोंका है, तभी से ओली भारत विरोधी प्रोपगैंडा को जमकर बढ़ावा दे रहे हैं, भले ही उनका ‘हितैषी’ चीन उन्हीं के देश पर धीरे-धीरे कब्जा जमाता रहे। पर ओली ने तब फेंकने में एक नया कीर्तिमान रचा, जब उन्होने श्रीराम को नेपाली ही बता दिया।

जनाब ने अयोध्या में 5 अगस्त को हुए भूमिपूजन से कुछ दिन पहले कहा, “असली अयोध्या – जिसका प्रसिद्ध हिन्दू महाकाव्य रामायण में वर्णन है – वो नेपाल के बीरगंज के पास एक गाँव है। वहीं भगवान राम का जन्म हुआ था। भगवान राम भारत के नहीं, बल्कि नेपाल के राजकुमार थे।” इतना ही नहीं, जनाब ने यहाँ तक सुनिश्चित कराया कि नेपाल में अयोध्या की पुष्टि के लिए पुरातत्व विभाग के एक विशेष समिति का गठन किया जाये। ऐसे में केपी शर्मा ओली के लिए हमें दया भी आती है। वे लोगों को अपने चुटकुलों से हंसा-हंसा के लोटपोट करना चाहते हैं, परंतु उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पे बिठा दिया गया।

लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी, पीएम ओली में गज़ब का डेडिकेशन है। प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपनी चाहत को नहीं छोड़ा है, और इसमें चीन के राजनीतिज्ञ उनकी भरपूर मदद कर रहे हैं। तभी अब नेपाल भारत के हिस्सों पर ठीक उसी तरह दावा ठोंक रहा है, जैसे चीन पुतिन भाऊ के देश रूस के शहर व्लादिवोस्टोक पर अपना दावा कर रहा है। इस समय ओली पे एक ही कहावत सटीक बैठती है, “कौव्वा चला हंस की चाल।”

 

 

 

 

 

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