जब किसी से पूछा जाए कि आज चीन का सबसे विश्वसनीय मित्र कौन है तो उसका जवाब पाकिस्तान होगा और पाकिस्तान के लिए यही प्रश्न पूछने पर इसका उत्तर चीन मिलेगा। परंतु लगता है कि अब इन दोनों देशों की आपस में नहीं बनने वाली, हाल ही में खबर आई है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपना पाकिस्तान दौरा रद्द कर दिया है। हालांकि, दोनों सरकारों का कहना है कि यह कोरोनावायरस के चलते किया गया है किंतु इसे एक अन्य कारण से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
हाल ही में मिस्र की राजधानी काहिरा में स्थित पाकिस्तानी दूतावास में कार्यरत एक अधिकारी सिद्रह हक़ ने वहाँ स्थित ताइवानी ट्रेड सेंटर का दौरा किया था। हक़ मिस्र के दूतावास में निवेश तथा व्यापार से संबंध कार्य देखती हैं। अतः यह साफ है कि इस मीटिंग का उद्देश्य पाकिस्तान और ताइवान के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा करना था।
हक़ ने मुलाकात के बाद ट्वीट करते हुए कहा “मिस्टर माइकल ये ताइवान ट्रेड सेंटर के एक वरिष्ठ वाणिज्यिक अधिकारी हैं। हमने पाकिस्तान-ताइवान व्यापार संबंधों, काहिरा में हमारे साझा वाणिज्यिक अनुभव और स्थानीय बाजार में रुचि के प्रमुख उत्पादों की बात की। हमेशा दूसरे ट्रेड विंग से जुड़ना और विचार विनिमय करना अच्छा लगता है।” यह घटना और राष्ट्रपति जिनपिंग का दौरा रद्द करना, दोनों का समय लगभग एक समान है, यही कारण है कि इन दोनों को जोड़कर देखा जा रहा है।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हक़ ने तत्काल अपना ट्वीट डिलीट कर दिया जो बताता है कि उन पर पाकिस्तान के उच्च अधिकारियों का दबाव आया होगा। लेकिन यह भी साफ है कि हक़ ताइवान के ट्रेड सेंटर का दौरा अपनी मर्जी से नहीं करेंगी क्योंकि पाकिस्तान का कोई छोटा से छोटा अधिकारी भी यह जानता है की चीन ताइवान के मुद्दे पर कितना संवेदनशील रहता है। अतः इस पूरे परिदृश्य को देखकर यही लगता है कि पाकिस्तान की सरकार चुपके-चुपके ताइवान के साथ अपने व्यापारिक संबंध मजबूत करने को लेकर चर्चा करना चाहती है। उसे उम्मीद थी कि चीन को इसकी भनक नहीं लगेगी। सुनने में यह अजीब लगे लेकिन पाकिस्तान अजूबों का देश है और उसकी बचकाना विदेश नीति के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है।
पाकिस्तान की मूर्खतापूर्ण विदेश नीति का यह कोई एक प्रमाण नहीं है। अभी हाल ही में जब सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच में संबंध खराब हुए थे तो सऊदी अरब ने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान की सरकार के ऊपर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। सऊदी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि पाकिस्तान के आर्मी जनरल बाजवा को भागकर सऊदी अरब जाना पड़ा था।
लेकिन जब पाकिस्तान को सऊदी से कोई मदद नहीं मिली पाकिस्तान ने सऊदी अरब के प्रिंस सलमान के तख्तापलट की साजिश रचनी शुरू कर दी। कितना हास्यास्पद है कि जिस देश के कर्ज तले पाकिस्तान दबा हुआ है उसी के सुप्रीम लीडर के तख्तापलट की साजिश रच रहा है, और उसे उम्मीद है कि वह सफल भी होगा।
पाकिस्तान का ताइवान के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाना एक परिस्थितिजन्य घटना है। हाल ही में खबर आई थी कि चीन के बैंकों ने पाक और चीन के संयुक्त प्रोजेक्ट CPEC को फंड देने से मना कर दिया है। पाक में चीन की आर्थिक इकाइयों पर लगातार हमले हो रहे हैं और चीन के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है। पाक की आंतरिक अस्थिरता के कारण चीन के बैंकों को लगता है कि पाक की सरकार इन ऋणों को चुकाने में सक्षम नहीं हो पाएगी।
अब जबकि यह तय हो गया है कि चीन के द्वारा पाक को मिलने वाली आर्थिक मदद भी बंद होने वाली है, पाक ने चीन पर दबाव बनाने के लिए ताइवान के साथ अपने संबंध मजबूत करने की नीति अपनाई है। इससे पूर्व पाक ने अपने स्वार्थों के लिए सऊदी को धोखा दिया था और अब चीन की पीठ में खंजर मारने के सपने देख रहा है।
वास्तव में पाक एक ऐसा देश है जो दुनिया भर के देशों से सिर्फ आर्थिक मदद के लिए संबंध रखता है। ऐसा लगता है इस देश का निर्माण सिर्फ चंदा जुटाने के लिए किया गया है। पाक की विदेश नीति में वही देश महत्वपूर्ण है जो उसे आर्थिक मदद देता रहेगा।
वहीं चीन अपने साथी देशों का आर्थिक शोषण करने के लिए बदनाम है। चीन ने पाक को भी अपना उपनिवेश बनाने की कोशिशें तब तक जारी रखेगा जबतक वहाँ आतंरिक विद्रोह विस्फोटक अवस्था तक नहीं पहुंच जाता। पाकिस्तान और चीन दोनों भरोसे के लायक नहीं है। ये दोनों किसी भी देश के साथ तभी तक रहते हैं जबतक इनका स्वार्थ पूरा होता रहे।