‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर बचन न जाई’। अगर इस कथन को पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये, तो ये कुछ यूं होगा, “जिन्ना रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर कश्मीर न जाई।’ कश्मीर पाकिस्तान के लिए टॉनिक समान है, जिसके बल पर कई दशकों तक पाकिस्तान की रोज़ी-रोटी का जुगाड़ हुआ है। लेकिन अब स्थिति कुछ ऐसी हो चुकी है कि पाकिस्तान कश्मीर का राग जहां भी अलापता है, उसे मुंह की खानी पड़ती है।
हाल ही में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मॉस्को में बैठक हुई थी, जिसके लिए भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर भी मॉस्को गए थे। एससीओ के सदस्य होने के नाते पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी पधारे थे। लेकिन आदत के विपरीत शाह महमूद कुरैशी ने एक बार भी अपने संबोधनों में कहीं कश्मीर का ज़िक्र नहीं किया –
#SCO meet :
The first international platform where Pak FM @SMQureshiPTI has not said the word #Kashmir.The host (Russia) might not have liked politicisation of the SCO platform. pic.twitter.com/PfNxydE0jG
— Geeta Mohan گیتا موہن गीता मोहन (@Geeta_Mohan) September 10, 2020
इसके पीछे दो प्रमुख कारण है – पाकिस्तान का कड़वा अनुभव और रूस का सख्त रुख। जब से अनुच्छेद 370 निरस्त हुआ, तब से ऐसा कोई मंच नहीं था, जहां पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा उठाने का प्रयास न किया हो। अपने आका चीन के कंधे पर बंदूक रखते हुए पाकिस्तान ने यूएन सुरक्षा परिषद में भी इस मुद्दे के जरिये भारत को घेरने का प्रयास किया। लेकिन हर बार पाकिस्तान को निराशा ही हाथ लगी।
दूसरा प्रमुख कारण है रूस का सख्त रुख, जिसका परिणाम हाल ही में पाकिस्तान भुगत चुका है। रूस बिलकुल नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ भी हो, जिससे SCO के सम्मेलन में कोई बाधा आए या फिर रूस के परम मित्र यानि भारत को कोई आपत्ति हो। इसके बारे में रूसी दूतावास ने स्पष्ट निर्देश देते हुए अपने बयान में कहा कि SCO में ऐसी कोई भी बात स्वीकारी नहीं जाएगी, जो एक द्विपक्षीय मुद्दा हो, और जिसका SCO के उद्देश्य से कोई संबंध नहीं हो। ऐसे में रूस ने चीन के दम पर उछल रहे पाकिस्तान को उसकी औकात भी बताई और हथियारों की डिलिवरी मना करने के निर्णय के बाद एक और जोरदार झटका भी दिया ।
पाकिस्तान की हालत इस समय बहुत खराब है। एक ओर भारत और अफगानिस्तान उसके आतंकी मंसूबों पर हर दिन पानी फेर रहे हैं, तो दूसरी ओर भारत को हर प्रकार से वैश्विक समर्थन मिल रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान पर एफ़एटीएफ़ द्वारा ब्लैकलिस्ट होने की भी पूरी पूरी संभावना है। ऐसे में पाकिस्तान ने इस बार कश्मीर राग इसलिए नहीं अलापा, क्योंकि उसे पता है कि ऐसा करने पर उसकी मुसीबतें कम होने के बजाए और बढ़ेंगी।