तालिबान ने पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी सेना के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। Intra Afghan शांति वार्ता शुरू होने के बाद जहां अफगान-तालिबान के साथ और ज़्यादा नज़दीकियाँ बढ़ाने पर लगा है, तो वहीं पाकिस्तानी सेना से नाराज़ पाकिस्तान-तालिबान अब पाकिस्तानी फ़ौजियों के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। आंकड़ों के मुताबिक मार्च से लेकर अब तक पाक-तालिबान लगभग 40 पाकिस्तानी सैनिकों की जान ले चुका है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अब अफगान तालिबान और पाक-तालिबान के बीच सैंडविच बनकर रहा गया है!
अफ़ग़ानिस्तान में शांति पाकिस्तान को बिलकुल भी सूट नहीं करती है। ऐसे में अब जब Intra Afghan शांति वार्ता शुरू हुई हैं तो पाकिस्तान के लिए चिंता बढ़ गयी है। शांति वार्ता में तालिबान के सामने यह शर्त रखी गयी है कि वह अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर किसी भी आतंकवादी संगठन को पनाह नहीं दे सकता। अमेरिका अब इस देश से जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहता है, और ऐसे में शांति वार्ता के बाद अफगान तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता में बड़ी भूमिका मिलने वाली है। यही कारण है कि अब चिंता में डूबा पाकिस्तान जल्द से जल्द अफगान-तालिबान पर अपना प्रभाव जमाना चाहता है।
यह निश्चित है कि शांति वार्ता के बाद पाक-तालिबान से जुड़े संगठन अब अफ़ग़ानिस्तान की धरती से दोबारा पाकिस्तान में ही शरण लेने वाले हैं, क्योंकि अफगान तालिबान अब इस आतंकवादी संगठन को अफगानिस्तान से operate करने नहीं दे सकता। तहरीक-ए-तालिबन पाकिस्तान यानि TTP के खिलाफ पाकिस्तानी सेना द्वारा चलाये गए बड़े operation के बाद वर्ष 2014 में यह संगठन अफ़ग़ानिस्तान में शरण लेने पर मजबूर हो गया था। अब जब TPP दोबारा पाकिस्तान में प्रवेश कर रहा है तो इसने पाकिस्तानी सेना और लोगों के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया है।
सितंबर के महीने में तो लगभग हर दिन कोई ना कोई घटना घटती रही है। Sniper हमलों से लेकर जासूसी करने के आरोप में आम लोगों की हत्या करना तक, TTP ने जनवरी से लेकर जुलाई तक करीब 67 हमलों में 109 लोगों की हत्या कर दी है और इसके साथ ही मार्च से लेकर अब तक TTP करीब 40 पाकिस्तानी सैनिकों की जान ले चुका है। इस साल हुए हमले पिछले साल के मुक़ाबले दोगुने हो गए हैं, क्योंकि इस बार TTP बेहद ज़्यादा ताकतवर और खतरनाक बनकर उभरा है! इसका एक कारण यह भी है कि अब पाक-तालिबान के कई संगठन एकजुट हो गए हैं, और उन्होंने मिलकर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। पाकिस्तान के नॉर्थ-वेस्ट हिस्से में तालिबान अपना वर्चस्व दोबारा कायम करना चाहता है, और इसीलिए वह इतनी ज़्यादा आक्रामकता दिखा रहा है।
पाकिस्तान की स्थिति बेहद असमंजस भरी हो गयी है। एक तरफ वह TTP को काबू में करना चाहता है तो वहीं वह Intra Afghan शांति वार्ता को सफल होते देखना भी नहीं चाहता। साथ ही साथ वह शांति वार्ता को भटकाने के लिए भारत पर दोष डालना चाहता है तो वहीं वार्ता के लिए अपनी पीठ थपथापने से भी बाज़ नहीं आ रहा है। इन सब के बावजूद अफगान-तालिबान और अफगान की सिविल हुकूमत भारत सरकार के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में ही विश्वास रखते हैं।
2014 में पाकिस्तानी सेना के हाथों शिकस्त खाने के बाद पाक-तालिबान दोबारा अपना प्रभाव जमाने के लिए पाकिस्तान में प्रवेश कर चुका है। पाकिस्तान पहले ही मुश्किलों से घिरा है और यहाँ TTP ने उसके लिए और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। पाकिस्तानी सेना और सरकार के लिए आने वाले दिन बेशक दर्द भरे रहने वाले हैं।