“1962 vs 2020”, भारत के घातक SFF और इंडो-तिब्बत सैनिकों ने चीन से वापस छीनी Reqin पोस्ट

1962 में जिसे गंवाया, 2020 में उसे वापस पाया

SFF

(PC-SIRF sach )

मीडिया के विभिन्न स्त्रोतों से आ रही खबरों के अनुसार 29-30 अगस्त को भारत और चीन की सेनाओं के बीच पैंगोंग झील के दक्षिणी क्षेत्र में एक चोटी पर कब्जे के लिए टकराव हुआ। अभी तक भारत और चीन की सेना के बीच पैंगोंग झील के उत्तरी इलाके में ही टकराव की स्थिति बनी थी। इस क्षेत्र में चीन ने अप्रैल-मई में ही फिंगर-4 तक के क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसी क्रम में उसकी तैयारी झील के दक्षिणी छोर में भी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ियों पर कब्जे की थी।

पीएलए ने करीब 500 सैनिकों को इन पहाड़ियों पर कब्जा करने के इरादे से आगे बढ़ाया लेकिन जब तक चीनी सेना अपनी योजना में कामयाब होती भारतीय सैनिकों ने इन पहाड़ियों पर पहले ही कब्जा कर लिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन ने यहां पर सर्विलांस सिस्टम और कैमरे भी लगा रखे थे, जिससे भारतीय सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखी जाए, बावजूद इसके चीनियों को भनक लगने से पहले ही भारतीय सेना इन चोटियों पर काबिज हो गई।

यह इलाका सामरिक रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यदि चीन झील के दक्षिणी छोर पर भी काबिज हो जाता तो पूरे पैंगोंग झील क्षेत्र में उसे बढ़त हासिल हो जाती। इसके कारण भारत को पैंगोंग के अलावा चुशलू इलाके में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता। बता दें कि चुशलू में भारत की एक एयर स्ट्रिप भी मौजूद है जो भारतीय एयरफोर्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, साथ ही पैंगोंग झील स्थित भारतीय सुरक्षा चौकियों को सारी आपूर्ति भी यहीं से होती है। किंतु अब भारत को झील के दक्षिणी छोर पर काफी बढ़त हासिल हो गई है।

यह सब संभव हुआ है भारत की एक स्पेशल फोर्स के कारण. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना को इस बात की आशंका थी कि चीन दक्षिणी छोर पर नया मोर्चा खोल सकता है। इसलिए भारत ने यहां पर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को पहले ही तैनात कर रखा था।

बता दें कि स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन 1962 के युद्ध के बाद चीन के खतरे को देखते हुए किया गया था। इसमें मुख्य रूप से तिब्बत से आये शरणार्थियों को शामिल किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तिब्बती लोग ऊंचे इलाकों में रहने के आदी होते हैं, इसके कारण तिब्बती पठार में चीनियों  को धूल चटाने की क्षमता इनमें स्वतः होती है। अब भारत की इस स्पेशल रेजिमेंट में गोरखा सैनिकों को भी रखा जा रहा है जिन्हें माउंटेन वारफेयर का अच्छा अनुभव होता है। यही कारण था कि चीन की तमाम तैयारियों के बाद भी इन सैनिकों ने चीनी सेनाओं को चकमा देते हुए पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया।

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स भारत की खुफिया एजेंसी R&AW  के अधीन है और इसकी ट्रेनिंग भी उनकी देखरेख में होती है। इसका गठन मूलतः तिब्बती क्षेत्र में युद्ध की स्थिति में आवश्यकता पड़ने पर तिब्बत के अंदरूनी इलाकों में लड़ाई करने हेतु किया गया था। इसकी शुरुआत में इन्हें IB  और अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA द्वारा प्रशिक्षण मिला था। CIA  द्वारा इन्हें पैराशूट द्वारा सीधे दुश्मन के इलाके में भीतर तक घुसपैठ और महत्वपूर्ण सामरिक ठिकानों पर कब्जे की ट्रेनिंग दी गई थी।  यह अमेरिकी Airborne paratroopers  के समान हैं।

अपने गठन के बाद 1965 में SFF  ने नंदादेवी ऑपरेशन में मुख्य भूमिका निभाई थी। इनका उद्देश्य चीन द्वारा विकसित किये जा रहे परमाणु बम की जानकारी हासिल करना था। इस अभियान में भारत की IB  और अमेरिका की CIA  भी शामिल थी।  यही नहीं, SFF  ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान की फौज को चटगांव की पहाड़ियों में धूल भी चटाई थी।

एक बार फिर भारत की SFF  ने साबित किया है कि वह माउंटेन वारफेयर में सर्वश्रेष्ठ हैं। वैसे तो भारत का हर जवान चीन के सैनिकों की आंख निकालने का जज्बा रखता है लेकिन SFF  के साथ एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इसमें वे तिब्बती शरणार्थी भी हैं जिनकी मातृभूमि पर चीनियों ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में इस मुश्किल अभियान में SFF  का जज्बा कैसा रहा होगा हम बस इसकी कल्पना ही कर सकते हैं। वैसे तो लद्दाख के पहाड़ SFF  के जवानों के लिए घर के आंगन जैसे हैं। लेकिन  इसके बाद भी इस मुश्किल अभियान को सफल बनाने वाले बहादुर सिपाहियों की जितनी तारीफ की जाए कम है।

Exit mobile version