कोरोना से पहले ऑस्ट्रेलिया लगभग पूरी तरह चीन की गिरफ्त में आ चुका था। ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक अस्थिरता के चलते चीनी प्रभाव को फलने-फूलने के ज़्यादा अवसर मिले, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया चीन पर बेहद ज़्यादा आश्रित हो गया था। ऑस्ट्रेलियाई सरकार के बार-बार बदलते प्रधानमंत्रियों के कारण यह देश कभी बढ़ते चीनी प्रभाव के खतरे को भांप ही नहीं सका। उदाहरण के लिए वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2015 के बीच इस देश ने 5 अलग-अलग प्रधानमंत्री देखे, जिसके कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी आसानी से इस देश को अपना निशाना बना पाई।
चीन ने इस बीच ऑस्ट्रेलिया के जल स्रोतों और एनर्जी सेक्टर से लेकर यूनिवर्सिटियों तक पर अपना कब्जा जमा लिया। चीन आज ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया जैसे राज्य में तो बड़े पैमाने पर इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से भी जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री आते रहे-जाते रहे, लेकिन चीन के बढ़ते खतरे की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। वर्ष 2015 में जब Malcolm Turnbull ऑस्ट्रेलिया के PM बने, तो देश में कुछ समय के लिए राजनीतिक स्थिरता देखने को मिली थी, लेकिन वर्ष 2018 में उनको भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री बने Scott Morrison, और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया में चीनी अतिक्रमण पर Scomo का बुलडोज़र चलना शुरू हुआ।
वर्ष 2018 में जब Scomo ऑस्ट्रेलिया के PM बने थे, तो यह अंदेशा जताया जा रहा था कि वर्ष 2019 के चुनावों में उनके नेतृत्व में उनकी राजनीतिक पार्टी चुनाव नहीं जीत पाएगी, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट! वर्ष 2019 में उनके गठबंधन Liberal/National गठबंधन की “जादुई जीत” देखने को मिली, और आज Scomo सफलतापूर्वक ऑस्ट्रेलिया की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।
उनके कार्यकाल में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वह देश से चीनी प्रभाव के खिलाफ लड़ाई शुरू करने में सफल रहे हैं, जिसे अब तक उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री नकारते आए थे। ऑस्ट्रेलिया आर्थिक तौर पर बीजिंग के पंजो में फंस चुका था। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के करीब 48 प्रतिशत एक्स्पोर्ट्स अकेले चीन को ही किए गए थे। हालांकि, अब Scomo ऑस्ट्रेलिया की पिछली सरकारों द्वारा की गयी गलतियों को ठीक करने में लगे हैं।
कोरोना के बाद Scomo को चीन विरोधी जंग छेड़ने का बढ़िया मौका मिला, और उसी के साथ ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश बन गया जिसने आधिकारिक तौर पर चीन के Wet Markets की अंतर्राष्ट्रीय जांच करने की मांग उठा डाली। वे जानते थे कि बीजिंग इसपर ऑस्ट्रेलिया से गुस्सा होकर उनके खिलाफ आर्थिक मोर्चे पर कार्रवाई कर सकते हैं, इसके बावजूद Scomo अपने मूल्यों से पीछे नहीं हटे। मॉरिसन ने एक बयान जारी कर कहा था “हम एक लोकतान्त्रिक देश हैं, हम खुले तौर पर सबसे व्यापार करते हैं, लेकिन इसके बदले में हम किसी की धमकियों के कारण अपने मूल्यों से समझौता नहीं कर सकते”।
गुस्साए और भड़के चीन ने इस बीच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जमकर कार्रवाई की, चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले Barley से लेकर शराब तक पर पाबंदी लगा दी और ऑस्ट्रेलिया की तुलना “जूते की तली में लगी chewing gum” से भी कर डाली, लेकिन इसका Scomo पर कोई असर नहीं हुआ। Scomo इस लड़ाई को और भीषण करते गए। हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने यह घोषणा की है कि वे एक Foreign Relations कानून लाने वाले हैं, जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार आसानी से किसी भी राज्य द्वारा पक्की की गयी विदेशी डील पर पुनर्विचार कर सकेंगे। माना जा रहा है कि इस कानून के बाद वे विक्टोरिया राज्य द्वारा चीन के साथ किए गए BRI के समझौतों पर कुल्हाड़ी चला सकते हैं।
Scomo ना सिर्फ चीनी प्रभाव को खत्म करने की दिशा में काम कर रहे हैं, बल्कि वे लगातार ऑस्ट्रेलिया और भारत के सम्बन्धों को मजबूत करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया अब चीन पर अपनी निर्भरता कम कर भारत जैसे देशों के साथ व्यापार करना चाहता है। ऑस्ट्रेलिया भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के साथ रिश्ते मजबूत कर अपनी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करना चाहता है। यह भी माना जा रहा है कि जल्द ही भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया मिलकर अपनी-अपनी सप्लाई चेन से चीन को बाहर निकालने पर काम करने वाले हैं।
Scomo के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया चीन विरोधी Quad में भी भरपूर योगदान दे रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने इसी वर्ष अपनी 10 वर्षीय सुरक्षा नीति को भी जारी किया है जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया long range missiles की खरीद कर उन्हें अहम ठिकानों पर तैनात करेगा। Scomo वही व्यक्ति हैं जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया को एक मजबूत नेतृत्व प्रदान किया है। उन्ही के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया चीनी अतिक्रमण के खिलाफ खड़ा होना सीखा है। इसके लिए वे सदैव प्रशंसा के पात्र रहेंगे।