हाल ही में कंगना रनौत और शिवसेना विवाद ने एक नाटकीय मोड़ लिया, जब बीएमसी ने अवैध निर्माण का हवाला देते हुए कंगना के ऑफिस के कई हिस्से ध्वस्त किए। कंगना ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की, और फलस्वरूप बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीएमसी को इस अप्रत्याशित निर्णय के लिए हड़काते हुए कंगना रनौत के ऑफिस के विध्वंस पर रोक लगा दी।जहां एक ओर शिवसेना को इस कदम के लिए पूरे देश भर से अपमान और गालियां मिल रही हैं, तो वहीं शरद पवार ने भी इस निर्णय के लिए शिवसेना, और प्रमुख तौर से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को आड़े हाथों लिया है। शरद पवार के अनुसार, “मुंबई में कई ऐसी अवैध इमारतें हैं। ऐसे में बीएमसी अधिकारियों ने ऐसा निर्णय क्यों लिया? यह देखने की जरूरत है। बीएमसी की कार्रवाई ने लोगों को एक अनावश्यक अवसर दे दिया है कि वे इस पर बोलें। कंगना के ही इमारत पर कारवाई क्यों?”
शरद पवार के बयान से ये पूरी तरह स्पष्ट है कि वे किसी भी स्तर पर शिवसेना का इस कुकृत्य में साथ नहीं देने वाले। लेकिन यह रुख हाल ही में नहीं लिया गया है, बल्कि पिछले कई महीनों में शिवसेना के स्वभाव को देखते हुए शरद पवार ने यह निर्णय यह लिया। इससे कुछ महीने पहले, जब शरद के पोते पार्थ ने सुशांत सिंह राजपूत के संदेहास्पद मृत्यु की गुत्थी सुलझाने हेतु सीबीआई से निष्पक्ष जांच की मांग की, तो शरद पवार ने बड़ी ही चतुराई से अपना बयान दिया, “हमारे पोते (भतीजे के बेटे) ने जो कुछ भी कहा है हम उसे तनिक भी महत्व नहीं देते हैं। वह अभी अपरिपक्व हैं….मैंने स्पष्ट रूप से कहा है कि हमें महाराष्ट्र पुलिस पर 100 फीसदी भरोसा है। लेकिन, अगर कोई अब भी चाहता है कि मामले की जांच सीबीआई से हो तो इसका विरोध करने का कोई कारण नहीं है।“
अब सीबीआई की जांच का विरोध न करने की बात करना कोई आम बात नहीं है। जब शिवसेना हाथ धोके सुशांत सिंह राजपूत के परिवार के पीछे पड़ी हो, तो ऐसे में सीबीआई जांच का विरोध न करने की बात सार्वजनिक रूप से बोलना एक स्पष्ट संदेश देता है – पवार परिवार की राजनीति का कोई तोड़ नहीं। जहां उन्हें अपना लाभ दिखेगा, वहीं वे निवेश करेंगे।
शरद पवार की राजनीतिक सूझबूझ पर कोई भी संदेह नहीं कर सकता है। हारी हुई बाज़ी को कैसे जीतना है, इस कला में वे काफी निपुण हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने 2019 में अकेले दम मोर्चा संभाला और 78 वर्ष की आयु में भी उन्होंने भाजपा और शिव सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव से संबन्धित एक रैली में मूसलाधार वर्षा में भी शरद पवार ने न केवल अपना भाषण दिया, अपितु उस क्षेत्र से संबंधित सतारा लोकसभा सीट एवं विधानसभा सीट पर एनसीपी की बढ़त भी सुनिश्चित कराई।
ऐसे में शरद पवार भली-भांति जानते हैं कि उद्धव सरकार की वर्तमान गतिविधियों से महा विकास अघाड़ी की सरकार को ध्वस्त होने में अब ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं। लेकिन वे न तो अपनी छवि खराब करना चाहते हैं, और न ही वे ये संदेश देना चाहते हैं कि उन्होंने उद्धव ठाकरे से सभी प्रकार के नाते तोड़ लिए हैं। ऐसे में शरद पवार ने अपने बयान से वो गुगली डाली है जिसे देख राजनीति के बड़े बड़े सूरमा भी चक्कर खा जाएँ।
सच कहें तो शरद पवार ने चाहे जितने अच्छे-बुरे कर्म किए हों, पर उनकी राजनीतिक सूझबूझ पर कोई संदेह नहीं कर सकता। इसीलिए वे ‘येन केन प्रकारेण’ कई वर्षों से महाराष्ट्र की सत्ता में अपना एक अलग, पर अहम स्थान बनाए हुए हैं और इसीलिए उनका वर्तमान बयान उनकी राजनीतिक सूझबूझ का एक बेहतरीन उदाहरण भी देता है।