तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा को केंद्र बनाकर काम कर रहा आतंकी संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान की सरकार को अस्थिर करना रहा है। तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तानी सरकार और सेना का संघर्ष इतना खूंखार रहा है कि 16 दिसंबर को TTP ने पाकिस्तान के पेशावर स्थित सैनिक स्कूल पर हमला कर दिया था। इसमें 7 आतंकियों सहित 156 लोग मारे गए थे,जिसमें कई बच्चे भी थे।
अब यही संगठन पाकिस्तान में चीनी आर्थिक इकाइयों और नागरिकों को मारने की प्लानिंग कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक TTP के तीन धड़े जो 2014 में नेतृत्व के प्रश्न पर अलग हो गए थे, वे बदलते हालात में पुनः साथ आये हैं और इनका उद्देश्य चीनी निवेश को नुकसान पहुँचाकर पाकिस्तान सरकार और सेना के लिए मुसीबत खड़ी करना है।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में CPEC के तहत चीन के कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इनमें से कई अति महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट खैबर पख्तूनख्वा में है। जैसे किनारी हाइड्रोपावर स्टेशन और एबटाबाद का हवेलियन ड्राई पोर्ट प्रोजेक्ट आदि। साथ ही ये सभी प्रोजेक्ट जिस हाइवे पर स्थित हैं वह आगे गिलगिट बाल्टिस्तान तक जाता है एवं काराकोरम दर्रे के पार चीन में नेशनल हाईवे 314 से मिलता है। यह हाइवे आगे शिंजियांग प्रान्त की राजधानी उरुम्क़ी से जा मिलता है।
चीन शिंजियांग प्रान्त को लेकर संवेदनशील रहता है क्योंकि यहाँ उसने उइगर मुसलमानों को कन्संट्रेशन कैम्पों में बंद कर रखा है। उइगर मुसलमानों का मुद्दा पाकिस्तान में चीन के खिलाफ बढ़ते आक्रोश का एक महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे में खैबर पख्तूनख्वा की भौगोलिक स्थिति चीन को बलूचिस्तान और सिंध से ज्यादा चिंता में डाल रही है।
TTP का खैबर पख्तूनख्वा में सक्रिय होना उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान जिस शांति समझौते के लिए बात कर रहा उसके अनुसार वह विदेशी आतंकी संगठनों को कोई मदद एवं शरण नहीं देगा। ऐसे में TTP पर अफगानिस्तान छोड़ने का दबाव बढ़ गया है। उसके पास खैबर पख्तूनख्वा में प्रभाव बढ़ाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। अन्यथा उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
TTP का पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ संघर्ष चलाने का कारण दोनों पक्षों का नस्लीय अंतर भी है। पाकिस्तानी सेना में अधिकांश पंजाबी हैं जबकि TTP पाक अफगान बॉर्डर की जनजाति समूह है जो सेना द्वारा किये जा रहे दमन के खिलाफ हैं। नस्लीय दमन एवं अलगाव पाकिस्तान की बड़ी पुरानी समस्या है। चीन ने पाकिस्तान को आदेश दिया है कि वह नस्लीय आधार पर चल रहे अलगाववादी संगठनों को काबू करे।
पाकिस्तान की अस्थिरता चीन के आर्थिक सामरिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। पहले ही बलूचिस्तान और सिंध में भी चीनियों के खिलाफ संघर्ष चल रहे हैं, ऐसे में TTP का खैबर पख्तूनख्वा में प्रभावी होना चीन के लिए बुरे सपने से कम नहीं है।