थाईलैंड के युवा और छात्र अपने देश को चीनी चंगुल से छुड़ाकर लोकतन्त्र को बचाने में लगे हैं

थाइलैंड के अचानक से बदले-बदले तेवर का कारण यहाँ है!

थाइलैंड

चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों को लेकर न केवल भारत में बल्कि अनेक देशों में विरोध की बयार चल रही है जिससे चीन को लगातार आर्थिक मोर्चे पर नुकसान हो रहा है। ताजा मामला थाइलैंड का है जहां सरकार ने चीन से दो साल के लिए चीन निर्मित पनडुब्बियों की खरीद को टाल दिया है। इस फ़ैसले की बड़ी वजह वहां के युवाओं का चीन के खिलाफ विरोध था। युवाओं द्वारा सरकार के फैसलों का संगठित रूप से विरोध चीन के प्रभाव के बावजूद थाइलैंड के लोकतंत्र को मजबूत कर रहा है।

दरअसल, थाइलैंड के संसदीय बजट समिति ने वहां की रॉयल नेवी से कहा कि पनडुब्बी खरीदने के लिए फंड की इस वित्तीय वर्ष में कटौती की जा रही है। जिसके बाद प्रधानमंत्री Prayut Chan-o-cha के प्रवक्ता अनुचा बुरापाचसिरी (Anucha Burapachaisri) ने बताया कि रक्षा मंत्री का पदभार संभाल रहे प्रायुत ने इस सौदे को 2022 तक के लिए टाल दिया है। खबरों के मुताबिक सात वर्षों के लिए दो युआन श्रेणी की S26T पनडुब्बियों की कीमत करीब 720 मिलियन डॉलर (22.5 billion baht) थी। इस खरीद के जरिए चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता था। जिसके लिए सरकार ने 3 बिलियन बाट की शुरुआत भुगतान करने की मांग की थी लेकिन सरकार को जन विरोधों के कारण फैसला वापस लेना पड़ा है।

थाइलैंड सरकार का इस फैसले को वापस लेना सरकार के खिलाफ युवाओं के विरोध को माना जा रहा है। लोग मंदी के दौर में सरकार के इस खर्च को बेतुका बता रहे हैं। इन युवाओं का लगातार देश में राजनीतिक सुधारों की मांग करना वहां की प्रायुत सरकार के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है। इस सौदे से जुड़े बिल को जिस तरह से सरकार द्वारा पास कराया गया उसने जनता का ध्यान आकर्षित किया और फैसलों में अनियमितता सरकार के लिए मुसीबत बन गई। लोगों ने कहा, प्रधानमंत्री को पनडुब्बियों और आर्थिक स्थिति में से किसी एक को ही चुनना होगा।”

रॉयल थाई नौसेना के चीफ ऑफ स्टाफ Sittiporn Maskasem ने कहा कि उन्हें पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है। उन्होंने अपने बयान में जनता द्वारा चलाए जा रहे विरोध को गलत बताया है। गौरतलब है कि थाइलैंड के लगभग सभी दक्षिण पूर्वी देशों के पास अपनी पनडुब्बियां हैं। जिसमें वियतनाम के पास सबसे ज्यादा 6, इंडोनेशिया के पास 5, इंडोनेशिया के पास 4 और मलेशिया के पास 2 पनडुब्बियां हैं। दूसरी ओर थाइलैंड के पीएम Prayut Chan-o-cha ने कहा कि देश को पनडुब्बियों की जरूरत है और अगर भविष्य में देश के साथ कुछ गलत होता है तो सभी को उसकी जिम्मेदारी लेनी होंगी।

बता दें कि थाई प्रदर्शनकारी, जो ‘Milk Tea Alliance’ का हिस्सा हैं, वो इस बात को समझ चुके हैं कि उनकी सरकार किस तरह से चीन के आगे घुटने टेक चुकी है। एक तरफ मेकांग नदी पर बने बांध को लेकर थाइलैंड के साथ विवाद है जिस कारण कई क्षेत्र पानी की कमी से जुझ रहे हैं, दूसरी तरफ कोरोना महामारी की मार के बाद भी थाई सरकार फिर भी चीन के साथ डील को जारी रखे हुए थे। इस कारण थाईलैंड में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला।

थाइलैंड में जनता के अपनी सरकार को लोकतंत्र विरोधी सरकार मानती है।उसके इस विरोध का बड़ा कारण ये भी है कि वहां चीन विरोधी भावनाएं जनम ले चुकी हैं। थाइलैंड के युवा वहां के लोकतंत्र में सेना के आदेश पर चल रही प्रायुत की सरकार से नाखुश हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि प्रायुत को सेना ने जीत का वादा किया था और वैसा ही हुआ इसलिए वे लोकतंत्र के नाम पर सेना द्वारा लागू संविधान से नाराज हैं। वहीं ताईवान, हांगकांग, और थाईलैंड की जनता का आनलाइन मिल्क टी अलाइंस की लोकतांत्रिक एकता ने उन्हें थाइलैंड में चीन के प्रभाव को दुनिया के सामने रखने का एक बेहतरीन मौका मिला है। इसकी शुरुआत थाई और चाइनीज इंटरनेट यूजर्स के बीच विवाद से हुई थी। थाइलैंड के लोकतंत्र के लिए लड़ रहे लोगों हांग कांग और ताईवान के लोगों का इंटरनेट के माध्यम से पूर्ण समर्थन मिल रहा है।

दरअसल, कोरोनावायरस के इस दौर में थाइलैंड की आर्थिक स्थिति काफी जर्जर हो गई है। देश का बड़ा आर्थिक स्रोत पर्यटन है जो इस वक्त बिल्कुल ठप पड़ गया है। आर्थिक और सामाजिक परिषद के मुताबिक थाइलैंड की अर्थव्यवस्था में 2020 के वित्तीय वर्ष में 7.3 से 7.8 तक का दबाव देखने को मिल सकता है जो कि 1998 के बाद का सबसे बड़ा दबाव होगा। ऐसे में अब पनडुब्बियों की खरीदारी के सरकारी फैसले ने जनता को नाराज कर दिया और नतीजा ये हुआ कि इंटरनेट और ट्विटर के माध्यम से सरकार विरोधी कैंपेन चलने लगे। इस दौरान सबसे ज्यादा ट्रेंडिंग #SayNoToSubs रहा, जबरदस्त विरोधों का अंजाम ये हुआ कि सरकार को अपने फ़ैसले से पीछे हटना पड़ा।

आर्थिक मामलों को लेकर सजग हुई थाइलैंड की जनता और चीन के खिलाफ लगातार देश में बनी हवा के कारण थाईलैंड सरकार के फैसले को पलटकर चीन को साइड लाइन करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की ओर एक कदम बढ़ाया है। जिससे भविष्य में सरकार जनहित के कार्यों को इस तरह के सौदों से अधिक महत्व देगी साथ ही देश में चीन का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पर कम होगा।

 

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