अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बर्बादी की ओर बढ़ रही है। अमेरिका पहले ही चीन में सेमीकंडक्टर के निर्यात एवं उत्पादन पर प्रतिबंध लगाकर एवं अपने क्लीन नेटवर्क प्रोग्राम द्वारा उसके टेलिकॉम सेक्टर को बर्बाद करने की योजना बना चुका है। अब वह चीन के खाद्यान के व्यापार को भी खत्म करने के लिए प्रयास कर रहा है।अमेरिका चीन से आयात होने वाले कपास और टमाटरों के आयात पर प्रतिबंध लगाने जा रहा है। यह दोनों उत्पाद चीन के शिंजियांग प्रान्त में उपजाए जाते हैं और इनके उत्पादन का उस प्रान्त की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका का कस्टम एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन विभाग(सीबीपी) एक ड्राफ़्ट तैयार कर रहा है जिससे वो बंधुआ मज़दूरी के शक़ के आधार पर किसी आयात को रोक अपने कब्ज़े में ले सकता है। अमेरिका का आरोप है कि शिंजियांग में टमाटर और कपास के उत्पादन हेतु, उइगर मुसलमानों से बंधुआ मजदूरी करवाई जा रही है।
यह सर्वविदित है कि चीन ने शिंजियांग के उइगर मुसलमानों पर कठोर प्रतिबंध लगा रखे हैं। उनको यातना शिविरों में रखा जाता है। उनकी बढ़ती जनसंख्या रोकने के लिए उनकी जबरन नसबंदी करवाई जाती है। उनकी मस्जिदों को तोड़कर चीन शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और शौचालय बना रहा है। साथ ही रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल में मजदूरों की कमी होने पर उनको जबरन श्रम कार्य में लगाया गया था।
इन सब कारणों ने अमेरिका को चीन के खिलाफ कदम उठाने का अवसर दे दिया है। हालांकि, मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर चीन के विरुद्ध यह कोई पहली कार्रवाई नहीं है। इसके पूर्व उइगर मुसलमानों पर अत्याचार के कारण अमेरिका ने चीन के कई अधिकारियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था।
गौरतलब है कि टमाटर और कपास उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध राष्ट्रपति ट्रंप को चुनावी फायदा भी पहुँचाएगा। ट्रंप प्रशासन ने चीन के साथ ट्रेड डील करते समय यह शर्त रखी थी कि चीन अमेरिका के कृषि उत्पादों का भी आयात करे। ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका में कृषि सेक्टर का पतन अनवरत जारी है। ऐसे में चीन से आयात पर प्रतिबंध अमेरिका के घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देगा। कपास निर्यात के मामले में चीन के बाद अमेरिका और भारत का स्थान है। ऐसे में मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण चीन पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का अनुसरण शुरू हुआ तो इसका सीधा फायदा अमेरिका और भारत जैसे देशों को होगा।
उइगर मुसलमानों का मामला चीन को आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर कर रहा है। पश्चिमी देशों में तो इनके खिलाफ आवाज़ उठ ही रही है, मुस्लिम जगत में भी चीन के प्रति आक्रोश बढ़ रहा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण पाकिस्तान है। पाकिस्तान में TTP जैसे संगठन उइगर मुसलमानों के मुद्दे के कारण चीन की CPEC योजना के खिलाफ हो गए हैं। निश्चित रूप से अब भी चीन मुस्लिम जगत के विद्रोह को बहुत हद तक शांत रखे हुए है लेकिन यह तय है कि यह मुद्दा बारूद के ढेर जैसा बन गया है।
अब तक कट्टरपंथी इस्लाम की आग चीन तक नहीं पहुँची है। ऐसा इसलिए क्योंकि जो देश कट्टरपंथ की नर्सरी हैं, जैसे पाकिस्तान, तुर्की, ईरान आदि वे अभी चीन के पक्ष में हैं। चीन का वैश्विक व्यवस्था में जैसे-जैसे दबदबा कम होगा उसके खिलाफ विरोध के स्वर तेज होंगे।तब उइगर मुसलमानों की लड़ाई चीन के लिए और भी मुसीबत बन जाएगी। शिंजियांग में पहले ही आक्रोश है और अमेरिका इसका फायदा उठाना चाहता है। अतः यह कहा जा सकता है कि चीन की बर्बादी के दिन शुरू हो गए हैं।