अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देश वेनेज़ुएला को दुनिया में चीन का आखिरी गढ़ कहा जाये, तो यह गलत नहीं होगा। आज इस देश में दो सरकारें चल रही हैं। एक सरकार का नेतृत्व वेनेज़ुएला के नेता Juan Guaido कर रहे हैं, जिसका अमेरिका, कनाडा समेत दक्षिण अमेरिका की अधिकतर ताकतें समर्थन करती हैं। वहीं, दूसरी सरकार का नेतृत्व वेनेज़ुएला के तथाकथित लोकतान्त्रिक राजनेता और राष्ट्रपति निकोलस मदुरो करते हैं, जिसे चीन, रूस और भारत जैसे देश मान्यता प्रदान करते हैं।
मानवाधिकारों का उल्लंघन करने, विपक्षी नेताओं को जेल में डालने और वेनेज़ुएला में तानाशाही को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2017 में अमेरिका ने वेनेज़ुएला पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था, जिसके बाद कच्चे तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस देश की इकॉनोमी को बड़ा झटका लगा था। हालांकि, प्रतिबंधों के बावजूद तीन सालों में अमेरिका मदूरो सरकार को सत्ता से हटा नहीं पाया है, क्योंकि मदूरो के सिर पर चीन का हाथ है। वहीं दूसरी ओर अधिकतर पश्चिमी ताकतों द्वारा समर्थित Juan Guaido भी लगातार कमजोर पड़ते जा रहे हैं।
वेनेज़ुएला पर प्रतिबंधों के बाद अमेरिका ने सभी देशों को इस देश से तेल न खरीदने का आह्वान किया था, जिसके बाद भारत ने वेनेज़ुएला से तेल खरीदना बंद कर दिया था। हालांकि, रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रतिबंधों के बावजूद चीन अलग-अलग तरीकों से वेनेज़ुएला से कच्चा तेल आयात करता रहा, जिससे मदूरो सरकार को बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक समर्थन हासिल हुआ। माना जाता है कि रूस और चीन जैसे देशों की कंपनियां अब भी इस देश से तेल आयात करती हैं, जो मदूरो सरकार को मजबूती प्रदान करती हैं। पिछले कुछ सालों में अमेरिकी प्रतिबंधों के सही से लागू नहीं होने के कारण और विरोधी नेता Guaido की कम होती लोकप्रियता की वजह से मदूरो सरकार को सत्ता से नहीं हटाया जा सका है। आज भी वेनेज़ुएला की सेना और अन्य संघीय संस्थाएं मदूरो सरकार के अंतर्गत ही काम करते हैं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक वेनेज़ुएला पर प्रतिबंध लगने के बाद चीन ने रूस की सरकारी कंपनी Rosneft की Switzerland यूनिट की सहायता से वेनेज़ुएला के कच्चे तेल का आयात जारी रखा। बाद में जब अमेरिका ने Rosneft पर प्रतिबंधों का ऐलान किया तो चीन ने बाद में कई बिचौलियों की मदद से तेल का आयात जारी रखा और इसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ऐसे दिखाया जैसे वह तेल मलेशिया से आयात किया गया हो।
NPR की एक रिपोर्ट के मुताबिक मदूरो सरकार के अब तक सत्ता में बने रहने का दूसरा कारण है विरोधी नेता Juan Guaido का कमजोर साबित होना। उनके पास ना तो सेना का समर्थन है और ना ही अब उनके कहने पर लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक Juan Guaido का खेमा खुद दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक खेमा चाहता है कि ताकत का इस्तेमाल करके मदूरो सरकार को उखाड़ फेंका जाये, तो वहीं दूसरा खेमा बातचीत का रास्ता अपनाना चाहता है। हालांकि, इस बीच Juan Guaido की लोकप्रियता लगातार कम होती जा रही है। अब वेनेज़ुएला में सरकार विरोधी प्रदर्शन कम ही देखने को मिलते हैं।
अमेरिका को अगर वाकई वेनेज़ुएला से मदूरो सरकार को बाहर करना है, तो उसे इन दो समस्याओं का समाधान करना ही होगा। वेनेज़ुएला पर प्रतिबंधों का सख्ती से पालन कराके और Juan Guaido की जगह किसी दूसरे व्यक्ति और लोकप्रिय राजनेता को विरोधी खेमे का नेता घोषित कर अमेरिका मदूरो सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। मदूरो सरकार को चीनी सरकार का पूरा समर्थन हासिल है और ऐसे में अगर मदूरो सरकार सत्ता से बाहर होती है, तो यह चीन के लिए कूटनीतिक हार साबित होगी। मदूरो सरकार के बाहर होने का मतलब यह भी होगा कि वेनज़ुएला पर से अमेरिका अपने सभी प्रतिबंधों को हटा लेगा और इस देश में दोबारा संपन्नता आ सकेगी। वेनेज़ुएला के लोग भी लोकतन्त्र और मानवाधिकारों के अधिकारी हैं और एक मदूरो के कारण वेनेज़ुएला के करीब 2.8 करोड़ लोगों को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। वेनेज़ुएला के लोगों की भलाई के लिए यह ज़रूरी है कि चीन समर्थित मदूरो सरकार को उखाड़ा जाए।