इधर चीन के Keyboard warriors भारत को धमकाने में लगे हैं, उधर चीनी रक्षा मंत्री बैठक करने की भीख मांग रहा है

“प्लीज़ मेरे साथ बातचीत कर लो”: चीन

चीन

लगातार बदल रहे वैश्विक परिदृश्य और भारत से हर एक मोर्चे पर पटखनी खाने के बाद अब चीनी रक्षामंत्री ने भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठक करने की इच्छा जताई है। भारतीय रक्षा मंत्री शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO सम्मेलन हेतु मॉस्को गए हैं और उनके चीनी समकक्ष ने इस दौरान भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता का प्रस्ताव रखा है। स्वाभविक है कि, चीन के व्यवहार में यह नर्मी शांति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के कारण नहीं आई है, बल्कि उसे भय है कि, भारतीय सेना सीमा पर अपनी आक्रामक कार्रवाई और तेज ना कर दे।

दरअसल, चीन सेना द्वारा Pangong Tso झील के दक्षिणी छोर पर नया मोर्चा खोलने की कोशिश को भारतीय सेना ने असफल बना दिया था। भारत ने ब्लैक टॉप हिल पर कब्ज करने के बाद Pangong इलाके में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया है। इसके अलावा उत्तरी भाग के फिंगर एरिया में भी भारतीय सेना ने फिंगर 4 की घेराबंदी शुरू कर दी है। भारतीय सेना की संभावित नीति यह है कि, सर्दियों से पहले पैंगोंग इलाके में महत्वपूर्ण स्थानों को अपने कब्जे में ले लिया जाए ताकि सर्दियों के दौरान बर्फ गिरने के बाद भी भारतीय सेना की स्थिति इलाके में कमजोर ना होने पाए। भारतीय सेना की आक्रामक कार्रवाई के कारण चीन बुरी तरह घबरा गया है।

इस घटना के बाद, चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत को भले ही गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी हो, किंतु चीनी रक्षा मंत्री का ताज़ा व्यवहार बताता है कि, चीन भारत के साथ किसी भी स्थिति में सैन्य टकराव को टालना चाहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीनी विदेश मंत्री Ground Zero की वास्तविक स्थिति से भलीभांति परिचित हैं। लेकिन ग्लोबल टाइम्स ने मोर्चा सम्भालते हुए भारत के खिलाफ जहर उगलना बरकरार रखा है।

कुछ दिनों पूर्व भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी कहा था कि, यदि मिलिट्री और कूटनीतिक वार्ता असफल होती है तो सेना के पास सैन्य कार्यवाही का विकल्प भी उपलब्ध हैं। 29-30 अगस्त की दरमियानी रात को भारतीय सेना की SFF द्वारा ब्लैक टॉप पर की गई कार्यवाही ने विपिन रावत के बयान की पुष्टि भी कर दी।

पहले भी हमने अपनी एक रिपोर्ट में यह बताया था कि, चीन की सेना युद्ध से अधिक युद्ध का माहौल बनाने पर विश्वास रखती है। कूटनीति की भाषा में इसे Coercive Diplomacy कहा जाता है। Coercive Diplomacy  में शत्रु देश को अपनी सैन्य ताकत का भय दिखाकर पीछे धकेल दिया जाता है। पर चीन यह भूल गया कि, ये नया भारत सब किसी भी किस्म की गीदड़-भभकियों से नहीं डरता। चीन की नासमझी का ही नतीजा था कि गलवान में उसके 80 सैनिक मारे गए थे।

चीन की समस्या यह है कि, वह इस समय अपनी आंतरिक उथल-पुथल से जूझ रहा है। जिनपिंग के विरुद्ध ना सिर्फ सामान्य नागरिकों में बल्कि सरकार में भी गुस्सा बढ़ रहा है। यही कारण है कि, चीन लगातार अपने पड़ोसियों के साथ संघर्ष की स्थिति पैदा कर रहा है। जिनपिंग की नीति यह है कि, किसी भी प्रकार से लोगों का ध्यान आंतरिक मुद्दों से हटाया जाए और देश में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाकर आंतरिक कलह को रोका जाए।

भारत का क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में दबदबा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में चीन दुनिया के सामने यह साबित करना चाहता था कि वह युवा भारत से कई गुना मजबूत है। लेकिन गलवान घाटी में मिली करारी हार और अब पैंगोंग झील में भारतीय सेना के एक्शन के बाद चीन किसी प्रकार से अपनी इज्जत बचाना चाहता है। यही कारण है कि उसके विदेशमंत्री अब बातचीत के लिए बेताब हो रहे हैं।

अब भारतीय सेना ने चीन को बलपूर्वक चुशूल इलाके से खदेड़ने की नीति पर कार्य शुरू किया है, तो चीन को डर सता रहा है कि, वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी रही सही इज्जत भी समाप्त हो जाएगी। ग्लोबल टाइम्स के ऑफिस में बैठकर भारत से युद्ध की बात लिखना आसान है लेकिन वास्तविकता यह है कि चीन की सेना में युद्ध लड़ने की क्षमता नहीं है। यही कारण है कि, जब वास्तविक युद्ध का खतरा मंडराने लगा है तो चीन ने शांति की पहल शुरू कर दी है।

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