पाकिस्तान के आतंकी, राजनेता, सेना और कट्टरपंथी- सब आखिर नवाज शरीफ से नफरत क्यों करते हैं?

पाकिस्तान में लोकतंत्र की बात करना अपराध ही है

नवाज शरीफ

पाकिस्तान में शरीफ परिवार हमेशा सुर्खिययों में बना रहता है। इसके कई कारण हैं, उनमे से पहला लोकतन्त्र के लिए आवाज उठाना  है और दूसरा पाकिस्तान आर्मी के गले की हड्डी बनना।  इन दोनों  कारणों से नवाज शरीफ और उनके परिवार से न सिर्फ सेना बल्कि आतंकवादी, राजनेता, और कट्टरपंथी सभी नफरत करते हैं। दरअसल, नवाज और मरियम शरीफ की पिता-पुत्री की जोड़ी ने इस्लामाबाद में न केवल इमरान खान के नेतृत्व वाली कठपुतली सरकार पर तीखे हमले किए, बल्कि पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भी विरोध जारी रखा है।

पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान में इमरान खान और सेना के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं ,  जिसमें इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से तत्काल हटाने की मांग की गई है, जिसमें मरियम नवाज शरीफ सबसे प्रखर रहीं हैं। बता दें कि मरियम नवाज शरीफ को पाकिस्तान में लोकतंत्र के मुखर समर्थक के रूप में देखा जा रहा है, जिन्होंने देश के सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ एक आक्रामक अभियान चलाया है, खासकर तब जब मौजूदा सरकार सेना और ISI के साथ मिल कर वर्ष 2018 से ही उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ प्रतिशोध का खेल खेला है।

बुधवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अवैध रूप से कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान की विधान सभा के लिए होने वाले चुनावों को 15 नवंबर को कराने की मंजूरी दे दी। यह प्रस्ताव किसी और का नहीं बल्कि सेना का था जिसने अवैध रूप से कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में चुनाव के लिए हामी भरी थी। इस पर मरियम नवाज शरीफ ने बिना किसी डर के पाकिस्तानी सेना पर हमला बोला और कहा कि, “बैठक को गिलगित बाल्टिस्तान मुद्दे पर बुलाया गया था। गिलगित बाल्टिस्तान एक राजनीतिक मुद्दा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे सरकार के प्रतिनिधियों को निपटना है। ऐसे फैसले संसद में लेने होते हैं न कि GHQ में। मुझे नहीं पता कि नवाज शरीफ इस बैठक के बारे में जानते थे या नहीं। सेना को ऐसे मुद्दे के लिए राजनीतिक नेताओं को नहीं बुलाना चाहिए और न ही राजनीतिक नेताओं को जाना चाहिए था। जो इस पर चर्चा करना चाहता है वह संसद में आ सकते  हैं। ”

मरियम से पहले उनके पिता नवाज शरीफ भी कई बार पाकिस्तानी सेना और उसके कठपुतलियों के खिलाफ बोल चुके हैं।

उन्होंने बताया था कि पाकिस्तानी सेना ने कैसे लोगों की वोट की पवित्रता को हमेशा रौंदा है। उन्होंने विपक्षी नेताओं की भीड़ को भी याद दिलाया कि देश का कोई भी निर्वाचित प्रधानमंत्री देश की राजनीति और शासन में सेना के हस्तक्षेप के कारण पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है।

बता दें कि वर्ष 2018 से ही पाकिस्तान की सेना पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ प्रतिशोध की राजनीति कर रही है। न्यायपालिका में सेना की भारी संलिप्तता के कारण उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी करार दिया गया था, जिसके बाद उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, एक वर्ष से भी कम समय में, चिकित्सा स्थितियों के कारण, शरीफ को इलाज के लिए लंदन ले जाया गया। वह तब से यूनाइटेड किंगडम में है।

नवाज शरीफ एक सभ्य राजनीतिक नेता हैं, जो सत्ता में रहते हुए कभी भी पाकिस्तानी सेना और ISI के इशारों पर नहीं नाचे और उनके खिलाफ बोलते रहे। यह सेना और ISI के लिए पर्याप्त कारण है कि वह उस आदमी से छुटकारा पा ले, और उसकी जगह इमरान खान जैसे कठपुतली को किसी भी तरह प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया जाए। प्रधानमंत्री के रूप में नवाज शरीफ को तीन बार सत्ता में बहुमत मिली लेकिन तीनों बार ही वे अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर सके। उन्हें सेना के लगभग सभी कुकर्मों का ज्ञान है।

हालांकि, प्रधानमंत्री के रूप में भी वे भारत समर्थक नहीं थे, क्योंकि पाकिस्तान जैसे देश में भारत का समर्थन करना अपने ही राजनीतिक कैरियर की आत्महत्या करनी होगी। परंतु वह इमरान जैसे सेना के कठपुतली भी नहीं थे जो रात दिन कश्मीर कश्मीर रट लगाए रहता है।

दरअसल, पठानकोट आतंकी हमले से पहले नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच में समीकरण बदलने की भी आशा दिखाई देने लगी थी। चाहे वह बहुराष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों के दौरान द्विपक्षीय बैठकें हों या शरीफ के जन्मदिन पर पीएम मोदी की पाकिस्तान में आश्चर्यजनक रूप से लैंडिंग हो, दोनों ने इस बात की उम्मीद जताई थी दोनों देशों के बीच संबंध दोस्ताना हो सकते हैं। लेकिन पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को यह नहीं पचा और उसने पठानकोट आतंकी हमला करवा दिया, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान को बहिष्कृत करना शुरू किया।

जब भी नवाज शरीफ पाकिस्तान की सत्ता में रहे हैं तब पाकिस्तानी सेना ने ISI के साथ मिल कर भारत के खिलाफ साजिश रची और यह सुनिश्चित किया कि दोनों देशों के बीच रिश्ते कभी सामान्य न हो पाये। वर्ष 1999 में जब नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे थे तब सेना ने न सिर्फ नवाज शरीफ के पीठ में खंजर मार सत्ता से बेदखल किया बल्कि भारत के कारगिल पर हमला भी कर दिया। कहा जाता है कि जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे, तब भारत पर सभी आतंकी हमले पाकिस्तानी सेना और ISI ने मिल कर करवाए थे, जिससे दोनों देशों के संबंध कभी सामान्य न हो।

नवाज शरीफ लोकतंत्र समर्थकों के लिए प्यार और पाकिस्तानी सेना के गले की हड्डी बने रहे हैं और अब उनकी बेटी मरियम भी वही कर रही हैं। वे चाहते हैं कि पाकिस्तानी अवाम को उनका हक मिले और पाकिस्तान न तो सेना के चंगुल में रहे और न ही किसी अन्य देश की भीख पर। यही कारण है कि नवाज शरीफ और उनके परिवार से न सिर्फ सेना बल्कि आतंकवादी, राजनेता, और कट्टरपंथी सभी नफरत करते हैं।

 

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