अपनी बेतुकी आलोचनाओं और गुंडई के कारण विपक्ष भारत को वन पार्टी रूल की ओर ले जाने पर आमादा है

विपक्ष

पिछले कुछ दिनों में कृषि बिल को लेकर विपक्ष की जो प्रतिक्रिया देखने को मिली है, उसे देखकर इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है। विपक्ष का काम होता है सत्ताधारी पक्ष के निर्णयों के गलत पक्ष पर उंगली उठाना और उन्हें सही राह दिखाना, न कि प्रगतिशील कार्यों में बाधा डालना। लेकिन जिस प्रकार से विपक्षी नेताओं ने कृषि विधेयकों को लेकर उत्पात मचाया है, उससे ये स्पष्ट है कि वे देश को वन पार्टी रूल की ओर ले जाने पर आमादा है।

अभी कल ही भारत में कृषि सुधार के लिए तत्पर केंद्र सरकार ने इस अभियान से जुड़े तीन अहम कृषि विधेयकों को राज्य सभा में पेश किया, जिनमें से दो विधेयकों को सर्वसम्मति से सदन ने पारित किया। लेकिन इसके पश्चात जो कुछ भी हुआ, उससे स्पष्ट होता है कि हमारा वर्तमान विपक्ष मानसिक रूप से दीवालिया हो चुका है।

जो विपक्ष अपने आप को लोकतन्त्र का मसीहा कहते नहीं थकते, उन्होंने ही अपने आदर्शों की धज्जियां उड़ाते हुए राज्यसभा में लाइव टीवी पर अपनी गुंडागर्दी दिखाई। डिप्टी स्पीकर हरिवंश नारायण सिंह पर जब वे हमला करने में असमर्थ रहे, तो कुछ विपक्षी सांसदों ने राज्य सभा के ऑडियो के साथ खिलवाड़ किया और हरिवंश सिंह के समक्ष रखा माइक भी क्षतिग्रस्त कर दिया। इन उपद्रवी सांसदों में सबसे अग्रणी रहे तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पूर्व क्विज़ मास्टर डेरेक ओ ब्रायन, जिन्होंने न केवल हरिवंश नारायण सिंह पर चीखते चिल्लाते हमला करने का प्रयास किया, अपितु रूल बुक को भी फाड़ने का प्रयास किया।

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परंतु हद तो तब हो गई, जब आम आदमी पार्टी के सांसद और प्रवक्ता संजय सिंह ने गुंडागर्दी की हदें पार करते हुए सदन के उपाध्यक्ष के लिए तैनात मार्शल जब संजय सिंह को उठा कर बाहर ले जाने लगे तो गुस्से में वह मार्शल से ही भिड़ गए और उसको जोर का धक्का दे दिया। इसके बाद सदन के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह को 8 राज्यसभा सांसदों को निलंबित करने का आदेश देना पड़ा।

बता दें कि जब 2019 में आम चुनाव हो रहे थे, तो अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने स्वयं वादा किया था कि वह एपीएमसी एक्ट को हटाकर कृषि व्यापार से लाइसेन्स राज और इंस्पेक्टर राज की निशानियों को पूरी तरह हटा देगी, यानि किसान के पास अपनी फसल का उचित दाम मिलने की ज़्यादा संभावनाएँ होगी। लेकिन जब यही बात एनडीए सरकार ने अपने कृषि विधेयक में सुनिश्चित कराई, तो कांग्रेस पार्टी इसके विरोध में उतर आई और राज्य सभा में टीएमसी और आम आदमी पार्टी के सांसदों के साथ उत्पात मचाने लगी।

इस तरह का व्यवहार, जो हर उचित कार्य का विरोध करे, कांग्रेस और उसकी जैसे विपक्षी पार्टियों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रही हैं। वर्तमान कृषि विधेयक किसानों को राजनेताओं, नौकरशाहों, और दलालों के चंगुल से छुड़ाने के लिए है। किसी भी देश में लोगों को सकारात्मक आलोचना से कोई समस्या नहीं है, परंतु कांग्रेस जैसी पार्टियां सत्ता में रहकर जिन चीजों को बढ़ावा देना चाहती हैं, सत्ता से बाहर रहने के बाद उन्हीं का विरोध भी कर रही है। यही व्यवहार पार्टी को उस मुकाम पर ले आई है, जहां पर वह प्रमुख विपक्ष के लिए आवश्यक सदन के दस प्रतिशत सीटें भी नहीं जुटा सकी।

परंतु विपक्ष की ढिठाई तो देखिये। अपनी गलती मानने के बजाए वे इस निर्णय को लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा देने लग गए, और ममता बनर्जी के नेतृत्व में विपक्षी नेताओं और उनके चाटुकारों ने ट्विटर पर #BJPKilledDemocracy ट्रेंड कराना शुरू कर दिया। ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, किसानों के हितों के लिए लड़ रहे 8 सांसदों को निलंबित करने का आदेश सुनना इस तानाशाही सरकार की मानसिकता को दिखाता है, जिसके लोकतान्त्रिक मूल्यों का कोई सम्मान नहीं है।” वैसे सदन के उपाध्यक्ष का माइक तोड़कर और उनकी सुरक्षा में लगे मार्शल के साथ हाथापाई करना कौन से लोकतान्त्रिक मूल्यों का सम्मान है, कृपया ममता बनर्जी बताने का कष्ट करेंगी?

इसके अलावा पिछले एक साल में विपक्ष का बर्ताव इस बात का परिचायक है कि किस प्रकार से उनका एकमुश्त ध्येय केवल भाजपा को नीचा दिखाना और नरेंद्र मोदी को अपमानित करना है। पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर कांग्रेस के चाटुकारों ने जिस प्रकार से कथित बेरोजगारी के लिए राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस मनाने का प्रयास किया, उससे स्पष्ट पता चलता है कि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए अब न कोई मुद्दा बचा है, और न ही कोई ठोस तर्क। हालांकि,  इतनी मेहनत करने के बावजूद ट्रेंड में नेशनल की स्पेलिंग जो ढंग से न लिख पाये, वो मोदी सरकार को गिराने की बात करते हैं।

इसके अलावा विपक्ष ने जिस प्रकार से सीएए के विरोध की आड़ में दंगा, आगजनी और देशद्रोही तत्वों को जो बढ़ावा दिया है, उससे जनता में यही संदेश जा रहा है कि यदि इस समय देश में कोई वाकई में जनता की भलाई के लिए काम कर रहा है, यदि कोई वाकई में देश के लिए कुछ भी करने को तत्पर है, तो वह केंद्र सरकार ही है।

चीन से तनातनी के मुद्दे पर विपक्ष ने जिस प्रकार से केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास किया, उससे जनता में सरकार के प्रति आक्रोश के बजाए समर्थन की भावना ही उमड़ी। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष देश को वन पार्टी रूल की ओर ले जाने के लिए कुछ ज़्यादा ही सक्रिय है, क्योंकि यदि विपक्ष ऐसे ही काम  करती रहा, तो जनता के लिए फिर और कोई विकल्प ही नहीं बचेगा।

 

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