दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर जापानी प्रधानमंत्री ने खुले तौर पर चीन को चुनौती दी है। वियतनाम और इंडोनेशिया के अपने हालिया दौरे के दौरान प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा ने Indo-Pacific नीति के तहत दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्ट्रीय नियमों को लागू करने के एजेंडे को आगे बढ़ाया। इस दौरान हनोई में वियतनाम-जापान यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते हुए सुगा ने कहा कि दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्रता के हनन और नियमों का उल्लंघन करने वाले कई एकतरफा फैसले लिए जा रहे हैं। अपने इस बयान से सुगा ने सीधे-सीधे चीन पर हमला बोला था।
सुगा यहीं नहीं रुके। आगे उन्होंने चीन को उकसाने वाला एक और बयान दिया और कहा कि दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्ट्रीय नियमों को लागू करने के लिए जापान ASEAN के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा। यह चीन के खिलाफ एक बड़ा बयान था क्योंकि आजकल चीन दक्षिण चीन सागर में अपने “Code of Conduct” को लागू करने की फ़िराक में ASEAN देशों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है। अब जापान ने जता दिया है कि वह ऐसा होने नहीं देगा!
हालांकि, हैरानी की बात तो यह थी कि जापानी प्रधानमंत्री के उकसावे भरे बयानों के बावजूद चीनी सरकार या चीनी propaganda machine Global Times की ओर से एक बयान या एक लेख तक देखने को नहीं मिला। आखिर चीन चुप क्यों है? ज़ाहिर सी बात है कि इस मौके पर चीन अभी जापान को अपने खिलाफ नहीं करना चाहता। अगर चीन की इस मजबूरी का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो ऐसे चार बड़े कारणों का पता लगता है कि जिसकी वजह से चीन चाहकर भी जापान के खिलाफ कुछ बोलने से घबरा रहा है।
पहला कारण: चीन की डूबती अर्थव्यवस्था
चीन के घरेलू आंकड़ों के मुताबिक कोरोना के बावजूद चीन की इकॉनोमी 4.9 प्रतिशत की दर से ग्रो करेगी। जब दुनियाभर के supply chain में बड़े पैमाने पर विघटन देखने को मिल रहा है, ऐसे वक्त में चीन के इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। अमेरिका, जापान और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ अपनी-अपनी सप्लाई चेन को चीन से बाहर शिफ्ट करने की योजना पर काम कर रही हैं। इसके साथ ही भारत और अमेरिका ने चीन के टेक सेक्टर को भी बड़ी चोट पहुंचाई है।
इतना ही नहीं, इसी वर्ष बड़े पैमाने पर चीन में बाढ़ भी आई थी जिसके बाद चीन में खाने की कमी जैसे हालात भी पैदा हो गए थे। इसी के बाद जिनपिंग को अपने यहाँ clean plate campaign चलाना पड़ा था। चीन को अपनी इकॉनोमी बचाने के लिए जापान की ज़रूरत पड़ेगी ही। अभी अगर चीन ने जापान के साथ सींग उलझाने का फैसला किया, तो सुगा प्रशासन चीनी अर्थव्यवस्था पर धावा बोलने में बिलकुल भी देरी नहीं करेगा।
दूसरा कारण: भारत के साथ जारी विवाद
लद्दाख में भारत के साथ पहले ही चीन का विवाद चल रहा है। इतना ही नहीं, ताइवान और अपने पूर्वी तट पर भी वह अपनी सेना की तैनाती को बढ़ा रहा है। इस वक्त एक और बड़े दुश्मन से पंगा मोल लेना चीन के लिए समझदारी की बात नहीं होगी। सुगा वियतनाम जाकर आसानी से चीन के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं लेकिन चीन ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसके हाथ बंधे हुए हैं। चीन एक साथ दो बड़ी ताकतों यानि भारत और जापान के साथ विवाद खड़ा करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहेगा।
तीसरा कारण: पहले से ही मौजूद आपसी रिश्तों में तनाव
चीन-जापान के रिश्ते पहले से ही बदतर हालातों में हैं। चीन को किसी भी हालत में जापान को खुश करके जल्द से जल्द अपनी इकॉनोमी को oxygen प्रदान करनी है। जापान चीन का पड़ोसी होने के साथ-साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है। आबे सरकार के आखिरी दिनों से ही जापान-चीन के रिश्तों में तल्खी देखने को मिल रही है। ऐसे में अब सुगा प्रशासन के साथ जिनपिंग किसी भी कीमत पर अच्छे रिश्ते बरकरार रखना चाहते हैं।
चौथा कारण: जिनपिंग और उनका जापान दौरा
चीनी राष्ट्रपति किसी भी कीमत पर जापान का एक दौरा करना चाहते हैं। अगर ऐसा संभव होता है और जापान में जिनपिंग का स्वागत होता है तो इसके माध्यम से चीन Quad को कमजोर दिखाने की स्थिति में आ जाएगा। जिनपिंग को इस वर्ष अप्रैल में जापान का दौरा करना था, जिसे कोरोना के चलते स्थगित कर दिया गया था। अब जिनपिंग अपने विदेश मंत्री Wang Yi को जापान की यात्रा पर भेजने वाले हैं। माना जा रहा है कि वे अपने दौरे के दौरान जिनपिंग के आगामी दौरे को लेकर भी जापानी सरकार के साथ चर्चा कर सकते हैं। ऐसे में जिनपिंग के दौरे के सपने को सच करने के लिए चीन के लिए यह अनिवार्य है कि वह जापान के साथ अपने रिश्ते अच्छे बनाकर रखे।
यही चार बड़े कारण हैं जिनकी वजह से पेपर ड्रैगन और जिनपिंग जापानी PM द्वारा इतने बड़े उकसावे के बावजूद जापान के खिलाफ एक भी शब्द बोलने से बच रहे हैं।