सुगा को अपने पाले में न कर पाने से बौखलाए चीन ने सेनकाकू आईलैंड पर भेजे अपने जहाज

जापान

जब साम और दाम से बात नहीं बनी, तो अब दंड की नीति से चीन जापान पर दबाव डालने चला है। शुरू में चीन ने जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिदे सूगा को लुभाने की काफी कोशिश की, पर सूगा के नेतृत्व में जापानी प्रशासन ने चीन को घास तक नहीं डाली। अब बौखलाहट में चीन ने अपने दो जहाजों को एक बार फिर सेंकाकू द्वीप के पास भेजे थे।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को जापान की एक नाव सेंकाकु द्वीप समूह के आसपास मछलियाँ पकड़ रही थी, तब चीन के गश्ती करने वाले तीन जहाजों ने जापानी की नाव का पीछा किया और उसके दो जहाज जापान की समुद्री सीमा में घुस आए। इसके बाद जापान को न सिर्फ अपने कोस्ट गार्ड के नाव तैनात करने पड़े, बल्कि उसने कूटनीतिक तौर पर अपना विरोध भी जताया और चीन को अपनी हद में रहने का संदेश भी दिया है।

इस विषय पर प्रकाश डालते हुए टोक्यो के टेंपल विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के प्रोफेसर जेम्स ब्राउन बताते हैं, “पहले ऐसा लगता था की योशिहिदे सुगाअसमंजस में थे, क्योंकि वे अपने पूर्ववर्ती शासक [शिंजों आबे] की चीन विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाना चाहते थे, और पार्टी वाले उन्हें उतना आक्रामक न होने की सलाह दे रहे थे। अब चीन के निरंतर हमले जापानी प्रशासन, विशेषकर जापानी पीएम योशिहिदे सुगा के चीन के विरुद्ध नीतियों को और दृढ़ बना रहे हैं। चीन कह तो अवश्य रहा है की शी जिनपिंग जापान आ सकते हैं, लेकिन अगर ऐसे होता रहा [अर्थात सेंकाकु द्वीप समूह के पास घुसपैठ] तो चीन के लिए आगे की राह बेहद कठिन हो जाएगी”।

परंतु चीन आखिर सेंकाकू द्वीप समूह के पीछे ऐसे हाथ धोकर क्यों पड़ा है, और ऐसा क्या कारण है कि जापान को अपनी शांत प्रवृत्ति के विरुद्ध जाकर चीन से मोर्चा लेना पड़ रहा है? दरअसल, दक्षिण चीन सागर में स्थित सेंकाकु द्वीप समूह रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि इसपर जिसका भी वर्चस्व होगा, वह दक्षिण चीन सागर के साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र का भी निर्विरोध सम्राट होगा।

वैधानिक रूप से यह द्वीप जापान के अंतर्गत आता है, लेकिन साम्राज्यवाद के नशे में चूर चीन इस द्वीप समूह पर अपना अधिकार जताता है और इसे अपना Diaoyu द्वीप समूह बताता है। जो मीलों दूर रूस के पोर्ट शहर Vladivostok (व्लादिवोस्तोक) पर अपना दावा ठोकता हो, उसके लिए तो जापान के द्वीपों पर दावा ठोकना कोई बड़ी बात नहीं होगी।

इसीलिए इस परिप्रेक्ष्य में पिछले कई हफ्तों से चीनी प्रशासन जापानी पीएम योशिहिदे सुगा  को मनाने में लगे हुए थे। सितंबर में  प्रकाशित SCMP की रिपोर्ट के अनुसार एक चीनी शिक्षाविद लिउ किंगबिन ने कहा कि बीजिंग टोक्यो को बताना चाहता है कि वह इस वर्ष विवादित क्षेत्र [पूर्वी चीनी सागर] में अपनी नौसेना की सक्रियता को कम कराएगा। लेकिन चीन के झांसे में नहीं आते हुए जापान ने अपने फिशिंग बोट सेनकाकु द्वीप समूह की ओर भेजे, जिससे चीन काफी कुपित हुआ, और साथ ही में उसकी पोल भी खुल गई।  यदि चीन वाकई में सक्रियता कम करना चाहता था, तो उसे जापान की फिशिंग बोट से कोई समस्या तो होनी ही नहीं चाहिए थी। याद रहे, सेनकाकु द्वीप समूह पर जापान का अधिकार है, और चीन का यहाँ हुड़दंग मचाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

इसके अलावा जापान ने बतौर QUAD समूह के सदस्य होने के नाते अपना दमखम दिखाना भी शुरू किया, जिससे भयभीत होकर चीन ने ये तय किया कि उनके राष्ट्रपति और विदेश मंत्री को हर हाल में जापान की यात्रा पर भेजेंगे। कुछ हफ्तों पहले चीनी सरकार के सूत्रों ने बताया कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी अक्टूबर की शुरुआत में जापान की आधिकारिक यात्रा पर जा सकते हैं। इस दौरान वांग वहां प्रधानमंत्री सुगा के अलावा अपने समकक्ष तोशिमित्सू मोटेगी के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर चर्चा करेंगे। इस यात्रा का ऐलान शुक्रवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम योशिहिदे सुगा की टेलीफोन पर बातचीत के दौरान किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों राष्ट्र प्रमुख रिश्तों को अधिक मजबूत बनाने की नीति पर सहमत हुए हैं।

लेकिन जिस प्रकार से चीन ने अभी एक बार फिर सेंकाकू द्वीप समूह पर हमला करने का प्रयास किया है, उससे स्पष्ट होता है कि चीन के दिमाग में इस समय साम्राज्यवाद के अलावा और कुछ नहीं चलता, लेकिन जापान से ये हेकड़ी उसे बहुत भारी पड़ने वाली है।

 

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