असम की बीजेपी शासित सरकार ने अपने एक फैसले में असम के सभी सरकारी मदरसों को बंद करने की बात कही है। इसे एक बड़े और आक्रामक फैसले के तौर पर देखा जा रहा है। मदरसा एक इस्लामिक स्कूल होता है जिसमें धार्मिक शिक्षा दी जाती है। कहा जाता है कि असम में लगभग 1,500 मदरसे हैं, जिनमें से 614 सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं, जबकि 900 निजी हैं। राज्य में 600-सरकारी सरकारी वित्तपोषित मदरसों को बंद करने के साथ, असम में इस्लामिक स्कूलों की संख्या में भारी गिरावट की उम्मीद है, जिससे मुस्लिम बच्चों को सामान्य और मुख्यधारा की शिक्षा प्राप्त होगी, जो वास्तव में आज के समय के लिए बहुत आवश्यक है।
दरअसल, असम सरकार ने धार्मिक शिक्षा का विरोध करते हुए कहा कि सभी तरह के सरकारी मदरसों को बंद कर दिया जाएगा क्योंकि जनता के पैसों से धार्मिक शिक्षा देने का प्रावधान नहीं है। सरकार के मंत्री हिमंंता बिस्वा सरमा का कहना है कि ‘सरकारी पैसों का खर्च धार्मिक शिक्षा के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि धार्मिक शिक्षा खुद के पैसों से ही की जानी चाहिए’। फैसले के पालन को लेकर सरकार के मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि ‘इसको लेकर नवंबर मे अधिसूचना जारी की जाएगी हालांकि सरकार ने राज्य में निजी तौर पर चलने वाले मदरसों की बंदी पर कोई बयान नहीं दिया है’।
असम सरकार के इस फैसले को कट्टरपंथ के खिलाफ भी देखा जा रहा है। ऐसे में ये फैसला दिखाता है कि असम सरकार इस मुद्दे पर पूरी तैयारी के साथ फ्रंटफुट पर आ गई है।
महत्वपूर्ण बात ये है कि दो साल पहले ही असम सरकार ने मदरसा नियंत्रण बोर्ड और असम संस्कृत बोर्ड को हटा दिया था। सरकार का ये कदम मुख्य रूप से इस ओर था कि इन्हें भी मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा जा सके लेकिन ये दोनों खासकर मदरसे फिर भी अपने पुराने रवैए पर ही चल रहे थे जो कि सरकार को खटक रहा था। इस फैसले के बाद राजनीति भी शुरु हो गई है। एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अली अहमद ने इसको लेकर कहा कि वो सत्ता में आने पर इस फैसले को पलट देंगे।
गौरतलब है कि इस फैसले के बाद मुस्लिम संगठनों से लेकर इस्लामिक पढ़ाई कर रहे कुछ छात्रों या उनके माता-पिता के व्यवहार में उथल-पुथल की स्थिति बन सकती है लेकिन इस कदम को एक सकारात्मक रूप में देखा जा रहा है जो कि अन्य राज्यों की सरकारों को भी उठाना चाहिए।