फ्रांस में चरम पर इस्लाम विरोधी आंदोलन और यह पूरे EU के Immigration Policies पर असर डालेगा

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी..

फ्रांस

यूरोप के “सेकुलर” और “मानवीय” देश शुरू से ही बहुसंस्कृतिवाद को अपने गले से लगाते आए हैं। शायद यही कारण है कि आज भी दुनियाभर में European Union की immigration policy सबसे लचर मानी जाती है। हालांकि, यूरोप के लिए अब यही immigration policy उस ज़हरीले साँप की तरह बर्ताव करने लगी है, जिसे आप ही ने पाल-पोस कर बड़ा किया हो, और अब वही सांप आपको डसने में अपनी शान समझता हो!  जून महीने में हुए “Black lives matter” प्रदर्शनों का कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा हाईजैक किया जाना, अगस्त महीने में स्वीडन के मोलमो शहर में हुए दंगे और अब फ्रांस में एक 18 वर्षीय इस्लामिस्ट कट्टरपंथी द्वारा एक अध्यापक का गला रेतकर हत्या किए जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि EU का बहुसंस्कृतिवाद ही उसके लिए अब सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। हालांकि, बीते शुक्रवार को पेरिस में हुए आतंकी हमले के बाद क्या अब कुछ बदलेगा? फ्रांस की Emmanuel Macron सरकार अब जिस प्रकार अपने यहाँ इस्लामिस्टों पर कमर-तोड़ कार्रवाई कर रही है, उसके बाद इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि फ्रांस और EU के बाकी देश जल्द ही अपनी immigration policy में बड़े बदलाव कर सकते हैं।

फ्रांस के लोग बेशक इस आतंकी घटना से आग-बबूला है और शायद यही कारण है कि अब फ्रांस की सरकार भी बड़ी तीव्रता के साथ इस्लामिस्टों के खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर हुई है। अध्यापक की हत्या की घटना के बाद से अब तक करीब 15 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है, जिनमें उस आतंकवादी का पिता और छोटा भाई भी शामिल है। फ्रांस की सरकार ने ऐलान किया है कि वह अपने यहाँ से 231 विदेशी “कट्टरपंथियों” को बाहर का रास्ता दिखाएगी, जिनमें से करीब 180 लोग तो पहले ही फ्रांस की जेल में बंद हैं। इसके साथ ही साथ फ्रांस की सरकार ने पेरिस के पूर्वोत्तर में स्थित एक मस्जिद को बंद करने का भी ऐलान किया है। इस मस्जिद ने मारे गए अध्यापक Samuel Paty की हत्या से पहले फेसबुक पर एक वीडियो शेयर की थी, जिसमें उस अध्यापक को निशाना बनाया गया था। साथ ही साथ फ्रांस की पुलिस अब देश के अलग-अलग कोनों में “कट्टरपंथियों की तलाश के लिए” बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर रही है।

आतंकी हमले के बाद जिस प्रकार फ्रांस की सरकार ने ये बड़े कदम उठाए हैं, उसके बाद यह सवाल खड़ा होना लाज़मी है कि क्या अब यूरोप अपनी immigration policy को सख्त बनाने की ओर आगे बढ़ रहा है? Emmanuel Macron इस हमले के पहले से ही अपने देश में बढ़ रहे इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ आक्रामक रुख दिखा चुके हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि इस्लाम दुनियाभर में एक Crisis का शिकार हो रहा है, जिसके बाद वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए थे। Macron अपने यहाँ कट्टरपंथ को काबू में करने के लिए एक Bill लाने की बात भी कह चुके हैं। साथ ही वे अपने यहाँ मदरसों पर और विदेशी इमामों पर प्रतिबंध लगाने की बात कह चुके हैं।

बता दें कि फ्रांस में हर साल करीब 300 इमाम दुनियाभर के देशों से आते हैं। फ्रांस में ज्यादातर इमाम अल्जीरिया, मोरक्को और तुर्की से आते हैं और वे वहां जाकर मदरसों में पढ़ाते हैं। वर्ष 1977 में फ्रांस सरकार ने एक कार्यक्रम के तहत विदेशी इमामों को उनके देश में आकर मुस्लिमों को पढ़ाने की स्वीकृति दी थी, ताकि उनके देश में विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके। फ्रांस सरकार ने इसी वर्ष, फरवरी में इस कार्यक्रम को बंद करने का फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हर साल ये इमाम लगभग 80 हज़ार छात्रों को ‘शिक्षा’ देते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति स्वयं कट्टर इस्लाम के विरोधी हैं। इस वर्ष फरवरी में एक अहम भाषण में फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन ने स्पष्ट किया था कि, “कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों के आगे फ्रांस कतई नहीं झुकेगा। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर फ्रांस की अखंडता और फ्रांस की स्वतन्त्रता से किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा।”

फ्रांस के उदाहरण से यह समझा जा सकता है कि अब यूरोप के देश इस्लामिक कट्टरपंथ के खतरे के प्रति सजग हो रहे हैं और अब इसका प्रभाव वहाँ की immigration policy पर भी देखने को मिल सकता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2018 में EU के 27 सदस्य देशों ने करीब 6 लाख 72 हज़ार बाहरी लोगों को नागरिकता प्रदान की थी।

आज EU की कुल आबादी का करीब 5 प्रतिशत हिस्सा ऐसे लोग हैं, जो बाहर से आकर बसे हैं। ऐसे में अब इन देशों में सामाजिक टकराव बढ़ रहा है, जिसके नतीजे में आतंकवाद जैसी गंभीर घटनाएँ अब यूरोप की दिनचर्या का हिस्सा बनती जा रही हैं। उदाहरण के लिए:

11 मार्च 2014 को  स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आतंकियों ने कई ट्रेनों में सीरियल धमाके किए थे। इस हमले में 191 लोग मारे गए थे जबकि 1800 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे

7 जनवरी 2015 को फ्रांस की मशहूर व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो पर आतंकवादी हमला हुआ था। इसमें 17 लोग मारे गए जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल थे। इस हमले में पत्रिका के एडिटर सहित नौ पत्रकारों की भी मौत हुई थी।

16 नवंबर 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में कई जगह हुए आतंकी हमलों में 129 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसके अलावा उन आतंकी हमलों में 200 से ज़्यादा लोग घायल भी हो गए थे।

EU को अब जागना होगा। फ्रांस की सरकार के रवैये को देखकर लगता है कि EU अब जाग रहा है, लेकिन क्या ये कदम पर्याप्त साबित होंगे? पेरिस के आतंकी हमले के बाद दोबारा अब बहुसंस्कृतिवाद और आप्रवासी नीति को लेकर चर्चा की जाने लगी है और उम्मीद है कि अब EU इस समस्या से निपटने के लिए गंभीर एवं प्रभावी कदम उठाएगा!

 

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