भारतीय सेना के सिरदर्द ‘OFB’ के बुरे दिन शुरू, Grenades और बंदूकों का करार अब प्राइवेट कंपनियों के साथ

अब गुणवत्ता के साथ नहीं होगा कोई समझौता

OFB

ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के ढुलमुल रवैए और निम्न स्तर के काम अब उसके लिए मुश्किलें खड़ी करने लगा है। सरकार अब सैन्य उपकरणों के लिए निजी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट देने लगी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने सेना के लिए 10 लाख हैंड ग्रेनेड का आर्डर OFB की बजाय निजी कंपनी को दे दिया है जिससे उच्च कोटि के ये उपकरण सही समय पर सेना को मिल सकेंगे, साथ ही OFB के लिए ये संकेत भी है ‌कि कार्यशैली सुधारों वरना काम नहीं चल पाएगा।

निजी कंपनी को कान्ट्रैक्ट

भारतीय सेना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल हुए हैंड ग्रेनेड के अपग्रेडेड वर्जन का उपयोग करेगी जिसका उत्पादन MMHG द्वारा किया जाएगा। इसका डिजाइन तो डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया है, लेकिन उत्पादन का जिम्मा सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षम कंपनी OFB के बजाय इस बार निजी क्षेत्र की कंपनी को दिया गया है और वो इस ग्रेनेड की खपत की आपूर्ति करेगी।

गौरतलब है कि भारतीय सेना ने अपनी आंतरिक जांच में पाया कि 2014 से अब तक OFb द्वारा बनाए गए खराब गुणवत्ता वाले सैन्य उपकरणों के प्रयोग के कारण सेना के 27 जवानों की जान जा चुकी है और 960 करोड़ से ज्यादा रुपए मिट्टी हो गए हैं। इससे करीब 80,000 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं जिनमें उत्पादन की यूनिट से लेकर प्रशिक्षण के संस्थान भी शामिल हैं।

जब सरकार ने रक्षा क्षेत्र में निगमीकरण की कवायद शुरू की तो इन लोगों ने 12 अक्टूबर को एक हड़ताल का ऐलान कर दिया है। लेकिन आम कम्युनिस्ट व्यव्हार और हड़ताल नीति को नजरंदाज कर सरकार ने अब निगमीकरण की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं। ग्रेनेड का निजी कंपनी को दिया कॉन्ट्रैक्ट इस बात का प्रमाण भी है। एक वरिष्ठ ईईएल अधिकारी ने कहा, “MMHG का ये फैसला दिखाता है अगर निजी और सार्वजनिक क्षेत्र साथ मिलकर काम करें तो रक्षा क्षेत्र अभूतपूर्व बदलाव हो सकते हैं ये पहली बार है जब पूर्ण रुप से बम बारूद बनाने के लिए सरकार ने किसी निजी क्षेत्र की कंपनी को कान्ट्रैक्ट दिया है।”

अक्षमता का पर्याय

सीएपीएफ द्वारा प्रयोग किए जाने वाले ऐसे हथियार जो पहले विदेशों से आते थे। उन हथियारों के निर्माण को लेकर कुछ दिनों पहले ही गृह मंत्रालय ने 17 निजी कंपनियों से चर्चा की थी। जिसमें वेम टेक्नोलॉजी, कलयाणी स्ट्रैटजिक, श्याम आर्म जैसी कंपनियां शामिल थीं। गौरतलब है कि रक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक स्तर की कंपनियों का दबदबा था। जिसके चलते वो ढुलमुल रवैए के तहत काम करतीं थीं। जिससे OFB और HAL जैसी कंपनियों द्वारा बनाया गए बेकार प्रोडक्ट सेना के मत्थे मढ़ दिया जाता था।

HAL और OFB ने अक्षमता के कारण पिछ्ले 70 सालों में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की है। इसीलिए देश में विदेशों से रक्षा उपकरणों को मंगाया जाता रहा। विदेशी कंपनियों द्वारा ख़रीदी गई टेक्नोलॉजी के उपयोग का अधिकार भी HAL और OFB के पास ही है। बेहतरीन टेक्नोलॉजी मिलने के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की ये कंपनियां विदेशी उपकरणों जैसा बेहतरीन उपकरण बना कर नहीं दे पाती हैं, जो साबित करता है कि अक्षमता के सारे पैमाने इन कंपनियों के आगे छोटे ही हैं।

आत्मनिर्भरता को मिलेगा बल

भारत जिन देशों की कंपनियों से अपने लिए रक्षा उपकरणों की खरीदारी करता है वो सभी निजी कंपनियां हैं। दुनिया की 25 सबसे बेहतरीन और उच्च स्तरीय रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों की बात करें तो वो सभी निजी हैं क्योंकि निजी कंपनियों की कार्यशैली में कट-फ्री जैसा कोई खेल ही नहीं होता है जिसके कारण उनके उपकरणों की गुणवत्ता सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से लाख गुना बेहतर होती है। भारत की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि उसे अपने रक्षा उपकरणों की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है जिसके चलते उसका अतिरिक्त धन भी खर्च होता है, क्योंकि DRDO और HAL जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को छोटे-छोटे उपकरण बनाने में भी दिक्कत होती है।

दुनिया की बड़ी रक्षा उपकरण कंपनियों की तरह ही भारत भी अब निजी कंपनियों का रूख कर चुका है और आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में भारतीय सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम सराहनीय है, क्योंकि इससे जरूरी हथियारों की पूर्ति भी होगी साथ ही देश को अपना विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली नहीं करना पड़ेगा। यहीं नहीं, निजी कंपनियों के जरिए बनने वाले उपकरण की गुणवत्ता भी बेहतरीन होगी, जो सेना को तो सहजता प्रदान करेगी, साथ ही राज्यों की पुलिस की पुरानी बंदूकों को भी बदला जा सकेगा जिससे देश की सीमाएं सुरक्षित होने के साथ ही आंतरिक मामलों में कानून का प्रभाव मजबूत होगा और पुलिस की ताकत भी बढ़ेगी।

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