वर्ष 2018 में लोकसभा चुनाव से सिर्फ 4 महीने पहले देश में बीजेपी को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में करारी हार का मुंह देखना पड़ा था। इस हार को लेकर जानकारों की तरफ से कहा गया कि बीजेपी की लोकप्रियता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है और बीजेपी चुनाव हार जाएगी, लेकिन असल में बीजेपी की हार का कारण उसकी घटती लोकप्रियता नहीं बल्कि राज्य के चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों का उठाना था, जिसके चलते जनता का उससे मोह भंग हुआ।
बीजेपी 2018 में तीन चुनाव हारने के बाद झारखंड में भी हार गई। हालांकि, हरियाणा में जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली गई लेकिन फिर भी विधानसभा में बीजेपी की संख्या सीमित हो गई। यहां भी एक बार फिर वही राज्यों के चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे उठाना मुख्य कारक के रूप में सामने आया। बीजेपी लगातार राज्यों के चुनाव-दर-चुनाव में केवल राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह देती रही और जमीनी हकीकत से इतर उसे हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में बिहार चुनाव में भी एक बार फिर बीजेपी अपने उसी फार्मूले पर आगे बढ़ रही है।
राज्य में बीजेपी पिछले 5 वर्षों के प्रदर्शन के बजाए अपने राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दे रही हैं। अनुच्छेद 370 से लेकर राम मंदिर, सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दों पर बीजेपी अपने चुनाव की रणनीति बनाती है। ऐसे में मतदाता इस बात को नहीं पसंद कर रहे हैं कि कोई मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री की उपलब्धियों को भुनाए और इसीलिए जनता का इन चुनावों में बीजेपी से मोह भंग हुआ था।
बीजेपी की यही नीतियां अब बिहार में भी शुरु हो गई हैं। बीजेपी के स्टार प्रचारक लगातार बिहार में रैलियों के दौरान राम मंदिर, अनुच्छेद-370, सीएए एनआरसी जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा अपनी रैलियों में पीएम की स्वामित्व स्कीम का जिक्र कर रहे हैं, इसके साथ वो लगातार डिजिटल योजनाओं के प्रचार प्रसार की बात कह रहे हैं लेकिन कोई इस बात की तरफ गौर नहीं कर रहा है कि बिहार में असल चुनावी मुद्दे क्या है।
असल में बिहार की सियासी रण में जितने भी केन्द्रीय मंत्रियों को लगाया गया है वो सभी वहां राष्ट्रीय एजेंडा चला रहे हैं। बांग्लादेशी घुसपैठियों से लेकर एनआरसी तक के मुद्दे तो उठाए जा रहे हैं लेकिन बिहार के असल मुद्दों पर बात नहीं की जा रही है। वहीं, कोरोनावायरस की वैक्सीन को मुफ्त देने के नाम पर पहले ही केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के ऐलान की आलोचना हो रही है। बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल शायद एक मात्र एक ऐसे अकेले नेता हैं जो बिहार स्थानीय और राज्य के मुद्दों पर बात कर रहे हैं। बीजेपी पिछले लगभग 12 सालों से सत्ता में है और इसलिए वो सत्ता विरोध लहर का सामना कर रही है।
ऐसा लग रहा है कि बीजेपी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह 15 साल की सत्ता विरोधी लहर को हरा नहीं पा रही है, और इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धियों पर प्रचार करने की नीति पर आगे बढ़ रही है। ऐसे में बीजेपी के इतिहास को देखें तो एक बार फिर राज्य में एनडीए गठबंधन को नुकसान हो सकता है। बीजेपी को ये समझना होगा कि NRC, CAA, एंटी-टेररिज्म, आर्टिकल 370 को खत्म करना, पाकिस्तान और चीन के प्रति आक्रामक रुख जैसे मुद्दे राज्य में सरकार बनाने में ज्यादा मददगार नहीं होंगे।
राजस्थान इस बात का बड़ा उदाहरण है कि 2018 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा की हार हुई, लेकिन जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो सारी लोकसभा सीटें जीत लीं, जो ये जाहिर करता है कि राज्यों के मुद्दों पर न लड़ने के चलते बीजेपी को हार तो मिल रही है लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों पर बीजेपी को जनसमर्थन अभी भी हासिल है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ जैसे नेता बिहार में राष्ट्रीय मुद्दे तो उठा रहे हैं लेकिन राज्य के मुद्दों को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है, जबकि विपक्षी दल राज्य के मुद्दों पर बात कर रही है।
बीजेपी को लेकर जानकारों का मानना है कि राज्यों के चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे उठाना उसे भारी पड़ा है और इसीलिए उसने कई चुनाव हारे हैं। ऐसे में बीजेपी बिहार में एक बार फिर वैसी ही गलती करती नजर आ रही है जिसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।