चन्द्रशेखर और कफील खान के साथ प्रियंका की मीम-भीम की राजनीति पूरे Action में है

काँग्रेस का नया एजेंडा..

प्रियंका

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस एक बार फिर अपनी तुष्टीकरण वाली नीति पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का मुस्लिमों और दलितों को साधने वाला एजेंडा साफ दिख रहा है कि कैसे वो गोरखपुर के डाक्टर कफील खान और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर के जरिए दलित-मुस्लिम का नया गंठजोड़ बनाने की कोशिश में जुटी हैं, जो ये दिखाता है कि 21वीं सदी में जब सारे जाति धर्म के पैमानों को धता बताकर पीएम मोदी को जनसमर्थन मिलता है तो उस दौर में भी कांग्रेस अपनी घिसी-पिटी तुष्टीकरण की प्लानिंग कर रही है।

गोरखपुर के बीआरडी अस्पाताल के डा. कफील खान जापानी इन्सेफलाइटिस के कारण 50 से ज्यादा बच्चों की मौत और हाल ही में सीएए प्रोटेस्ट के बाद चर्चा में आए थे और जेल में थे। जब वो जेल से छूटे तो सबसे पहले प्रियंका गांधी से मिले। जिसके बाद ये माना जाने लगा कि कांग्रेस कफील खान में एक युवा मुस्लिम नेता देख रही है और इसीलिए कांग्रेस इसके जरिए मुस्लिमों को साधने की जुगत में है।

कांग्रेस पिछले कई दशकों से यूपी की राजनीति में सिमटती जा रही है जिसकी बड़ी वजह उसके कोर मुस्लिम वोटरों का छिटक कर सपा-बसपा की ओर जाना माना जा रहा है, जिसके चलते कांग्रेस अब उनकी तरफ अपना पूरा फोकस कर रही है। प्रियंका कफील के समर्थन में उतर कर ये दिखाने की कोशिश में हैं कि केवल कांग्रेस ही मुस्लिमों के लिए खड़ी रह सकती है। इसके साथ ही कफील को राजस्थान में संरक्षण देना भी मुस्लिमों को लेकर संदेश की तरह ही देखा जा रहा है जिसके बाद कफील ने भी कांग्रेस की तारीफ की थी ।

इसके अलावा प्रियंका यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण माने जाने वाले पिछड़े और दलित वोटरों को लुभाने के लिए भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर को भी अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर रही हैं। वो लगातार कई बार भीम आर्मी के प्रमुख से मिल रही हैं। कांग्रेस गुजरात में इसी नीति पर चली थी वो चुनाव तो नहीं जीत सकी लेकिन उसकी इस दकियानूसी नीति के कारण कुछ सीटें जरूर बढ़ गई थीं। ऐसे में यदि भविष्य में चंद्रशेखर कांग्रेस के झंडे तले अपनी राजनीतिक दुकान चमकाते नजर आएं तो ये कोई आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं होगी।

गौरतलब है कि यूपी में दलित वोटरों की 22 फीसदी की एक बड़ी तादाद है जो एक मुश्त वोट बसपा को करती थी लेकिन पिछले 5-6 सालों में हुए चुनावों में ये वोट बीजेपी की तरफ गया है जिसे साधने में अब कांग्रेस जुटी हुई है। कांग्रेस अपनी इस नीति पर काम तो कर रही है लेकिन इसको लेकर असमंजस की स्थिति बसपा में भी होगी क्योंकि बसपा दलित-मुस्लिम गठजोंड़ पर बहुत यकीन रखती है और उसे ही अपना कोर वोटर मानती है।

यूपी की राजनीति में सभी जातियों पर अधिक फोकस करते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जो मुस्लिम और यादवों को अपना कोर वोटर मानते थे ठीक उसी तरह मायावती दलित मुस्लिम और ब्राह्मण का एजेंडा लेकर आईं थी अब उस नीति पर प्रियंका भी चलती दिखाई दे रही हैं जो दिखाता है कि जाति के नाम पर समानता की बात करने वाले यही लोग जाति के आधार पर अपनी राजनीतिक दुकान चलाते है़ं, जो कि शर्मनाक है।

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