चीन, पाकिस्तान UNHRC का हिस्सा बन गए हैं, मानवाधिकारों की खिल्ली उड़ाना इसे ही कहते हैं

दूध की रखवाली बिल्ली के जिम्मे!

दुनिया में एक ऐसी प्रजाति की सोच भी है जो सारे गलत काम करके और फिर गंगा में डुबकी मारकर ये सोचती है कि है उनके सारे पाप धुल गए हैं। चीन और पाकिस्तान की स्थिति भी वैश्विक स्तर पर ऐसी ही है। दोनों ही पूरी दुनिया में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाने के बाद एक बार फिर बेशर्मी के साथ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में सीटें हासिल कर चुके हैं। ये हास्यास्पद और दुर्घटना की तरह ही है कि अपने देश में जिन्होंने मानवाधिकारों के सारे मापदंडो को धता बता दिया हो वो वैश्विक मंच पर मानवाधिकार की बात करेंगे।

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के चुनावों में पाकिस्तान और चीन दोनों की ही सीटें पक्की हो गई हैं क्योंकि दोनों ने ही चुनाव जीत लिया है। हांलाकि, चीन को खासा नुकसान भी हुआ है लेकिन कम वोटों के बावजूद वो इस आयोग में जगह बना चुका है। वहीं पाकिस्तान इस बार अपने पांचों एशिया-पौसेफिक प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों से ज्यादा वोटों से जीता है जो कि सबसे चौंकाने वाला है।  ऐसे में आयोगों से दूरी बना चुके रूस, अमेरिका और क्यूबा जैसे देशों ने चुनावों को लेकर प्रतिक्रिया दी है कि हमारा पहले ही इस आयोग से बाहर जाने का फैसला अब सही साबित हो रहा है। 

किसी को भी ये बात पच नहीं रही है कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश जिन्होंने मानवाधिकार को खत्म करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। वो इस आयोग में आसानी से कैसे चुनाव जीत गए। इसी के चलते अब इन दोनों की ही आलोचना हो रही है। इस मामले में हमेशा ही चीन के खिलाफ बोलने वाले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा, हमने हमेशा ही मानवाधिकार का हनन करने वालों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करने के साथ ही कार्रवाई भी की है जिसमें म्यांमार, ईरान, हॉग कॉन्ग, शिनजियांग के मुद्दे सबसे अहम हैं। हमने एक-एक मुद्दे पर चुन-चुन कर बात की है। 

इसके साथ ही अनेक समूहों ने मानवाधिकार आयोग में पाकिस्तान और चीन के चयन पर अपनी आपत्ति जाहिर की है। जेनेवा के प्रतिष्ठित वकील औऱ संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी निदेशक Hillel Neuer ने इन चुनावों पर अपनी आपत्ति जाहिर करते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र के इतिहास के लिए एक काला दिन का है।  

गौरतलब है कि पाकिस्तान भारत से लेकर पूरी दुनिया में आतंकवाद का थोक में निर्यात करता हैं। यहां के बलूचिस्तान से लेकर खैबरपख्तूनख्वां तक में लोगों के साथ जानवरों से भी ज्यादा बुरा बर्ताव किया जाता है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नागरिकों के साथ की जाने वाली हरकतें तो पूरे विश्व में कुख्यात हैं। इस देश में अल्पसंख्यकों के अलावा निचली जाति के मुस्लिम नागरिकों की भी दुर्दशा किसी से छिपी नहीं हैं। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र के चुनावों को लेकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक एक्टिविस्ट अमजद अयूब मिर्जा ने कहा, इन चुनावों में पाकिस्तान का संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में जाना एक काले दिन की तरह ही है जिससे संयुक्त राष्ट्र की साख पर बट्टा लगा है। 

इसी तरह चीन जो अपने यहां उइगर मुस्लिमों के साथ अत्याचार करने के साथ ही तिब्बत और हॉन्ग-कॉन्ग में दमनकारी नीतियां अपना रहा है वो भी इस आयोग में पहुंच गया है। इस कम्युनिस्ट देश में धार्मिक आजादी न के बराबर है। लोगों को सरकार के प्रति निष्ठावान रहने के लिए दबाव बनाया जाता है जो कि एक बेहद ही अफसोस जनक बात है। ताइवान से लेकर दक्षिण एशिया के कई देशों के मानवाधिकार के लिए मुसीबत बना ये चीन अब संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार की बात करेगा। इसके अलावा पूरी मानवजाति को खत्म करने वाली कोरोनावायरस की महामारी को जन्म देने वाले चीन को इस आयोग में शामिल करने के लिए जिन देशों ने समर्थन दिया है, असल में वो भी किसी दोषी से कम नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में चीन और पाकिस्तान जैसे लोगों का जाना ये साफ दर्शाता है ये संस्था अब अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है और चीन समेत पाकिस्तान जब अपने ही नागरिकों पर बम गिराकर यहां वैश्विक मंच पर मानवाधिकार की बात करेंगे तो ये असल में एक मजाक ही होगा। 

 

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