चीन ने अपना पूरा दम फ्रांसीसी द्वीप पर कब्जा करने में लगा दिया लेकिन फ़्रांस ने यहाँ भी उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया

पहली फुर्सत में निकल..

फ्रांसीसी

चीन के बुरे दिन समाप्त होने का नाम नहीं ले रहे हैं। Indo-Pacific में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की QUAD  से मात खाने के बाद, अब फ्रांस ने भी चीन को इस क्षेत्र में सबक सीखाना शुरू कर दिया है। फ्रांस ने न्यू कैलेडोनिया के फ्रांसीसी कॉलोनी में चीनी मंसूबो पर पानी फेरते हुए जनमत संग्रह में जीत हासिल की है। चीन न्यू कैलेडोनिया में अप्रत्यक्ष रूप से अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहता था।

बता दें कि न्यू कैलेडोनिया ओशिनिया में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व की तरफ स्थित एक द्वीपसमूह है जिस पर  सम्राट नेपोलियन III ने 1853 में कब्जा किया था। कई दशकों तक फ्रांस के लिए यह कॉलोनी जेल के काम आती रही थी उसके बाद वर्ष 2017 में इसे एक विदेशी क्षेत्र का दर्जा दिया गया।

दरअसल, न्यू कैलेडोनिया ने फ्रांस के अलग होने के लिए मतदान किया था जिसमें यह तय किया जाना था कि क्या वह तीन दशक लंबे डिकोलोनाइजेशन अभियान के बाद फ्रांस से स्वतंत्रता हासिल करना चाहता है। हैरानी की बात नहीं है क्योंकि इस द्वीपसमूह पर चीनी प्रभाव बढ़ रहा था जिससे यहाँ फ्रांस के खिलाफ भावना को बल मिला, जिसके बाद मामला स्वतंत्रता के लिए जनमत संग्रह तक पहुंच गया। चीन यह उम्मीद कर रहा था कि वह इस रणनीतिक रूप से स्थित क्षेत्र से फ्रांस को बाहर निकालने और स्वयं अपने पैर जमाने में सफल हो जाएगा। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और रिपोर्ट के अनुसार  न्यू कैलेडोनिया ने जनमत संग्रह में फ़्रांस से स्वतंत्रता को खारिज कर दिया है।

स्वतंत्रता जनमत संग्रह में मतदान करने वाले 1,80,000 से अधिक मतदाताओं से यह सवाल पूछा गया था कि, “क्या आप चाहते हैं कि न्यू कैलेडोनिया पूर्ण संप्रभुता हासिल करे और स्वतंत्र हो?”

रविवार सुबह, फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने खुलासा किया कि 52 प्रतिशत मतदाताओं ने 304 मतदान केंद्रों में से 226 पर इस सवाल का जवाब नकारात्मक चुना यानि वे नहीं चाहते हैं कि न्यू कैलेडोनिया फ्रांस से अलग हो जाए। नए रिपोर्ट के अनुसार 53.26 प्रतिशत लोगों ने फ्रांस के साथ रहना स्वीकार किया है न कि अलग होना।

यानि फ्रांस न्यू कैलेडोनिया को अपने विदेशी क्षेत्र के रूप में बनाए रख सकता है। दो साल पहले भी पहले फ्रांस को इसी तरह के जनमत संग्रह का सामना करना पड़ा था तब भी द्वीपसमूह के 56.4 प्रतिशत मतदाताओं ने यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में वोट किया था।

बता दें कि न्यू कैलेडोनिया और फ्रांस के बीच स्वतन्त्रता को ले कर तीन जनमत संग्रह तक की संधि हुई है, जो दो साल के अंतराल पर आयोजित किया जाएगा। पहले वर्ष 2018 में सम्पन्न हुआ था और दूसरा इस वर्ष। पहले दोनो जनमत संग्रह फ्रांस के पक्ष में गए हैं और इसलिए बस एक जनमत संग्रह बाकी है जिसके बाद यह सुनिश्चित हो जाएगा कि न्यू कैलेडोनिया एक फ्रेंच कॉलोनी बना रहे।  अब इस जनमत संग्रह के वजह से किसी की हार हुई है तो वह चीन है।

चीन कई वर्षों से न्यू कैलेडोनिया को घेरने की कोशिश कर रहा है, जिसके लिए फ्रांस को इस द्वीपसमूह से हटाना सबसे पहला काम था। चीन ने इस द्वीप समूह पर भी अपने पाँव पसारने शुरू कर चुका था। इस फ्रांसीसी क्षेत्र को अधिकांश धन चीन को निकेल बेचने से प्राप्त होता है। वर्ष 2018 में न्यू कैलेडोनिया ने कुल 1.06 बिलियन डॉलर का निकेल निर्यात किया था। वहीं फ्रांस न्यू कैलेडोनिया को 1.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता वार्षिक आधार पर देता है। अब, चीन  लगभग उतनी ही मदद निकेल के आयात से कर रहा है जितना कि फ्रांस एक वार्षिक आधार पर द्वीपसमूह को भुगतान करता  है। इससे स्पष्ट था कि चीन न्यू कैलेडोनिया में फ्रांसीसी प्रभाव को कम कर नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहता था।

न्यू कैलेडोनिया जितना निर्यात विश्व के अन्य देशों को करता है उससे अधिक निर्यात चीन को करता है जिसका फायदा इस बार चीन ने उठाने की कोशिश की और जनमत संग्रह को अपनी आर्थिक क्षमता के इस्तेमाल से प्रभावित करने की कोशिश भी की है।

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को पता है कि कैसे चीन अपनी गिद्ध नजर इस द्वीप समूह पर गड़ाए बैठा है। हालाँकि, अब ऐसा लगता है कि उन्होंने न्यू कैलेडोनिया को चीन की गोद में जाने से बचा लिया। 2018 की स्वतंत्रता के लिए जनमत संग्रह मैक्रॉन ने चेतावनी दी थी कि चीन प्रशांत क्षेत्र में अपने कदमों को बढ़ा रहा है … जिससे प्रशांत क्षेत्र में हमारी स्वतंत्रता और हमारे अवसर कम होंगे।

हालांकि, यह ध्यान देना होगा कि अभी एक जनमत संग्रह  बचा हुआ है जो वर्ष 2022 में होगा और जिस तरह से चीन दिन प्रतिदिन और आक्रामक होता जा रहा है उससे देख कर यही कहा जा सकता है कि वह एक बार फिर से फ्रांस की राह  का रोड़ा बनेगा इससे फ्रांस को और सावधान रहना होगा। न्यू कैलेडोनिया में चीन ने अपनी सारी ताकत दांव पर लगा दी थी, लेकिन पेरिस ने बीजिंग को एक घातक झटका दिया है और अगली बार भी देने के लिए तैयारी करनी होगी।

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