महाराष्ट्र और बंगाल के उदाहरण को देखते हुए ,राज्यों का हस्तक्षेप खत्म करने के लिए CBI को मजबूत करना ही होगा

राज्यों के तानाशाही रवैये से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे..

CBI

सीबीआई को लेकर राज्य और केन्द्र सरकार के बीच आए दिन कोई-न-कोई नया बवाल होता रहता है। ताजा मामला महाराष्ट्र से जुड़ा है जहां सीबीआई को अब किसी भी मामले की जांच के लिए राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी। इसी तरह बंगाल समेत कई अन्य राज्य सरकारों ने भी CBI को प्रतिबंधित करने के प्रावधान तय कर रखे हैं, जिससे देश की प्रतिष्ठित जांच एंजेसी की कार्यशाली में बाधाएं उत्पन्न हो रही है। बंगाल में CBI को लेकर हुए बवाल से हम सभी परिचित हैं। ऐसे में ये बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि सीबीआई को स्वतंत्र करने के लिए एक ऐसा प्रावधान बनाया जाए जिस पर राज्य सरकारों का कोई भी कानून प्रभावी न  हो।

दरअसल, हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला लिया है कि राज्य की तरफ से CBI को किसी भी केस की जांच के लिए मिलने वाली सामान्य सहमति अब खत्म कर दी जाएगी, अर्थात् अब महाराष्ट्र में किसी भी तरह के नए मामलों की जांच के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इस मामले को लेकर जहां राजनीतिक उठा-पटक शुरु हो गई है तो दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार द्वारा सीबीआई पर इस तरह की रोक लगाना इस प्रतिष्ठित जांच एजेंसी के लिए एक बेहद चिंताजनक बात है।

महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र के बीच सुशांत सिंह केस में भी काफी बवाल हुआ था, CBI जांच होने या न होने का मामला सुप्रीम कोर्ट के पास तक चला गया था। ये मामला अभी थोड़ा ठंडा पड़ा ही था कि अब टाआरपी कांड की जांच को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सीबीआई जांच की बात कह दी। महाराष्ट्र सराकर को ये रास नहीं आ रहा है कि कैसे किसी दूसरे राज्य के कहने पर हमारे राज्य में हुए केस की जांच सीबीआई को सौंपी जा रहीं है क्योंकि इस केस में महाराष्ट्र सरकार पर भी संदेह है। इसलिए अब उसने बिना इजाजत सीबीआई जांच पर रोक लगा दी।

इस प्रावधान के बाद से ये सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या अब CBI केवल केन्द्र से जुड़े मामलों तक ही सीमित रह जाएगी क्योंकि इससे पहले भी देखा गया है कि कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने गई सीबीआई टीम को बंगाल में किस तरह से बंदी बनाया गया था। इसके बाद ममता सरकार और केन्द्र के बीच एक बड़ा बवाल भी हुआ था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ममता सरकार को फटकार भी लगाई थी। इसके बाद वहां सीबीआई के लिए ये प्रावधान तय कर दिये गए थे कि जब तक सीबीआई को बंगाल सरकार से इजाजत नहीं मिलेगी तब तक वो किसी भी मामले की जांच नहीं कर सकेगी।

इससे पहले इसी साल एक और गैर-भाजपा शासित राज्स्थान की गहलोत सरकार ने भी CBI को लेकर ये प्रतिबंध लगाया था कि वो राज्य सरकार की अनुमति के बिना किसी केस की जांच नहीं कर सकेगी। इस तरह उड़ीसा, पंजाब, छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्यों में भी इसी तरह सीबीआई पर रोक लगाई गई है।

ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर ये राज्य सरकारे करना क्या चाहती है। कई मामलों में ये देखा गया कि राज्य सरकारें अपराधियों को संरक्षण देती हैं और इसीलिए वो अपने स्तर पर ही एसआईटी जैसी टीमों का गठन करके अपने मन मुताबिक जांच का दिखावा तो करती हैं लेकिन असल में अंदरखाने इस जांच को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। ऐसे में निष्पक्षता का तो महत्व रह ही नहीं जाता है। इसीलिए लोग आज भी CBI जांच को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। पिछली सरकारो के कुकर्मों के चलते CBI की विश्वसनीयता को बट्टा लगा, लेकिन अब जब स्थितियां पुनः सामान्य अवस्था में आई हैं तो राज्य सरकारें लगातार सीबीआई की साख को बट्टा लगाने में जुटी हुई है। सीबीआई को प्रतिबंधित करने वाले विशेषाधिकार का ये राज्य सरकारें दुरुपयोग करती हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच के लिए ये जरूरी हैं कि सीबीआई को स्वतंत्रता मिले, इसके लिए ये बेहद जरूरी हो जाता है कि देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआई के लिए एक ऐसा प्रावधान बनाया जाए कि उस पर किसी भी राज्य सरकार का विशेषाधिकार लागू न हो, और वो स्वतंत्रता से देश में जांच कर सके।

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