अमेरिका में 18 दिन बाद चुनाव होने वाले हैं और इस बार, रिपब्लिकन पार्टी को हराने में चीन भी उतनी ही गहरी दिलचस्पी रखता है, जितना कि डेमोक्रेट्स। वास्तव में अगर देखा जाए तो चीन अप्रत्यक्ष तौर पर डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन के लिए प्रचार भी कर रहा है। परंतु अगले 18 दिन शी जिनपिंग के जीवन का सबसे कठिन दौर हो सकता है। अगर चीन कुछ भी ऐसी हरकत करता है तो वह ट्रम्प की जीत के संभावनाओं को बल देगा। इसलिए, अब राष्ट्रपति चुनावों तक डोनाल्ड ट्रम्प कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन जिनपिंग चुप चाप रहेंगे।
दरअसल, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प प्रशासन चीन पर कुछ एक्शन ले सकता है। इस एक्शन के बाद घटना के अंतरराष्ट्रीयकरण की उम्मीद भी की जा रही जिससे ट्रम्प को राष्ट्रपति चुनाव से पहले अधिक लोकप्रियता मिले।
हालांकि, यह नहीं कहा जा सकता है कि ट्रम्प किसी प्रकार की कोई अंतरराष्ट्रीय घटना चाहते हैं या नहीं, लेकिन जिनपिंग और ट्रम्प दोनों को यह पता है कि “सैन्य संघर्ष” से बेहतर कोई भी चुनाव अभियान नहीं है, जब जनता देश के लिए एक हो जाती है जिसका फायदा नेता को मिलता है। इसलिए, चीन अगले 18 दिनों तक अमेरिका के किसी भी दबाव का प्रतिक्रिया नहीं करेगा, चाहे जो भी हो जाए।
आज अमेरिका में जिस तरह का राजनीतिक माहौल है, उससे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष एक गेमचेंजर साबित हो जाएगा। जब से कोरोना को लेकर चीन की करतूतें सामने आयीं हैं, ट्रम्प ने इस मुद्दे का जोरदार अंतराष्ट्रीयकरण किया है। जैसे-जैसे चीन ने आक्रामक होने की कोशिश की ट्रम्प ने दुनिया भर के देशों को चीन के खिलाफ एक कर दिया। यही कारण है कि आगामी राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन के लिए चीन एक बेहद महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बन चुका है।
लेकिन डेमोक्रेट क्या कर रहे हैं? हर बार की तरह वे इस बार भी रूस को निशाना बना रहे और चीन को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। स्वयं बिडेन ने चीन की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने वाले ट्रम्प के टैरिफ वॉर की आलोचना की थी।
इसलिए चीन को बिडेन से इतना लगाव है और वह ट्रम्प को सत्ता से बाहर करना चाहता है। डेमोक्रेटिक उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ने एक कदम आगे बढ़कर शी जिनपिंग को ट्रम्प की तुलना में अधिक लोकप्रिय बता दिया ।
यदि अब अमेरिका और चीन का टकराव होता है तो यह निश्चित तौर से जनता को केवल ट्रम्प की ओर मोड़ेगा। राष्ट्रपति चुनावों से ठीक पहले, अमेरिकी मतदाताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि उनका राष्ट्रपति कैसे उनके सबसे बड़े दुश्मन से सामना कर रहा है। वहीं डेमोक्रेट चीन को सबक सीखाने का उनके जैसा इरादा भी नहीं दिखाते हैं।
इसलिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भी अमेरिकी चुनावों में उतनी ही दिलचस्पी रखती है, जितनी खुद डेमोक्रेट्स। यही कारण है कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समापन तक अमेरिका के खिलाफ किसी प्रकार का आक्रामक हरकत नहीं करेगा।
ऐसे कई उदाहरण हैं जब अमेरिका ने चीन के चारो खाने चित कर दिए लेकिन जिनपिंग ने प्रतिक्रिया नहीं करने का फैसला किया। उदाहरण के लिए, भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर चीन-भारत के सैन्य गतिरोध के मुद्दे पर ट्रम्प प्रशासन की नीति समय के साथ बदली है। पहले इस मुद्दे पर भारत और चीन के बीच एक कूटनीतिक समाधान की उम्मीद करने वाला अमेरिका भारत का समर्थन करते हुए अब यह कह रहा है कि चीन बॉर्डर पर 60000 से अधिक सैनिक जमा कर रहा है जो कि खतरनाक है।
लेकिन अमेरिका के इस नए आक्रामक रुख के लिए चीन के पास कोई जवाब नहीं है। इसी तरह, ताइवान के मुद्दे पर भी अमेरिका अपने QUAD सहयोगियों के साथ चिंता जता चुका है। अंततः, अमेरिका “वन चाइना” पॉलिसी को कूड़े में फेंकने के संकेत दे रहा है। अगर चीन आगामी अमेरिकी चुनावों से पहले कुछ हरकत करता है तो तो ट्रम्प खुद चुनावों से पहले ही यह एक चाल चल सकते हैं। चुनावों से पहले, ट्रम्प द्वारा चीन पर भयंकर हमले करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता और जिनपिंग को किसी भी तरह हमले को सहन करना होगा।
शी जिनपिंग प्रशासन को पता है कि अगर ट्रम्प फिर से सत्ता में आते हैं, तो सीसीपी के कब्र की खुदाई शुरू करनी होगी और इसलिए, अगले 18 दिनों के लिए संयम दिखाना CCP के अपने हित में है। यानि अगले 18 दिनों के लिए अमेरिका चीन का मान-मर्दन करता रहेगा लेकिन जिनपिंग चुपचाप विलाप करेंगे।