ईसाईयों के लिए सबसे पवित्र माने जाने वाली वेटिकन सिटी पर चीन के साथ मिलकर काम करने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ ऐसा ही आरोप अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भी पोप फ्रांसिस पर लगाया है। इस आरोप में चीन से पोप के बढ़ते लगाव और अमेरिका के प्रति उनके रूख की बात कही गई है। पॉम्पियो ने पोप के लिए चीन को अमेरिका से ज़्यादा सगा बताया है जबकि वो एक कम्युनिस्ट देश है।
दरअसल, माइक पॉम्पियो ने बुधवार को वेटिकन सिटी से आग्रह किया कि वो चीन में धार्मिक स्वतंत्रता की बात करते हुए यूएस के साथ रहें। साथ ही उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के मुद्दों पर पक्ष रखने के लिए कैथोलिक चर्च को सबसे आगे और एकजुटता से रहना चाहिए। पॉम्पियो ने वेटिकन के लोगों से अपील की कि वो अमेरिकी दूतावास द्वारा आयोजित धार्मिक स्वतंत्रता के लिए होली-सी नामक सम्मेलन में शामिल हों। गौरतलब है कि ये तब हो रहा है जब वेटिकन चीन के लिए बिशप नामित करने को लेकर विवादित समझौते को विस्तार देने के लिए बीजिंग के साथ बातचीत की टेबल पर है।
इस समझौते की पॉम्पियो ने तीखी आलोचना की है साथ ही ये भी कहा था कि वेटिकन ने चीन से ये समझौता करके नैतिक मूल्यों से समझौता किया है। इस मामले को लेकर वेटिकन ने कहा कि पॉम्पियो की ये बातें राजनीतिक स्कोर करने वाली है। वहीं वेटिकन के सचिव कार्डिनल पिएत्रो पैरोलिन ने होली-सी सम्मेलन को आश्चर्यचकित करने वाला बताया था। उन्होंने कहा कि वेटिकन में पॉम्पियो की बैठकें उनकी चिंताओं को जाहिर करती हैं।
गौरतलब है कि पैरोलिन समेत आर्कबिशप पॉल गैलागार ने चीन के मुद्दे पर कोई बात नहीं की जिसकी मीटिंग अमेरिकी दूतावास के पास ही एक होटल में हुई थी। जबकि दोनों ने धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बढ़ावा देने का जिक्र करते रहे। माइक पॉम्पियो ने कहा, “धार्मिक स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा हनन चीन में होता है जिसके लिए वहां की कम्युनिस्ट पार्टी एजेंडा चलाकर काम करती है और उसका मुख्य मक़सद ही धार्मिक स्वतंत्रता को समाप्त करना है।”
वेटिकन के चीन के साथ हुए समझौते के बारे में पॉम्पियो ने कहा कि वेटिकन ने अपने सिद्धांतों के साथ समझौता कर लिया है जबकि इससे चीन में कैथोलिकों को कोई सुरक्षा नहीं मिली है। अपने समझौते को लेकर वेटिकन ने कहा कि ये केवल बिशप को नामित करने का समझौता है। इसमें किसी भी तरह की कोई कूटनीतिक और राजनीतिक मंशाएं नहीं रखी हैं। जबकि चीन में ही वेटिकन के इस समझौते की जमकर आलोचना हो रही है।
गौरतलब है कि चीन में लगातार दमनकारी नीतियों का प्रकोप जारी है। कम्युनिस्ट पार्टी वहां के बिशप को अपनी नीतियों के साथ चलने के लिए बाध्य करती है जिसमें कैथोलिक चर्चों पर लगातार पाबंदियां लगाई जा रही है। यहीं नहीं कैथोलिक स्कूलों में बच्चों को धार्मिक से ज्यादा राष्ट्रवादी बनाने के लिए स्कूलों को ऐसा ही कंटेंट पढ़ाने पर बाध्य किया गया है वहीं विरोध और आंदोलनों की आवाज को दबाने के लिए लगातार कम्युनिस्ट पार्टी अपना एजेंडा चला रही है। जाहिर है कि वो कम्युनिस्ट और नास्तिक होने के चलते इन सभी पूजा पद्धतियों को पसंद नहीं करती है। इन सब कारणों के बावजूद पोप ने चीन के साथ फिर से एक समझौता किया है जबकि पहले वाले समझौते के बाद चीन का कैथोलिकों के प्रति अत्याचार और अधिक बढ़ गया है।
पोप की दोगली नीति पर उस समझौते के बाद भी सवाल खड़े हो गए थे। लेकिन अब जब अमेरिका चीन में दमनकारी कार्यों की निंदा कर रहा है वेटिकन का चीन के बचाव में आना ये दिखाता है कि वेटिकन किस तरह से चीन का सिपहसालार बन गया है और अत्याचारों के बावजूद वेटिकन चीन के साथ खड़ा है जबकि अमेरिका में चीन से हजार गुना राजनीतिक स्वतंत्रता है लेकिन वेटिकन को सारी कमियां अमेरिका में दिखतीं हैं चीन में नहीं।
वेटिकन सिटी एक तरह से चीन की गुलाम की तरह बात करने लगी है जिससे उसकी साख पर बट्टा लगा है। ऐसे में संभावनाएं हैं कि भविष्य में अमेरिका की तरह ही कई देशों से वेटिकन और चीन के खिलाफ गुस्सा फूटेगा।