अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच चल रहे संघर्ष में रूस द्वारा आर्मीनिया को समर्थन देने के बाद, अब फ्रांस भी उसके समर्थन में उतर चुका है। ऐसा लगता है कि अब रूस और फ्रांस दोनों ने मिल कर तुर्की द्वारा अजरबैजान की मदद कर अपना प्रभाव बढ़ाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बुधवार को तुर्की के अजरबैजान को आर्मीनिया के खिलाफ समर्थन “लापरवाह और खतरनाक” बताते हुए निंदा की।
बता दें कि अंकारा ने मंगलवार को कहा था कि वह अजरबैजान को Nagorno-Karabakh को वापस लेने में पूरी तरह से मदद करेगा। तुर्की का इस तरह से अपने पड़ोसी के पक्ष में आ जाने से फ्रांस तुरंत एक्टिव हो गया और वह भी तुर्की के बढ़ते कदम को रोकने के लिए आर्मीनिया के पक्ष में उतर गया।
मैक्रों ने अपने Latvia यात्रा के दौरान संवाददाताओं से कहा, “मैंने तुर्की के उन राजनीतिक बयानों पर गौर किया है जो मुझे लगता है कि बेहद लापरवाह और खतरनाक हैं।”
उन्होंने कहा, “फ्रांस तुर्की द्वारा की गई उन टिप्पणियों के बारे में चिंतित है, जिसमें अजरबैजान को उत्तरी Karabakh पर अधिकार करने का समर्थन किया गया है यह स्वीकार्य नहीं है।” वे आर्मीनिया को समर्थन देते हुए मैक्रों ने कहा कि, “मैं अर्मेनिया और अर्मेनियाई लोगों से कहता हूं, फ्रांस अपनी भूमिका निभाएगा।”
यहां यह समझने वाली बात है कि फ्रांस पहले ही तुर्की को ऊर्जा संपन्न पूर्वी भूमध्यसागर के साथ-साथ ग्रीस, लीबिया और मिडिल ईस्ट कुछ हिस्सों में पछाड़ चुका है। अब तुर्की ने अजरबैजान का साथ देकर अपनी आक्रामकता को दिखाने का प्रयास किया था लेकिन यहाँ भी फ्रांस उसके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दे रहा है।
इससे पहले, जब तुर्की Oruc Reis नामक एक भूकंपीय सर्वेक्षण पोत को यूनानी समुद्री क्षेत्र में भेजकर ग्रीस को धमकाने की कोशिश कर रहा था तब फ्रांस ने इसे गंभीरता से लिया और ग्रीस को सैन्य सहायता प्रदान करनी शुरू कर दी थी। स्थिति इतनी तेजी से बढ़ी कि अंकारा को विवादित पानी से अपने पोत को वापस लेना पड़ा, इस प्रकार उस क्षेत्र में एर्दोगन के सपने पर पानी फेर दिया।
तुर्की के लिए सिर्फ फ्रांस से बुरी खबर नहीं है, बल्कि रूस से भी है। रूस ने भी तुर्की से अजरबैजान को समर्थन की घोषणा को वापस लेने को कहा है और इस मामले के राजनयिक समाधान की दिशा में काम करने की बात कही है।
तुर्की के अजरबैजान को समर्थन देने का वादा और राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन द्वारा सार्वजनिक रूप से आर्मीनिया पर अशांति के लिए ज़िम्मेदार होने का आरोप लगाने के कारण पूर्ण युद्ध होने के आसार बढ़ गए हैं। आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों ही तत्कालीन USSR से टूट कर अलग हुए थे, लेकिन रूस हमेशा आर्मेनियाई लोगों का सहयोगी रहा है। क्रेमलिन का आर्मीनिया के साथ एक सैन्य समझौता है और उसका एक बड़ा हिस्सा तुर्की सीमा के करीब है जहां से रूस हथियारों की सप्लाइ करता है। ऐसे में देखा जाए तो तुर्की अब दो ताकतवर देशों के बीच फंस चुका है और अब ऐसा लग रहा है कि उसका Sandwich बनना तय है।
आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच Nagorno-Karabakh के विवादित क्षेत्र को लेकर वर्ष 1991 से ही सैन्य तनाव बना रहता है। लेकिन, रविवार को जब अर्मेनियाई रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अजरबैजान ने Nagorno-Karabakh में नागरिक बस्तियों पर हमला किया जिसमें एक महिला और एक बच्चे सहित लगभग 20 लोग मारे गए। तब से तनाव और बढ़ गया है और पूर्ण युद्ध की कभी भी घोषणा होने की आशंका बनी हुई है। मंगलवार को आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अजरबैजान का साथ देने आए तुर्की के एफ -16 विमान ने एक आर्मीनिया के SU-25 लड़ाकू विमान को गिरा दिया था। स्थिति इतनी बिगड़ी हुई है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी लड़ाई को तुरंत समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को बुलाया है। इस मामले पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा है कि वह पुतिन और ट्रम्प दोनों से बात करेंगे ताकि समस्या का व्यापक और तार्किक समाधान हो सके।
ऐसा लग रहा है कि तुर्की ने फिर से खुद को एक ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां पीठ दिखाकर भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हालांकि, अगर एर्दोगन फिर भी युद्ध चाहता है तो रूस और फ्रांस दोनों तुर्की का “तुर्की फ्राई” बनाने के लिए तैयार है।