फ्रांस में कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा सैमुअल पैटी नाम के शिक्षक की हत्या के बाद वहाँ कट्टरवाद के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। इसकी शुरुआत फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने स्वयं की और कट्टरपंथी विचारधारा को फ्रांस से बाहर करने का आह्वान किया। फ्रांस की सरकार और इमैनुएल मैक्रों कट्टरवाद के उदय को रोकने के लिए अब लड़ाई शुरू कर चुके हैं। शुक्रवार को नई रक्षा परिषद की बैठक के दौरान राष्ट्र प्रमुख ने उन सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जो अपने व्यवहार से और अपने भाषण से फ्रांस को खतरे में डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि, “ कट्टर इस्लामवादियों ने हमारे जीवन को बदतर बनाने की कोशिश की है, अब हम उनके जीवन को बदतर बनाएँगे।”
फ्रांस में यह लड़ाई सिर्फ इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ ही नहीं शुरू की गई है बल्कि इस प्रकार के कृत्यों को ढकने का काम करने वाले वामपंथियों के खिलाफ भी फ्रांस की सरकार ने मोर्चा खोल दिया है। आंतरिक मंत्री Gerald Darmanin ने देश में कट्टरपंथीयों से जुड़े, माने जाने वाले कई समूहों या संगठनों को बंद करने का आदेश दिया है जो कट्टरवाद का समर्थन करते हैं।
सबसे कठोर हमला इस्लामिक-वामपंथ के उस मिलावटी ब्रांड के खिलाफ शुरू किया गया था जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों से फ्रांस पहुंचता है। बता दें कि लंबे समय से, फ्रांस स्वछंद विचारधाराओं का केंद्र रहा है, लेकिन अब इसने लेफ्ट-लिब्रलिज़्म को नकारना शुरू कर दिया है, जो दिखाता है कि फ्रांस एक बार फिर से अपनी जड़ों की ओर मुड़ रहा है।
After slamming “Islamo-leftism,” France’s education minister has a new interview out today: “There’s a combat to be led” against an intellectual framework coming from US universities and intersectionality, which go against France’s republican model https://t.co/wX3Gk159mi pic.twitter.com/hpyiXjKeMp
— Cole Stangler (@ColeStangler) October 25, 2020
भूमध्य सागर के पार, अरब देशों से यूरोप में बड़े पैमाने पर आप्रवासन ने पूरे यूरोप में दक्षिणपंथी विचारों को पुनर्जन्म दिया है। नीदरलैंड्स, स्वीडन में दक्षिणपंथी दलों की लोकप्रियता में वृद्धि देखी गयी है,वहीं ब्रिटेन में भी यही हाल है।
इतिहास पलट कर देखा जाए तो यूरोपीय लोगों ने दूसरों को नीचे दबा कर शासन करने की नीति अपनाई और इसलिए, अब अमेरिकी विचारधारा के सामने झुकना उन्हें पसंद नहीं आ रहा है। यही कारण है कि यूरोप में फिर से राष्ट्रवाद का उदय नियमित था।
“ले ग्रैंड रिप्लेसमेंट” के नाम पर यूरोप के लोग एक बार फिर से अपनी पहचान और अपनी संस्कृति को इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ बचाना चाहते हैं। कहा जाता है कि यूरोप हमेशा से विचारों की उत्पत्ति का केंद्र रहा है। आज जिस “स्टेट” की अवधारणा को प्रचारित किया जाता है उसे वर्ष 1648 में यूरोप में वेस्टफेलिया की संधि के साथ तैयार किया गया था। इसी तरह दूसरे विचारों की अवधारणा भी उन्हीं की देन मनी जाती है।
इसलिए, जब अमेरिकी विश्वविद्यालयों से आए लेफ्ट लिबरलों के एजेंट अपनी चयनात्मक आलोचना की नीति का पालन करते हैं, तो यूरोप का उसे नकार देना ही सही कदम है। वे उदारवाद के मूल विचार को समझते हैं तथा उदारवाद की संरचनाओं को जानते हैं। यही कारण है कि जब वे अमेरिका के विकृत उदरवाद को देखते हैं जिसमें कट्टरपंथ भीतर तक घुल चुका है, तो वे उसे नकार देते हैं।
लेफ्ट लिबरल ब्रिगेड की हिपोक्रेसी का उदाहरण ब्लैक लाइव्स मैटर के विरोध प्रदर्शन के दौरान बड़े स्तर पर देखने को मिला था। विरोध प्रदर्शनों में की जा रही, हिंसा और तोड़-फोड़ का बचाव किया जा रहा था तथा उन्हें न्यायोचित ठहराने के लिए उस प्रदर्शन की तुलना “फ्रांस की क्रांति“ से भी कर दी गई थी।
हिंसा को उचित ठहरने के अलावा, अमेरिकी विश्वविद्यालयों द्वारा चयनात्मक आलोचना ने जिहादियों द्वारा की जा रही हिंसा की आलोचना करने में अपनी अनिच्छा का भी प्रदर्शन किया है। उदारवाद में इस्लामी विचारों के मिक्स होने को इन विश्वविद्यालयों ने “विचारों का समावेश” कह कर उचित ठहराया है।
इस्लामिक कट्टरपंथी के साथ उदारवाद से मिश्रित समाज के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए ये विश्वविद्यालय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उनके नस्लीय टिप्पणियों की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन जब इस्लाम के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा एक शिक्षक का सर कलम कर दिया गया तो ये संस्थान मूकदर्शक बने रहे।
तुर्की और मध्य पूर्व के इस्लामी शासन द्वारा मिल रही फंडिंग के कारण ये विश्वविद्यालय उदारवाद के मूल रूप को नष्ट कर चुके है और अब इसे भ्रष्ट करते हुए अमेरिकी समाज में फैला चुके हैं। फ्रांस इसी मिलावट से दूरी बनाने की बात कर रहा है।
यूरोप में दक्षिणपंथी नेताओं और नीतियों का उदय अमेरिका की भ्रष्ट लेफ्ट लिबरल विचारधारा को नकारे जाने का ही एक प्रमाण है। यूरोप के लोग अमेरिका में इन शैक्षणिक संस्थानों द्वारा उदरवाद के नाम पर फैलाये जा रहे जहर को पहचान चुके हैं। राष्ट्रपति मैक्रों की इस्लामी कट्टरपंथ की आलोचना और उसके खात्मे की आवश्यकता पर ज़ोर देना इस बात का प्रमाण है कि अब इस्लामी कट्टरवाद के धुन पर नाच रही लेफ्ट लिबरल विचारधारा यूरोप में नहीं पनपेगी।
‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ के साये में, भ्रष्ट लेफ्ट-लिबरल विचारधारा के तहत जिहादियों, कट्टरपंथियों, और आतंकवादियों को अपने कट्टरपंथी विचारों को बढ़ावा देने का मौका मिल रहा है।
मैक्रों पूरे यूरोप के साथ-साथ विश्व के लिए भी एक उदाहरण बन चुके हैं जो यह बता रहे हैं कि कैसे इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाती है। ऐसा कर वह अपनी संस्कृति, अपनी पहचान और अपने लोगों की सुरक्षा के लिए दृढ़ता के साथ खड़े हो गए है और जिससे अमेरिका का उदारवाद या यूं कहे लेफ्ट लिब्रलिज़्म आज एक हंसी का पात्र बन चुका है।