क्या UN चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का अधिकारिक तौर पर सर्विलांस पार्टनर बन गया है?

अब चीन के साथ-साथ UN को भी करना होगा OUT!

UN

(PC-ORF)

ऐसे वक्त में जब दुनियाभर के देश चीन द्वारा जासूसी करने को लेकर अपनी चिंता प्रकट कर रहे हैं, और चीनी सरकार के खिलाफ कड़े कदम उठा रहे हैं, ठीक उसी समय दुनियाभर में चीनी surveillance को बढ़ावा देने के लिए अब UN खुलकर चीन के समर्थन के कूद गया है। दरअसल, Wall Street Journal की एक रिपोर्ट के मुताबिक United Nations अब सभी 193 सदस्य देशों में “गरीबी, साक्षरता, न्याय” जैसे कई विषयों पर डेटा इकट्ठा करने के लिए एक बड़ी मुहिम चलाएगा। हालांकि, यहाँ समस्या यह है कि इस मुहिम को UN का Economic and Social affairs से जुड़ा विभाग आगे बढ़ाएगा, जो मुख्यतः चीनी अधिकारियों द्वारा ही चलाया जाता है। इसके अलावा इस मुहिम को सफल बनाने के लिए यह विभाग चीन को “Global Data Hub” बनाने की दिशा में काम करेगा, जिससे इस बात का शक और बढ़ जाता है कि क्या अब विश्व में Surveillance को बढ़ावा देने के लिए आधिकारिक तौर पर UN ने चीन के साथ साझेदारी कर ली है?

इस मुहिम को लेकर चीनी सरकार ने UN के Economic and Social affairs विभाग के साथ करार किया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह करार दोनों तरफ से चीनी अधिकारियों ने ही किया है, क्योंकि वर्ष 2007 के बाद से Economic and Social affairs विभाग पूरी तरह चीनी अधिकारियों के नियंत्रण में ही है। साफ है कि UN के 17 अलग-अलग उद्देश्यों से संबन्धित UN के 193 सदस्य देशों से जो भी Data इकट्ठा किया जाएगा, उसे चीन में ही स्टोर किया जाएगा, जिसे चीनी सरकार आसानी से access कर पाएगी। चीन के पुराने रिकॉर्ड्स को देखते हुए अब यह आसानी से कहा जा सकता है कि UN दुनियाभर में चीन के surveillance नेटवर्क को मजबूत करने के लिए उसका भरपूर साथ दे रहा है।

डेटा और निजता संबंधी विषयों पर चीन पर बिलकुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता, और इसी कारण भारत, अमेरिका और जापान जैसे देश खुलकर बीजिंग के खिलाफ एक्शन ले चुके हैं। उदाहरण के लिए भारत में App Ban हो या फिर चीन के Confucius संस्थानों को लेकर दी गयी मान्यता को review करने की बात हो, भारत सरकार के इन कदमों का एक ही उद्देश्य रहा है कि कैसे भी करके चीनी सरकार को भारतीय लोगों का data access करने से रोका जाये। इसी प्रकार अमेरिका और जापान भी कई बड़े कदम उठा चुके हैं। दोनों देश हुवावे के खिलाफ कड़े कदम उठा चुके हैं और अमेरिका में तो इस चीनी टेलिकॉम कंपनी पर प्रतिबंध तक लग चुका है। इसी के साथ अमेरिका ने पिछले दिनों चीन के जासूसी नेटवर्क पर बड़ा प्रहार बोलते हुए चीन के हजारों रिसर्चर और ग्रेजुएट छात्रों का वीज़ा रद्द कर दिया था।

तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि “वे अमेरिका में अध्ययन कर रहे चीनी शोधकर्ताओं पर प्रतिबंध लगा रहे हैं क्योंकि ये लोग अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इसके अलावा अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध उन कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी जो अमेरिकी कानूनों का पालन नहीं कर रहें हैं।” इसी प्रकार चीन की जासूसी रोकने के लिए ही जापान ने भी चीनी छात्रों को लेकर अपनी वीज़ा नीति को और कड़ा करने की घोषणा की है। चीन दुनियाभर में अपने surveillance नेटवर्क के जरिये दूसरे देशों से जुड़ा संवेदनशील डेटा चुराने की फिराक में रहता है, और इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हमें ईरान में देखने को मिला था।

Oilprice की एक रिपोर्ट के मुताबिक ईरान के चाबहार में चीन बड़े पैमाने पर अपने surveillance system को एक्टिवेट कर सकता है और सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चाबहार के 5000 किमी के रेडियस में ईरान और गल्फ देशों की आबादी पर अपनी निगरानी को बढ़ा सकता है। यह सब ईरान और चीन के बीच हुई 25 वर्षीय 400 बिलियन डील के बाद हुआ है। स्पष्ट है कि चीन खुद एक surveillance state होते हुए बाकी देशों में भी अपने इसी तंत्र को लागू करने की कोशिश में रहता है ताकि उस देश से संबन्धित अधिक से अधिक संवेदनशील जानकारी को जुटाया जा सके और उसका भरपूर फायदा उठाया जा सके।

इस सब के बावजूद UN अब खुलकर चीन के साथ मिलकर संभवतः दुनिया के सबसे बड़े surveillance सिस्टम को बढ़ावा देने में लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन के मंसूबों को लेकर दुनिया जागरूक हो रही है और बीजिंग के लिए डेटा इकट्ठा करना और मुश्किल होता जा रहा है। यही कारण है कि अब चीन की इस मुश्किल के हल के लिए खुद UN आगे आया है। दुनिया को अगर वाकई चीन की जासूसी से बचना है तो या तो जल्द से जल्द UN को चाइना-फ्री करना होगा, या फिर अपने देश से चीन के साथ-साथ UN को भी Out करना होगा!

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