कोरोना के बाद पूरा विश्व चीन को सबक सिखाने के लिए एकजुट होता दिखाई दे रहा है। हालांकि, यूरोप से अगर किसी एक देश की आवाज सबसे प्रखर रही है और जिस देश ने चीन विरोधी कदमों को उठाने का नेतृत्व किया है तो वह फ्रांस है। फ्रांस यूरोपियन यूनियन का इकलौता ऐसा देश है, जो ना सिर्फ खुलकर चीन के खिलाफ एक्शन ले रहा है, बल्कि वह चीन के खिलाफ भारत का भी साथ दे रहा है।
फ्रांस के अंदर पिछले एक हफ्ते में चीन के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन देखा गया है। फ्रांस के लोगों का गुस्सा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ बढ़ता ही जा रहा है जिसके कारण वे सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। फ्रांस सरकार तो चीन पर एक्शन ले ही रही है, अब फ्रांस की जनता में भी चीन और CCP के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा है।
1 अक्टूबर को तिब्बती संघों, फ्रांस के उइगर मुसलमानों के संघ, दक्षिण मंगोलिया के संघ, Falange Gong, हॉन्ग कॉन्ग और ताइवान के कई समूहों से जुड़े 300 से अधिक लोगों ने पेरिस के एफिल टॉवर के पास Trocadero Square पर चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन के विरोध में प्रदर्शन किया तथा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ वैश्विक विरोध में शामिल हुए। यानि देखा जाए तो फ्रांस पूरे यूरोप में चीन-विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र बन चुका है और CCP के खिलाफ वैश्विक विरोध में बड़ा योगदान दे रहा है।
इससे पहले, France ने चीन के खिलाफ एक्शन लेते हुए यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र में एक संयुक्त नोट Verbale दिया था, जो दक्षिण चीन सागर में चीन के समुद्री दावों की वैधता को चुनौती देता है। फ्रांस, UK, जर्मनी जैसे ताकतवर देशों चीन के खिलाफ होना चीन के लिए किसी बड़े सुनामी से कम नहीं था।
तीन शक्तिशाली यूरोपीय देशों ने, दक्षिण चीन सागर के जल पर चीन के “ऐतिहासिक अधिकारों” धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि चीन का दावा समुद्र के कानून (UNCLOS) के प्रावधानों और अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करते हैं। इससे चीन के “nine-dash line” के दावों तगड़ा झटका लगा है। अब तक फिलीपींस और वियतनाम जैसे देश संयुक्त राष्ट्र स्तर पर चीन के इन दावों का विरोध कर रहे अब फ्रांस भी UK और जर्मनी के साथ मिलकर चीन को सबक सिखाने के लिए मैदान में उतर चुका है।
देखा जाए तो राष्ट्रपति Emmanuel Macron (इमैनुएल मैक्रों) के नेतृत्व में France शुरू से ही चीन विरोधी कई बड़े कदम उठा चुका है। हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने Indo-Pacific क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक त्रिपक्षीय बैठक की थी। इस वर्चुअल मीटिंग की सह-अध्यक्षता विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, फ्रांसीसी मंत्रालय में महासचिव और विदेशी मामलों के प्रमुख Fran ois Delattre और ऑस्ट्रेलियाई विदेश मामलों के सचिव Frances Adamson ने किया। ऐसा पहली बार हो रहा था जब ये तीनों देशों एक साथ मिल कर Indo-Pacific में चीन के बढ़ते प्रभाव पर बैठक कर रहे थे। इस बैठक की सबसे खास बात फ्रांस का Indo-Pacific में रुचि दिखाना था जहां वह अपनी सहभागिता बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं था।
इससे पहले जब चीन ने चेक गणराज्य को ताइवान से रिश्तों को बढ़ाने के लिए उसे धमकी दी थी, तब उस दौरान अपने साथी देश चेक गणराज्य के समर्थन में आवाज उठाने वाले देशों में फ्रांस पहला देश था। वहीं मैक्रों ने लेबनान में भी हस्तक्षेप कर चीन के प्रभाव को कम करने ले लिए कदम उठाया। लेबनान की अर्थव्यवस्था की हालत वेनेजुएला और जिम्बाब्वे की तरह खराब हो चुकी थी जिसके बाद चीन उसे ऋण के जाल में फँसता जा रहा था, लेकिन अब फ्रांस ने लेबनान में हस्तक्षेप की घोषणा कर दी है और स्वयं राष्ट्रपति मैक्रों ने इस देश का दौरा हाल ही में किया था।
फ्रांस ने तो अपने यहां अनौपचारिक रूप से चीनी टेलिकॉम कंपनी हुवावे के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। France की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ANSSI के अध्यक्ष के एक बयान के मुताबिक France में हुवावे पर पूर्णतः प्रतिबंध तो नहीं लगाया जाएगा, लेकिन सरकार फ्रांस की टेलिकॉम कंपनियों को हुवावे से दूर रहने की सलाह दे रही है। हुवावे को लेकर डेटा चोरी और सुरक्षा मामलों की जानकारी सभी को है ऐसे में फ्रांस ने चीन के इस कंपनी के बहिष्कार करने की सलाह दे रही है।
वहीं, जब भारत-चीन विवाद अपने उफान पर था, तो फ्रांस की सरकार ने खुलकर भारत का समर्थन किया था। तब फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह को पत्र लिखते हुए गलवान घाटी के हमले में वीरगति को प्राप्त हुए 20 भारतीय सैनिकों के प्रति सांत्वना जताते हुए लिखा था, “ये सैनिकों, उनके परिवारों और देश के लिए बहुत बड़ा आघात है। ऐसे संकट की घड़ी में मैं अपने देश की ओर से और पूरी France सेना की ओर से इन सैनिकों के परिवारों के प्रति अपनी सांत्वना प्रकट करती हूँ”। इसके अलावा फ्लोरेंस पार्ली ने भारत आने की भी इच्छा जताई थी, और ये भी भरोसा दिलाया था कि France आवश्यकता पड़ने पर भारत को हरसंभव सहायता देगा।
इसी वर्ष मई में फ्रांस ने ताइवान के साथ एक बड़ी डिफेंस डील पक्की की थी जिससे ड्रैगन बुरी तरह चिढ़ा गया था। ताइवान ने अपना anti-missile system मजबूत करने के लिए France के साथ सुरक्षा समझौता किया था, जिसके कारण चीन ने पेरिस को “बुरा अंजाम” भुगतने की धमकी दी थी। परंतु फ्रांस ने भी चीन को यह साफ संदेश भेजा कि उसे चीन से किसी नसीहत की ज़रूरत नहीं है, बल्कि वह कोरोना पर ध्यान दे। ताइवान के साथ डिफेंस डील कर France ने न सिर्फ चीन को उसकी जगह दिखाई बल्कि खुली चुनौती भी दी थी।
France लगातार चीन विरोधी कदम उठाकर यूरोप के कई देशों को चीन के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित कर रहा है। ऐसे में ना सिर्फ ये देश चीन के खिलाफ खड़े होंगे, बल्कि अब तो ऐसा लगता है कि EU में फ्रांस का कद जर्मनी से भी बढ़ने लगा है। फ्रांस भी यही चाहता है। पूरे यूरोपियन यूनियन में अकेला France ही है, जो चीन का खुलकर सामना कर रहा है।