कैसे मोदी सरकार ने “महंगाई” मुद्दे को प्राथमिकता देकर इसे हमेशा के लिए खत्म कर दिया

आखिरी बार “महंगाई” किसी राजनेता के मुंह से आपने कब सुना था?

(PC: Mathrubhumi English)

“महंगाई” गरीबों पर लगने वाले उस tax का नाम है, जिसकी गंभीरता को हम समझने में बहुत बड़ी भूल कर बैठते हैं। दशकों से ही देश का गरीब इस tax से जूझता आया है। भ्रष्टाचार के अलावा वर्ष 2014 के चुनावों में कांग्रेस की हुई बुरी हार का एक बड़ा कारण “महंगाई” ही था। ये शायद पहली बार था जब महंगाई की मार देश के गरीब से ज़्यादा भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पर पड़ी थी। वर्ष 2014 में दो सबसे बड़े मुद्दे थे “महंगाई और भ्रष्टाचार”, जिन्हें भुनाकर भाजपा सत्ता तक पहुँचने में सफल रही थी।

NDA के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने आते ही महंगाई को काबू में करने के लिए Monetary Policy Committee और पारदर्शी सरकारी नीतियों के जरिये देश की इन दो सबसे बड़ी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया। भारत ने वर्ष 2015 में ऊर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली एक कमिटी के सुझावों के बाद inflation target को अपना लिया था। सरकार और RBI ने विचार-विमर्श कर tolerance band को 2 प्रतिशत सहित inflation के target rate को 4 प्रतिशत निर्धारित कर दिया था।

अक्सर अधिक विकास दर को महंगाई से जोड़कर देखा जाता है। यह माना जाता है कि जब आर्थिक विकास तेजी से होता है तो देश में महंगाई भी बढ़ती है। हालांकि, वर्ष 2009-10 में जब आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ना शुरू हुई, तो भी महंगाई दर वर्ष 2013 में 12.17 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। NDA सरकार का लक्ष्य यही था कि कैसे भी करके आर्थिक विकास और महंगाई के बीच एक संतुलन बना लिया। पिछली कुछ तिमाहियों में देश की विकास दर में धीमापन ज़रूर आया है, लेकिन NDA सरकार के दौरान देश में महंगाई काबू में ही रही है।

पिछली कुछ तिमाहियों में सरकार ने loans को बढ़ावा देने के लिए policy rate में भारी कमी की है, जिसके कारण देश में महंगाई बढ़ने के पूरे-पूरे आसार है, लेकिन अब तक तो सरकार ने महंगाई को काबू में ही किया हुआ है। आने वाले कुछ महीनों में अगर महंगाई दर 6 प्रतिशत से ज़्यादा होती है तो सरकार policy rate में इजाफा कर सकती है।

महंगाई का मुद्दा अब देश की राजनीति से गायब सा हो गया है, जिसका श्रेय काफी हद तक मोदी सरकार को ही जाता है। महंगाई को काबू में रखना मोदी सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी रहा है। इसी के साथ गरीबों पर लगने वाला ये tax भी समाप्त हो गया है। नीतिगत सुधारों और सरकारी तंत्र में सुधारों की कमी के कारण कभी सरकारें महंगाई पर काबू नहीं कर पाती थीं। हालांकि, पिछले कुछ सालों में अब यह मुद्दा देश के गरीबों का सरदर्द नहीं बन रहा है। अब एक बार जैसे ही देश की इकॉनमी कोरोना के चंगुल से बाहर आती है, उसके बाद देश का आर्थिक विकास भी तेजी पकडेगा।

जैसे-जैसे हम आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे वैसे देश का private सेक्टर और मजबूत होता जा रहा है। इसी दौरान सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वाली कई सरकारी कंपनियों जैसे HAL, बीएसएनएल और एयर इंडिया का भी निजीकरण किया जा रहा है, जो भारत के बाज़ारों में और बेहतर और सस्ती सुविधाएं प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा। बाज़ार में निजी खिलाड़ियों के बीच healthy competition की वजह से देश में Inflation में और कमी देखने को मिलेगी और भारत का 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनने का सपना जल्दी पूरा हो सकेगा।

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