‘उद्धव ने किया आरे मेट्रो प्रोजेक्ट रद्द’, ये देश के समय और पैसे की बर्बादी का अनूठा उदाहरण है

विकास के नाम पर उद्धव ने सिर्फ जनता को ठगा है!

प्रोजेक्ट

विनाश काले विपरीत बुद्धि यानि जब कभी कोई अपने अंत की ओर अग्रसर होता है तो उसकी समझ पर भी परदा पड़ जाता है सही गलत का अंतर दिखाई नहीं देता है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार इसी कहावत को सच कर दिखा रही है। महाराष्ट्र की सरकार ने आखिर “आरे मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट” को रद्द कर मुंबई के एक अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर दिया है। राज्य सरकार अब कंजूरमार्ग पर नया शेड बनाएगी।

यह कहाँ की बुद्धिमत्ता है कि अगर किसी प्रोजेक्ट का 25 प्रतिशत से अधिक काम पूरा हो गया हो और फिर उसे किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाए? आखिर दोबारा से होने वाले खर्च की भरपाई कौन करेगा? क्या यह टैक्स पेयर्स का रुपया नहीं है? अब नए प्रोजेक्ट के लिए जिस स्थान को चुना गया है उससे मेट्रो को कितना अतिरिक्त खर्च वहन करना होगा? क्या यह नुकसान सिर्फ महाराष्ट्र राज्य की है देश की नहीं ? अपने अहंकार के लिए आरे से इस प्रोजेक्ट को किसी अन्य स्थान पर करने के उद्धव सरकार के इस फैसले से न सिर्फ महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होने जा रहा है बल्कि देश को भी एक नुकसान होने जा रहा है।

दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने रविवार को कहा कि सरकार अब मुंबई में आरे कॉलोनी से कंजूरमार्ग मेट्रो कार शेड परियोजना को स्थानांतरित कर रही है। एक वेबकास्ट में, ठाकरे ने कहा कि परियोजना को कंजूरमार्ग में एक सरकारी भूमि में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और इस उद्देश्य के लिए भूमि शून्य दर पर उपलब्ध होगी।”

सरकार तो यह कह कर अपना मुंह छुपा रही है कि जमीन पाने में एक भी रुपये का खर्च नहीं करना पड़ेगा लेकिन अन्य खर्चों का क्या और जनता को होने वाली नई समस्याओं का क्या? उस दौरान जब पेड़ों की कटाई हुई थी तब मुंबई मेट्रो के प्रवक्ता ने बताया था कि जिन 2185 पेड़ों को काटा जाना था उनमें से 2141 पेड़ काटे जा चुके हैं। आखिर इन पेड़ों की क्या कीमत?

इस मामले का अध्ययन करने वाली एक कमिटी की रिपोर्ट को माने तो इस स्थानांतरित से  महाराष्ट्र के राजकोष पर न सिर्फ 7000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा बल्कि इस राज्य के एक इन्वेस्टर फ्रेंडली न होने का टैग लग जाएगा।

रिपोर्ट में बताया गया है कि कार शेड को स्थानांतरित करने से न केवल मेट्रो -3 की वित्तीय व्यवहार्यता खतरे में पड़ जाएगी, जो कोलाबा को Santacruz Electronic Export Processing Zone से जोड़ती है, बल्कि लोखंडवाला और कंजूर के बीच चलने वाली मेट्रो -6 की व्यवहार्यता पर भी सवालिया निशान लग जाएगा।

इस रिपोर्ट को बनाने वाले अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया था, “अगर कार शेड को कंजूर मार्ग पर स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो हमें सात किलोमीटर अतिरिक्त लाइन का निर्माण करना होगा।”

उन्होंने बताया कि, “इसके अलावा, इस 7 किमी पर कोई यात्री नहीं होगा। इसके बाद, न केवल निर्माण लागत बढ़ जाएगी, बल्कि किराया भी कम से कम 25 प्रतिशत बढ़ जाएगा। इससे पूरे मेट्रो -3 परियोजना आर्थिक रूप से भारी पड़ने वाला है।”

अब कोई यह जनता को बताए कि उद्धव सरकार के इस फैसले की कीमत उन्हें जीवन भर अधिक किराया दे कर चुकाना पड़ेगा।

इसके अलावा अगर कंजूरमार्ग में मेट्रो -3 और मेट्रो -6 के लिए एक कॉमन कार शेड बनाया गया है तो मेट्रो -3 के साथ सिंक करने के लिए मेट्रो -6 लाइन के सिग्नल और अन्य तकनीकी पहलुओं को फिर से बदलना होगा। जिसके लिए फिर से अधिक फंडिंग आवश्यकता होगी।

मुंबई में बनने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट्स को जापान की JAICA [Japan International Cooperation Agency] फंडिंग कर रही है और अगर उसे इस प्रकार के फैसलों से लागत बढ्ने की खबर मिलेगी तो हो सकता है कि वे फंडिंग ही रोक दे और पूरा का पूरा मेट्रो प्रोजेक्ट अनिश्चित काल के लिए हाल्ट हो जाए। आखिर इसकी भरपाई कौन करेगा? अदित्य ठाकरे या उनके बॉलीवुड के मित्रगण?

यही नहीं, पहले मेट्रो के बराबर परिचालन और हर दो मिनट में एक ट्रेन के खुलने की व्यवस्था थी, अब कार शेड के 7 किलोमीटर दूर होने से इस प्रक्रिया में भी देर होगी वह भी जब तक मेट्रो चलेगी जिसकी कीमत जनता को आपना समय नष्ट कर चुकाना होगा।

यही नहीं कंजूरमार्ग में जमीन के ऑनरशिप को ले कर भी विवाद है जो अगर समय पर नहीं सुलझाया गया तो यह प्रोजेक्ट फिर से रुक जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने आरे के फैसले पर कहा कि उनकी सरकार ने पहले कंजूरमार्ग पर विचार किया था, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया और हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया। कुछ निजी व्यक्तियों ने अपने अधिकारों का दावा किया था, स्टे वापस लेने का अनुरोध किया गया, लेकिन हाईकोर्ट चाहता था कि अगर भविष्य में दावों का निपटारा होता है तो उसके लिए राशि जमा की जाए। उन्होंने कहा कि 2015 में यह राशि लगभग 2,400 करोड़ रुपये थी। आज उस मामले की स्थिति क्या है? और अगर कोई सुप्रीम कोर्ट जाता है, तो फिर देरी के लिए कौन जिम्मेदार होगा?”

यह सावल भी सही है, क्योंकि जो जमीन पर दावा कर रहा है वो सुप्रीम कोर्ट जाने में क्यों हिचकिचाएगा? आरे मिल्क कॉलोनी में कार शेड का मुख्य विवाद 2,100 पेड़ों की कटाई के कारण था। वैसे भी पेड़ काटे जा चुके हैं और जमीन अब बैरन है। तो उद्धव और अदित्य ठाकरे आखिर क्यों अपनी जिद पर अड़े है?

यह पहला ऐसा प्रोजेक्ट नहीं है जिसमें उद्धव ठाकरे की सरकार ने अड़चन पैदा कर राज्य और देश दोनों के ऊपर बोझ बढ़ा कर नाम खराब किया है। इससे पहले उद्धव सरकार ने हाइपरलूप परियोजना को भी अनिश्चित काल के लिए रोक दिया था। 10 बिलियन की लागत से बनने वाली इस प्रोजेक्ट को सिर्फ इसलिए रोका गया था कि इसे कहीं और नहीं बनाया गया है। बता दें कि देवेंद्र फडणवीस ने अपने कार्यकाल में विश्व के पहले हाइपरलूप परियोजना को हरी झंडी दिखाई थी लेकिन उद्धव ठाकरे ने उस पर पानी फेर दिया था।

इससे पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 1.1 लाख करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना की  समीक्षा की घोषणा की थी। यह समीक्षा कितना समय लगाएगी और इस परियोजना को में कितनी देर होगी इसका कोई हिसाब नहीं है। महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी सरकार का नेतृत्व करने वाली शिवसेना ने बुलेट ट्रेन का विरोध तब भी किया था जब वह राज्य में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का हिस्सा थी। ऐसा लगता है कि यह सरकार राज्य और देश का विकास करना ही नहीं चाहती है।

पहले बुलेट ट्रेन, फिर हाइपरलूप और अब आरे मेट्रो शेड परियोजना, यह सरकार न सिर्फ विकास में बाधा डाल रही है बल्कि देश और राज्य के लोगों पर बोझ बढ़ा रही है। आरे कार शेड परियोजना को कैंसल कर न सिर्फ 7000 करोड़ की लागत बढ़ाई  है बल्कि महाराष्ट्र के लोगों के ऊपर हमेशा के लिए एक अतिरिक्त बोझ डाल दिया। न तो कटे हुए पेड़ों की कीमत को समझा गया और न ही जनता के समय का। यह पागलपन से कुछ भी कम नहीं है। इस तरह की विपरीत सोच व्यक्ति या संस्था पर विनाश के समय ही आता है।

 

 

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