अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच विवादित Nagorno-Karabakh क्षेत्र को लेकर दोनों देशों में जारी विवाद गहराता जा रहा है। पहले तो CSTO का बहाना देकर युद्ध में न आने की बात करने वाले रूस को अब युद्ध में कूदने का एक नया कारण मिल चुका है। रूस को मिले खुफिया रिपोर्ट के अनुसार हो रहे इस युद्ध दौरान के सीरिया से भेजे गए इस्लामिस्ट आतंकवादी वहाँ अपना लॉंन्च पैड बना सकते हैं फिर नागोर्नो-काराबाख के रास्ते रूस में एंट्री ले सकते हैं। इससे बचने के लिए इन आतंकवादियों का खात्मा आवश्यक है।
यह कोई संयोग नहीं है बल्कि रूस अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच चल रहे युद्ध में एंट्री चाहता है जिससे तुर्की और अज़रबैजान को सबक सीखा कर आर्मीनिया की मदद की जा सके। इस युद्ध में रूस उसी तरह एंट्री करना चाहता जैसे उसने सीरिया को उस क्षेत्र के लिए खतरा बता कर किया था।
अब Reuters की रिपोर्ट के अनुसार Nagorno-Karabakh में चल रहे युद्ध में तुर्की और अज़रबैजान आर्मीनिया के खिलाफ भाड़े के सैनिक के नाम पर इस्लामिस्ट आतंकवादियों को भेज रहे हैं। रूस के फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विस के प्रमुख Sergei Naryshkin का कहना है कि, “युद्ध क्षेत्र में जो भाड़े के सैनिक आ रहे हैं, वे मिडिल ईस्ट के आतंकवादी हैं। रूस पहले से ही हजारों आतंकवादियों से जूझ रहा है, अब काराबाख युद्ध में पैसा कमाने की उम्मीद करते हुए कई और आतंकवादी भी कूद पड़े हैं।“
उन्होंने चेतावनी दी कि दक्षिण Caucasus क्षेत्र “अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के लिए एक नया लॉन्च पैड” बन सकता है, जहां से आतंकवादी रूस सहित अन्य देशों में प्रवेश कर सकते हैं।
बता दें कि आर्मीनिया के दावों के मुताबिक अंकारा ने अपने करीब 4,000 लड़ाकों को सीरिया से अज़रबैजान भेजा है, ताकि वे आर्मीनिया के खिलाफ बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे सकें। तुर्की इससे पहले लीबिया और सीरिया में भी इन्हीं मसूबों पर काम कर चुका है।
रूस इन्हीं चेतावनियों के मद्देनजर सावधान हो गया है और इसे युद्ध में कूदने का एक मौका कहना गलत नहीं होगा। रूस इससे पहले इस युद्ध में CSTO का हवाला देते हुए यह कह रहा था कि युद्ध आर्मीनिया के क्षेत्र में नहीं हो रहा है इस कारण वह युद्ध में सीधे मदद नहीं कर सकता है।
बता दें कि NATO के ही तर्ज पर आर्मीनिया और रूस Collective Security Treaty Organization यानि CSTO के सदस्य हैं, जिसके मुताबिक अगर किसी भी CSTO सदस्य पर कोई हमला होता है तो वह सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है। कुछ दिनों पहले ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि हम आर्मीनिया की CSTO के सदस्य होने के नाते सभी प्रकार से मदद करेंगे, लेकिन यह युद्ध अभी आर्मीनिया के क्षेत्र में नहीं लड़ा जा रहा है। यानि वह इस युद्ध में CSTO को कारण बताकर नहीं उतर सकता है।
ऐसे में यह अब रूस इस्लामिक आतंकवादियों के मुद्दे को लेकर क्षेत्र की शांति और रूस की सुरक्षा को कारण बताते हुए युद्ध में कूद जाये तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। रूस ऐसे कदम पहले भी सीरिया में उठा चुका है। जब सीरिया में गृह युद्ध हुआ तब सीरियाई सरकार के मदद के लिए रूस आगे आया था और कारण इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों के सफाये और सीरिया में स्थिर सरकार की स्थापना को बताया था।
लेकिन यहां पर जिस तेज़ी के साथ तुर्की सैनिकों के नाम पर इस्लामिक आतंकवादियों को भेज रहा है उससे यह क्षेत्र इन आतंकवादियों के लिए एक नया लॉंन्च पैड बन सकता है। ऐसे में ये न ही रूस की सुरक्षा के लिए अच्छा होगा और न ही क्षेत्र की शांति के लिए। जिस तरह से इस्लामिक आतंकवादियों ने सीरिया के क्षेत्र को कब्जा कर अपना गढ़ बना लिया था, वही हालत Nagorno-Karabakh की भी हो सकती है और आतंकवादियों के पनपने का कारण बन सकते हैं। इसलिए इन आतंकवादियों का सफाया आवश्यक है। यही एक कारण हो सकता है जिससे रूस आसानी से युद्ध में प्रवेश कर ले और तुर्की को सबक सीखा सकता है। तुर्की इस युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है यही कारण है कि रूस प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में नहीं उतर सकता। इसके लिए उसे किसी अन्य बहाने से युद्ध में एंट्री लेना होग और रूस को इसके लिए एक कारण मिल चुका है।