आज दुनिया के लगभग सभी देश चीन और तुर्की के आक्रामक रवैये से परेशान है, और यही आक्रामक रवैया विश्व की जियो पॉलिटिक्स को उथल-पुथल कर चुका है। तुर्की का इसमें साथ दे रहा है एक और आतंकी देश पाकिस्तान । अब पूरा विश्व इन दोनों की साझेदारी को तहस-नहस करने के लिए भारत की तरफ निगाहें लगा कर बैठा है। यूरोप के कई देशों के बाद अब ग्रीस भी भारत के साथ अपने सम्बन्धों को नया आयाम देने की राह पर चल पड़ा है।
दरअसल, तुर्की और पाकिस्तान के नेक्सस से विश्व में एक बार फिर से कट्टरपंथी आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है। कश्मीर को लेकर भारत विरोधी अजेंडा चलाने से लेकर फ्रांस में एक शिक्षक की हत्या तक के समर्थन में आए इन दोनों देशों ने दुनिया भर के नाक में दम कर दिया है। पिछले कुछ महीनों में तुर्की ने ग्रीस और आर्मेनिया दोनों के खिलाफ युद्ध की स्थिति पैदा कर दी जिसके बाद अब ग्रीस उसे सबक सिखाने के लिए कई वैश्विक शक्तियों के साथ सुरक्षा सम्बन्धों को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है जिसमें भारत सबसे पहले आता है। गुरुवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर और ग्रीस के विदेश मंत्री निकोस देंदियास के बीच वर्चुअल द्विपक्षीय बैठक हुई।
In video conference, FM @NikosDendias & #India FM @DrSJaishankar discussed strengthening 🇬🇷🇮🇳 relations & dvpts in #EasternMediterranean & South Asia
Τηλεδιάσκεψη ΥΠΕΞ Ν.Δένδια με ΥΠΕΞ Ινδίας S. Jaishankar για εμβάθυνση διμερών σχέσεων & εξελίξεις σε Αν.Μεσόγειο και Νότια Ασία. pic.twitter.com/hbNo9tc3aE
— Υπουργείο Εξωτερικών (@GreeceMFA) October 29, 2020
दोनों मंत्रियों ने रक्षा क्षेत्र और विशेष रूप से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने पर भी चर्चा की। ग्रीस और भारत दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है। एक तरफ ग्रीस का पड़ोसी उसके क्षेत्रों पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है तो भारत का पड़ोसी पाकिस्तान आतंकवाद से भारत को अस्थिर करने के प्रयास में लगा रहता है। यही नहीं तुर्की ने पाकिस्तान के साथ ईस्टर्न मेडिटेरियन क्षेत्र में सैन्य अभ्यास करने का ऐलान किया है जिसकी वजह से ग्रीस चिंतित है। यही वजह है कि ग्रीस व भारत के बीच बेहतर संभावनाओं को बनते हुए देखा जा रहा है।ग्रीस ने भारत के साथ दोस्ती कर एक बेहतरीन चाल चली है।
A very warm virtual meeting with FM @NikosDendias of Greece. Discussed building on our historical friendship through enhanced cooperation in commerce, technology and culture. The agenda covered our respective regional situations. Will work closely in the multilateral domain. pic.twitter.com/v1C0GROI7N
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) October 29, 2020
सिर्फ ग्रीस ही नहीं बल्कि कई यूरोपीय देश भी भारत के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूती देने के लिए कई कदम उठा चुके हैं।
हागिया सोफिया से लेकर भूमध्य सागर में आक्रामकता और यूरोप में रिफ़्यूजियों का हुजूम भेजने की बार-बार धमकी से पूरा यूरोप तुर्की से परेशान है। वहीं पाकिस्तान में किस तरह आतंकी पनपते हैं यह विश्व रोज़ ही देखता है।
अब सभी देश इन दोनों के आतंकी नेक्सस के खिलाफ एक हो रहे है। जिस तरह चीन के खिलाफ मोर्चे बंदी के लिए यूरोपीय देशों ने भारत की ओर रुख किया था उसी तरह तुर्की के खिलाफ भी इसी रणनीति को अपनाया जा रहा है। चीन के खिलाफ भारत ने EU के देशों के साथ अपने सम्बन्धों को नई ऊंचाई दी थी। आज ही ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख प्रकाशित करते हुए लिखा कि भारत और EU के बीच सम्बन्धों के बढ़ने की वजह से विश्व के जियो पॉलिटिक्स में नए बदलाव देखने को मिलेंगे।
#Opinion: Closer EU-India relations may add a new element of unpredictability to the already turbulent and disturbing realignment of geopolitics. It may be leveraged against China and worsen China's external environment. https://t.co/QgLh3UlwHo pic.twitter.com/9gJtD5WGsk
— Global Times (@globaltimesnews) October 31, 2020
भारत को केंद्र में ही रख कर जर्मनी ने “Indo-Pacific Strategy,” में बदलाव कर इसे भारत केन्द्रित बनाया था वहीं फ्रांस के भारत के साथ सुरक्षा संबंध बढ़ ही रहे हैं।
अब जिस तरह से तुर्की और पाकिस्तान ने मिलकर फ्रांस के खिलाफ इस्लामिक अभियान शुरू किया और अन्य देशों को भी उकसाने का काम कर रहें है ऐसे में इन दोनों को चीन की तरह ही घेरना बेहद महत्वपूर्ण है जिससे इन आतंकी देशों को काबू में किया जा सके।
भारत में फ्रांस के खिलाफ चलाये जा रहे तुर्की और पाकिस्तान के एजेंडे के खिलाफ समर्थन कर यह बता दिया कि भारत तुर्की और पाकिस्तान के नेक्सस के खिलाफ जाने से एक कदम भी पीछे नहीं हटेगा। ऐसे में अब इन सभी देशों की नज़र भारत की ओर है। भारत और यूरोप के देशों के बीच सम्बन्धों में प्रगाढ़ता से टर्की के लिए अपनी विदेशी आर्थिक नीति और सुरक्षा रणनीति का संरचनात्मक रूप में बदलाव करने के लिए दबाव बढ़ सकता है जिसके बाद पूरे क्षेत्र में शांति देखने को मिल सकती है। यह विडम्बना ही है कि वर्ष 1987 में European Economic Community में अप्लाई करने वाले तुर्की के खिलाफ आज स्वयं EU ने मोर्चा खोल दिया है।