भारत चीन के खिलाफ ‘खड्ग कोर’ को तैयार कर रहा, इसे दुश्मनों को धूल चटाने में महारत हासिल है

PC: TimesNowNews

एक कहावत है अगर शांति की स्थापना करनी हो तो युद्ध की तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। चीन के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत कई दिनों से अपनी सेना को तैयार करने में जुटा है। इसी तैयारी की समीक्षा के क्रम में भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने सोमवार को अंबाला स्थित द्वितीय कोर का दौरा किया जिसे खड्ग कोर के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान उन्होंने इस कोर की सुरक्षा और परिचालन संबंधी तैयारियों की समीक्षा की।

खड्ग वाहिनी के रूप में लोकप्रिय द्वितीय कोर, भारत की सबसे आक्रामक क्षमताओं के साथ सेना की सबसे शक्तिशाली कोर में से एक है। इसे पाकिस्तान के साथ निपटने के लिए ही बनाया गया था और यह कोर 1971 के युद्ध में सबसे निर्णायक भूमिका में था।

थल सेनाध्यक्ष ने अंबाला वायुसेना अड्डे का भी दौरा किया और दोनों सेनाओं के बीच तालमेल की सराहना की। अपने दौरे के दौरान सेनाध्यक्ष ने जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल एसएस महल से मुलाकात की और बाद में उन्होंने गठन कमांडरों के साथ बातचीत की। सेना ने एक बयान में कहा, “उन्होंने उच्च स्तरीय परिचालन तैयारियों के लिए गठन की सराहना की और गठन और इकाइयों द्वारा COVID -19 के खिलाफ सुरक्षा उपायों की सराहना की।” जनरल नरवणेे ने सभी रैंकों को “उत्साह” के साथ काम करना जारी रखने और भविष्य की किसी भी परिचालन चुनौतियों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया।

यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि जैसे-जैसे सर्दी बढ़ रही है वैसे-वैसे युद्ध के लिए बॉर्डर इलाका और भी कठिन होता जा रहा है। युद्ध की स्थिति में चीन पर भारतीय सेना तो यमदूत बनकर टूटेगी ही साथ में उन्हें मौसम की मार भी झेलनी होगी। भारत की सेना ऐसे किसी भी मौसम में युद्ध के लिए वर्ष के किसी भी दिन तैयार रहती है और कारण है इसकी तैयारी। बॉर्डर पर युद्ध के लिए बनाए गए खास तौर पर द्वितीय कोर का युद्ध में सामना करना वैसे ही घातक साबित होगा जैसे 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के लिए हुआ था।

बता दें कि इस कोर को 7 अक्टूबर, 1971 को पश्चिम बंगाल के कृष्णा नगर में तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल टी एन रैना ने पूर्वी पाकिस्तान में पाक आर्मी की हरकत देखते हुए स्थापित किया था और दो महीने बाद दिसंबर महीने में ही पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू हो गया था।  लेफ्टिनेंट जनरल टी एन रैना बाद में जा कर भारत के सेनाध्यक्ष भी बने।

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, खड्ग कोर ने गंगा और पद्मा नदियों के बीच के कई क्षेत्रों के साथ खुलना, जेसोर, जेनिडा, मगुरा और फरीदपुर के महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा कर लिया था । बांग्लादेश की मुक्ति के अभियान में इस कोर ने अद्वितीय बहादुरी का प्रदर्शन किया था। युद्ध के मैदान में दुश्मन के विनाश के प्रतीक देवी काली के पौराणिक हथियार, खड्ग को अपना प्रतीक मानने वाले इस कोर ने रणक्षेत्र में उसी तरह का प्रदर्शन भी किया है। नवीनतम तकनीकि के माध्यम से दुश्मन को तेजी से परास्त कर इस कोर के जवान सीमा पार जाकर कहर बरपाने के लिए जाने जाते हैं।

इसने जरूरत के समय में नागरिक प्रशासन की सहायता भी की है।

हालांकि इसके बाद, पाकिस्तान के साथ सटे उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए कोर को पश्चिमी थिएटर में स्थानांतरित कर दिया गया जहां यह शुरुआत में 1984 तक चंडी मंदिर छावनी में स्थित था, और फिर जनवरी 1985 में अंबाला में स्थानांतरित हो गया।

इस विशेष कोर के साथ जनरल नरवणे की बैठक को एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि आने वाले समय में खड्ग कोर की भूमिका बेहद अहम रहने वाली है।

हालांकि, यह पहली बार नहीं होगा जब भारत चीन को सबक सिखाने के लिए अपनी सबसे शक्तिशाली और खतरनाक सेना की टुकड़ी की मदद लेगा। कुछ ही दिनों पूर्व भारत के गुप्त विशेष फ्रंटियर फोर्स (SFF) ने पूर्वी लद्दाख में चीनी PLA के खिलाफ एक्शन लिया था जिसमें चीन को नुकसान हुआ था।

अब अगर चीन के साथ युद्ध की स्थिति आती है तो भारत की तैयारी पक्की दिखाई दे रही है। भारत की सभी स्ट्राइक कोर अपने अपने थियेटर में पूर्ण रूप से दिखाई दे रहे हैं तथा सेनाध्यक्ष स्वयं स्थिति का निरीक्षण कर रहे हैं। ऐसे में चीन का इस बार बचना नामुमकिन दिखाई दे रहा है।

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