अमेरिकी चुनावों से ठीक पहले अमेरिकी सरकार ने ईरान पर और ज़्यादा कड़े प्रतिबंधों का ऐलान किया है, जिसके बाद नई दिल्ली में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे ईरान के चाबहार पोर्ट को लेकर चिंताएँ बढ़ गयी थी। हालांकि, अमेरिका और भारत के बीच होने वाली 2+2 वार्ता होने से पहले ही अब अमेरिका की ओर से यह साफ़ कर दिया गया है कि अमेरिका के नए प्रतिबंध किसी भी तरह चाबहार पोर्ट पर भारत के प्रोजेक्ट्स पर प्रभाव नहीं डालेंगे। स्पष्ट है कि अमेरिका भारत की जरूरतों को समझते हुए ईरान पर अपने सख्त तेवर होने के बावजूद भारत को छूट देने पर मजबूर हुआ है, जो मजबूत होते भारत-अमेरिका के सम्बन्धों का एक बड़ा प्रतीक है।
बता दें कि इसी महीने की शुरुआत में ट्रम्प प्रशासन की ओर से 18 बड़े ईरानी बैंकों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया गया था। इस प्रतिबंध के बाद अमेरिका के किसी भी व्यक्ति (Individuals एवं Companies) के साथ इन बैंकों के साथ किसी भी प्रकार के लेन-देन करने पर रोक लग गयी है। ऐसे में अब अमेरिका अपने प्रतिबंधों को Extend कर आसानी से उन Entities पर भी प्रतिबंध लगा सकता है, जो इन प्रतिबंधित बैंकों के साथ वित्तीय लेन-देन करेंगे। इसके बाद भारत सरकार ने अमेरिकी सरकार को चाबहार पोर्ट को लेकर चिंता प्रकट की थी। हालांकि, अब अमेरिकी सरकार ने चाबहार को लेकर नई दिल्ली की सभी चिंताओं को दूर कर दिया है।
भारत चाबहार को वर्ष 2016 से ही विकसित कर रहा है। इसी वर्ष भारत ने चाबहार को विकसित करने के लिए 100 करोड़ का बजट आवंटित किया था। अब इसके बाद भारत ने इस पोर्ट पर अपने Operations में तेजी ला दी है। इस पोर्ट के जरिये पहले सामान अफ़ग़ानिस्तान भेजा जा रहा था, अब जल्द ही भारत पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देशों तक भी अपना सामान पहुंचा सकता है। जुलाई महीने में केन्द्रीय मंत्री मंसुख लाल ने यह ऐलान किया था कि इन देशों तक सामान पहुंचाने में भारत को अब 20 प्रतिशत कम खर्चा करना पड़ेगा, क्योंकि चाबहार पोर्ट के जरिये व्यापार का रास्ता छोटा हो गया है, जबकि पहले भारत को यूरोप अथवा चीन के माध्यम से ही इन देशों तक पहुंचना पड़ता था।
भारत अब ट्रांसपोर्ट के 20 प्रतिशत कम खर्चे में ही आर्मेनिया, अजेरबैजान, बेलारूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और रूस जैसे देशों तक पहुँच सकता है। ट्रांसपोर्ट में खर्चा कम होने की वजह से अब इन देशों के बीच ट्रेड भी बढ़ सकता है। यहाँ सबसे रोचक बात यह है कि भारत के साथ रूस भी चाबहार का इस्तेमाल कर सकता है। दरअसल, रूस ने पिछले वर्ष चाबहार के जरिए दक्षिण एशिया में अपना ट्रेड बढ़ाने में रूचि दिखाई थी। पिछले वर्ष रूस के अधिकारियों ने चाबहार पोर्ट का दौरा भी किया था, जिसके बाद रूस ने कहा था कि इस पोर्ट के माध्यम से सामान लाने-और ले-जाने पर अमेरिका की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है, ऐसे में रूस के लिए भी इस पोर्ट का इस्तेमाल फायदेमंद साबित हो सकता है।
चाबहार के जरिए भारत मध्य एशिया के देशों पर अपनी पकड़ मजबूत कर चीन के लिए बड़ी चुनौती पेश करना चाहता है। अभी मध्य एशिया के देशों में चीन के खिलाफ रोष है और वे चीन के विकल्प की तलाश में हैं। एक तरफ कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों पर चीन का कर्ज़ बढ़ता जा रहा है, तो वहीं इन देशों में मौजूद चीनी लोग अपनी संस्कृति को क्षेत्रीय लोगों पर थोप रहे हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2017 में होती है, जब कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बीजिंग में BRI फोरम की बैठक के लिए पहुंचे थे। इन सब देशों ने मिलकर चीन के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई थी। कुछ प्रोजेक्ट कनेक्टिविटी से जुड़े थे, तो कुछ ऊर्जा से, और सभी को यह सपना दिखाया गया था कि कुछ सालों के बाद उनके देशों में सब अच्छा होने लगेगा। लेकिन महज़ दो सालों के भीतर ही सब कुछ पटरी से उतर चुका है। कई प्रोजेक्ट शुरू होकर अधर में लटक चुके हैं, और कई प्रोजेक्ट्स अभी तक सिर्फ कागज़ पर ही हैं। लेकिन इतने समय में इन देशों पर चीन का कर्ज़ बड़ी मात्रा में बढ़ चुका है।
ऐसे में भारत के लिए यहाँ एक बड़ा अवसर मौजूद है और अमेरिका अब इस बात को अच्छे से समझ चुका है। अमेरिका भी जानता है कि मध्य एशिया में भारत की पकड़ मजबूत होने से चीन के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी, जो कहीं न कहीं अमेरिका के हित में भी है। अमेरिका के इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका-भारत की साझेदारी सिर्फ Indo-Pacific तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह दुनिया के हर हिस्से में समान रूप से प्रभावी है।