तुर्की जल्द ही NATO से धक्के मारकर बाहर निकाला जाएगा, संकेत तो यही कहते हैं

तुर्की का Fry होना अब तय!

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तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन हर गुज़रते दिन के साथ अपने लिए नए दुश्मन बनाते जा रहे हैं, जिसके कारण अब खुद NATO के सदस्य उससे तंग आ चुके हैं। हालिया अज़रबैजान-अर्मेनिया विवाद की आग में जिस प्रकार तुर्की ने घी डालने का काम किया है, उसके बाद NATO के सदस्यों का धैर्य जवाब देने लगा है। अब ऐसे संकेत मिलने लगे हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि तुर्की को जल्द ही NATO से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

उदाहरण के लिए अब कनाडा ने भी तुर्की को कड़ी धमकी देते हुए कहा है कि अगर तुर्की कनाडा की तकनीक का इस्तेमाल मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए करता हुआ पकड़ा जाता है तो कनाडा तुरंत तुर्की को अपना सारा सैन्य निर्यात रोक देगा। कनाडा के विदेश मंत्री François-Philippe Champagne ने तुर्की को ये धमकी दी। ऐसा तब हो रहा है जब पहले ही EU में तुर्की पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है। साइप्रस पहले ही EU को यह चेतावनी जारी कर चुका है कि अगर EU तुर्की पर प्रतिबंध नहीं लगाता है तो वह बेलारूस पर भी प्रतिबंध नहीं लगने देगा और उसके लिए अपनी आधिकारिक स्वीकृति प्रदान नहीं करेगा। जिस प्रकार फ्रांस और ग्रीस जैसे देश तुर्की से तंग आ चुके हैं, उसके बाद यह कहना जल्दबाज़ी नहीं होगी कि तुर्की जल्द ही EU के प्रतिबंधों का शिकार बन सकता है।

ऐसा लगता है कि तुर्की और NATO की विचारधारा अब एक दूसरे से बिलकुल अलग हो चुकी है। तुर्की रूस से हथियार खरीद रहा है, हमास के आतंकवादियों के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है, सीरिया और लीबिया में अपने लड़ाकों और आतंकियों को भेजकर जमीनी हालातों को और बिगाड़ने में लगा है। ऐसे में अब NATO के प्रमुख देश भी तुर्की की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगे हैं।

उदाहरण के लिए अमेरिका को ही ले लीजिये। सीरिया में तुर्की की हरकतों से परेशान होकर अक्टूबर 2019 में ट्रम्प ने जब एर्दोगन को कड़ी भाषा में पत्र लिखा था, तभी यह निश्चित हो गया था कि अब अमेरिका के लिए तुर्की एक साथी तो बिलकुल नहीं रहा। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था “तानाशाह की तरह कठोर बनने की कोशिश मत करो, वरना बर्बाद हो जाओगे। अपने लक्ष्‍य को मानवीय तरीके से हासिल करो, वरना यह इतिहास आपको शैतान के रूप में याद करेगा। कठोर और जटिल आदमी मत बनो मूर्ख मत बनो। आप हजारों लोगों के कत्‍लेआम के लिए जिम्‍मेदार नहीं होना चाहते और मैं तुर्की की अर्थव्‍यवस्‍‍था को नष्‍ट करने का जिम्‍मेदार नहीं होना चाहता हूँ।”

अमेरिका तुर्की को अधिकतर हथियारों का निर्यात भी रोक चुका है। साथ ही साथ, अब अमेरिका तुर्की में मौजूद अपने military bases के विकल्प के रूप में ग्रीस के Crete द्वीप पर अपना military base विकसित करने में लगा है, ताकि तुर्की पर उसकी निर्भरता कम हो सके। इस संबंध में कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ग्रीस यात्रा पर भी गए थे। हालांकि, इस सब के बावजूद भी तुर्की है कि मानता नहीं! तुर्की का एक ही इलाज है, और वो ये है कि जल्द से जल्द तुर्की को NATO से बाहर का रास्ता दिखाकर उसपर कड़े से कड़े प्रतिबंध लगाए जाएँ, ताकि वह अपनी हरकतों से बाज़ आ सके। UK, अमेरिका, फ्रांस और अन्य पश्चिमी लोकतांत्रिक देश एर्दोगन के तानाशाही रवैये को बर्दाश्त बिलकुल नहीं करने वाले। अब जिस प्रकार अमेरिका, कनाडा और EU की ओर से संकेत देखने को मिल रहे हैं, उसके बाद यह आसानी से कहा जा सकता है कि तुर्की अब NATO में चंद दिन का ही मेहमान रह गया है।

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