1 रुपए की जमानत पर रिहा हुए प्रशांत भूषण ने फिर लगाए CJI पर मनगढ़ंत आरोप

हार की खीझ गलत जगह निकाल रहे हैं भूषण, बहुत भारी पड़ेगा..

प्रशांत

विवादों के लिए मशहूर सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण अब न्यायाधीशों को भी अपने सामने छोटा समझने लगे हैं। हाल ही में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के जज एस एन बोबड़े की मध्यप्रदेश यात्रा में सराकरी वाहनों के इस्तेमाल होने का मुद्दा उठाया है और इसके पीछे किसी साठ-गांठ की बात कही है। खुद को कानून का जानकार मानने वाले प्रशांत भूषण लगता है इस मामले से जुड़े तथ्यों और प्रोटोकॉल्स पर गौर करना भूल गये और यदि ऐसा है तो उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से उलझने से ज्यादा ध्यान अपने कानूनी ज्ञान पर देना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के दोषी और एक रुपए के जुर्माने पर बरी होने वाले वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाते हुए ट्वीट में कहा,“सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जज मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहन के आधिकारिक हैलीकॉप्टर में यात्रा कर  रहे हैं, इसी से वो कान्हा नेशनल पार्क और अपने घर नागपुर जा रहे हैं।” इसके साथ ही उन्होंने इस मामले को मध्य प्रदेश सरकार से जुड़े विधायकों के केस से जोड़ा और ये इशारा करते हुए कहा,“ये सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि ये केस महत्वपूर्ण हैं।”

 

दरअसल,देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर एक प्रोटोकॉल है जिसके तहत ये गणमान्य लोग देश में कहीं भी होंगे तो उनकी सुरक्षा की पूरी जिम्मदारी राज्य एवं केन्द्र सरकार के अधीन होगी। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वो छुट्टी पर हैं या नहीं। यहां तक कि वो किसी भी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश में जाएंगे तो उनकी सुरक्षा समेत सभी तरह की सुविधाओं की सारी जिम्मेदारी उस राज्य की ही होगी, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो राज्य मध्य प्रदेश है या मणिपुर।

इस प्रवाधान के कारण ही मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के जज एस एन बोबड़े को सुरक्षा के तहत हेलीकॉप्टर और अन्य सुविधाएं दी गईं हैं। भले ही वो इस वक्त दशहरे की छुट्टी पर हैं, लेकिन उन्हें सरकारी कानूनों के अंतर्गत ही सुविधाएं मिली हैं। असल में मध्य प्रदेश सरकार संवैधानिक नियमों का ही पालन कर रही है। दरअसल, “मध्यप्रदेश राज्य अतिथि नियम, 2011” के अनुसार, अत्यधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति /अति महत्वपूर्ण व्यक्ति, गणमान्य व्यक्ति जब भी मध्यप्रदेश राज्य में भ्रमण पर हों तो वो “राज्य अतिथि” के रूप में मान्य होंगे और राज्य सरकार द्वारा उन्हें सुरक्षा, आवास, खानपान, परिवहन आदि सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। इसलिए इस मामले में कोई राय बनाना या दुष्प्रचार करना असल में बदनीयती का पर्याय ही होगा।

मध्य प्रदेश के दागी नेताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक केस चल रहा है, जिससे सरकार के बहुमत पर खासा असर पड़ सकता है। ऐसे में प्रशांत भूषण ने जस्टिस बोबड़े की सुविधाओं को लेकर बोबड़े और मध्य प्रदेश की सरकार के बीच मिली-भगत की बात की है। इससे वो ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि इन सुविधाओं के दम पर एमपी सरकार इस केस की सुनवाई और नतीजे को प्रभावित कर रही है जबकि सरकार केवल अपना कर्तव्य निभा रही है।

कानून के कथित जानकार प्रशांत भूषण इस केस, संवैधानिक अधिकारों और प्रोटोकॉल, सब कुछ अच्छी तरह जानते हैं लेकिन बात बस इतनी सी है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के साथ विवादों में उलझने की बुरी आदत है। कुछ दिनों पहले की ही बात है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को चोट पहुंचाते हुए बेहद ही विवादित टिप्पणियां की थीं जिसका स्वतः संज्ञान लेकर कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए सांकेतिक तौर पर एक रुपए का जुर्माना भी लगाया था। सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ा केस अभी-भी लंबित है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जज एस एन बोबड़े के लिए पुनः इस तरह की टिप्पणी करना उनके लिए एक नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

प्रशांत भूषण अपनी बचकानी हरकतों के कारण सुप्रीम कोर्ट से लगातार फटकार सुनते रहे हैं। इसी के चलते अब वो अपनी खीझ निकालते हुए आए दिन सुप्रीम कोर्ट पर कोई-न-कोई विवादित टिप्पणी कर देते हैं और जब फटकार लगती है तो लोकतंत्र बचाने के नाम पर अपने खिलाफ हुई कार्रवाई पर शहादत का ढोंग करने लगते हैं। ऐसे में अब उन्हें अपनी खीझ निकालने के लिए किसी और को निशाना बनाना चाहिए ।

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