किर्गिस्तान को लेकर पुतिन और जिनपिंग आमने-सामने

बेलारूस के बाद किर्गिस्तान बना अखाड़ा!

किर्गिस्तान

आज के दौर में मध्य एशिया कई शक्तिशाली देशों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और ये देश इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। हाल के दिनों में रूस और चीन के बीच मध्य एशिया के देशों को लेकर भयंकर घमासान चल रहा है और इस संघर्ष के मध्य में है किर्गिस्तान।

किर्गिस्तान पर चीन का साया पड़ने के बाद अब एक बार फिर से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस देश पर अपना प्रभुत्व कायम करने का प्रयास तेज़ कर चुके हैं। इन दो महाशक्तियों के बीच अचानक पैदा हुए इस संघर्ष की वजह किर्गिस्तान में हुआ राजनीतिक उथल-पुथल है। इस महीने की शुरुआत में, किर्गिस्तान में चुनाव हुए थे और परिणामों से पता चला कि 15 वर्षों से वहाँ सत्ता पर काबिज सरकार के समर्थक दलों ने बहुमत प्राप्त की हुई थी। लेकिन विपक्ष ने चुनाव परिणामों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है।

संसदीय चुनाव से जुड़े विवादों के कारण किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सोरोनबे जेनेबकोव के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। किर्गिस्तान की राजनीतिक स्थिति में दिलचस्पी दिखाते हुए रूस ने कहा है कि किर्गिस्तान के पूर्व-सोवियत देश होने के नाते, रूस वहाँ की सरकार को पूरी तरह से टूटने से रोकने के लिए एक सुरक्षा संधि द्वारा बाध्य है।

इस बीच बीजिंग ने किर्गिस्तान से वहाँ चल रहे चुनावी हंगामे को निपटाने का आग्रह किया तथा “बाहरी ताकतों” द्वारा हस्तक्षेप पर विरोध भी व्यक्त किया है। यानि एक तरफ रूस किर्गिस्तान में जारी राजनीतिक अराजकता को समाप्त करना चाहता है, तो वहीं चीन रूस को इस मध्य एशियाई देश से दूर करना चाहता है।

रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने एक ब्रीफिंग में कहा, “स्थिति गड़बड़ और अराजकता से भरी है।”  दूसरी ओर, चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुन्यिंग ने कहा कि, “चीन  किर्गिस्तान के आंतरिक मामलों में बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप का घोर विरोध करता है।”

इन दोनों के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि किर्गिस्तान चीन-रूस संबंधों में कड़वाहट बढ़ा रहा है और यह एक भयंकर तनाव का कारण भी बन सकता है। पुतिन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के लिए अब यह महत्वपूर्ण है कि कौन किसे मात देता है।

रूस किर्गिस्तान में विशेष रुचि रखता है और उसे अपने “प्रभाव क्षेत्र” का हिस्सा मानता है। इसलिए मास्को, किर्गिस्तान में या इस मामले में बढ़ते चीनी प्रभाव को समाप्त करने की कोशिश अवश्य करेगा। वहीं दूसरी ओर, ड्रैगन स्वयं मध्य एशिया में अपना विस्तार करना चाहता है।

बीजिंग, किर्गिस्तान में प्रभाव खोने से थोड़ा चिंतित अवश्य होगा क्योंकि किर्गिस्तान चीन के कब्जे वाले शिनजियांग के साथ 1,000 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करता है। शिनजियांग में जिस तरह से चीन उइगर मुस्लिमों के साथ अत्याचार करता है उससे किर्गिस्तान के भीतर भयंकर असंतोष है। रूस अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर चीन पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार किर्गिस्तान मध्य एशिया में सबसे बड़ा चीनी-विरोधी भावना का केंद्र है।

अब तक चीन किर्गिस्तान में सबसे बड़ा निवेशक और सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर वहाँ की सरकार को चुप रखने में सफल रहा था। हालांकि, अगर रूसी राष्ट्रपति पुतिन, Kyrgyzstan में चल रहे राजनीतिक अराजकता को हल करने में सक्षम रहते हैं तो सत्ता में कोई भी रहे वह उस पर प्रभाव डालने में सक्षम ही होंगे।

इसलिए अगर रूस Kyrgyzstan में चल रहे राजनीतिक संकट में शांतिदूत की भूमिका निभाता है तो वह चीन को वहाँ से बाहर करने में सफल हो जाएगा और जिनपिंग यह बर्दाश्त नहीं कर सकते।

साथ ही जब Kyrgyzstan सरकार शिनजियांग क्षेत्र में चीनी मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में बोलना शुरू करेगी तो बीजिंग का उइगर मुस्लिमों के मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण से बचना मुश्किल होगा।  यही नहीं, अगर आर्थिक पक्ष देखा जाए तो चीनी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, चीन-किर्गिस्तान के बीच 209 में 6.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार रहा था। ऐसे में बीजिंग इस आर्थिक लाभ को नहीं खोना चाहेगा। इस लिए दोनों ही नेताओं का बहुत कुछ दांव पर लगा है।

वहीं दूसरी ओर Kyrgyzstan में राजनीतिक संकट दूर कर वहाँ प्रभाव जमाना सबसे आसान है यही वजह है की पुतिन यह रास्ता अपना रहे हैं। यदि पुतिन इस राजनीतिक संकट के दौरान Kyrgyzstan की मदद कर सकते हैं, तो निश्चित रूप से इस क्षेत्र में रूस का प्रभाव स्थापित होगा। अब ऐसा लग रहा है कि Kyrgyzstan रूस और चीन के बीच सबसे भयंकर संघर्ष का कारण बनने वाला है और अब पुतिन तथा जिनपिंग के बीच बेहद रोमांचक मुक़ाबला देखने को मिल सकता है।

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