देश की संसद में हो रही कार्रवाई तो हम आए दिन आसानी से देख पाते हैं लेकिन अदालतों में क्या हो रहा है… इसके बारे में हमें कुछ पता नहीं चल पाता है, लेकिन अब इसको लेकर एक ऐतिहासिक कदम की ओर देश की न्यायपालिका बढ़ चुकी है। इस ऐतिहासिक कदम की शुरुआत गुजरात हाईकोर्ट से हुई है जहां कि कार्रवाई अब आम जनता के लिए यू-ट्यूब पर दिखाई जा रही है। इसे देश की न्यायपालिका और न्यायिक बदलाव की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, कोरोनावायरस की महामारी के कारण पहले से ही देश की लगभग सभी अदालतों ने सुनवाई के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की प्रक्रिया अपनाई थी। इसी बीच अब गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने हाइकोर्ट की कार्रवाई को यू-ट्यूब पर लाइव की स्वीकृति दे दी है। इसके साथ ही अब इन सभी कार्रवाइयों का लिंक हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध होगा और कोर्ट के यू-ट्यूब चैनल पर भी कार्रवाइयों के वीडियो अपलोड किए जाएंगे।
गौरतलब है कि पहले भारतीय कोर्ट में सारी कार्रवाई ब्रिटिश नीति के तहत बंद कमरों में की जाती थी। ऐसे वक्त में जब धीरे-धीरे बड़े देशों की संसदो और अदालतों को खोला जा रहा है, उस दौर में भी भारत में वही घिसे-पिटे रवैए से अंदर गुपचुप तरीके से कोर्ट की सुनवाई होती है। पहले भी इसको लेकर कई बार याचिकाएं दायर की गई लेकिन कोई खास कदम नहीं उठाए गए।
ऐसे में गुजरात हाईकोर्ट की कार्रवाई के लाइव प्रसारण को एक बड़े प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है। अगर ये प्रयोग सफल रहा तो संभावनाएं हैं कि भविष्य में देश की अन्य अदालतों में भी कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के कदम उठाए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी भी इसको लेकर सुझाव दे चुकी है कि आम लोगों को भी कोर्ट के अंदर की कार्रवाई देखने का अधिकार होना चाहिए। उसके बाद गुजरात हाईकोर्ट द्वारा उठाया गया कदम एक सकारात्मक रुख के तौर पर देखा जा रहा है।
देश की न्यायपालिका को लेकर सबसे ज्यादा सवाल रहते हैं कि इस देश में समय पर न्याय न मिलना एक सबसे बड़ी दिक्कत है जिसके चलते लोगों का न्यायपालिका से विश्वास उठता जा रहा है। ऐसे में कोर्ट की कार्रवाई का सार्वजनिक होना एक तरह से न्यायपालिका की साख बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। साथ ही ऐसे केस जिसमें कोर्ट की अंदर की बात वकीलों के जरिए हेर-फेर के साथ बाहर आती हैं, तो उन पर भी रोक लग सकती है। जनता खुद दूध-का-दूध और पानी का पानी होता हुआ अपनी आंखों से देख सकती है।
इसके साथ ही देश की अदालतों में लगतार लंबित केसों की तादाद बढ़ती जा ही है, फिलहाल देश में 3.5 करोड़ से ज्यादा केस लंबित हैं। अधिकतर केस निचली अदालतों के हैं। ऐसे में जब अदालतों की कार्रवाई सार्वजनिक होगी तो जजों पर भी ये दबाव होगा कि वो इस प्रक्रिया को रफ्तार दें, क्योंकि ऐसा न होने पर जनता के मन में न्यायपालिका के प्रति असंतोष व्याप्त होगा।
अदालतों की कार्रवाइयों को लेकर लोग हमेशा ही असमंजस में रहते हैं। इसीलिए लोगों की चप्पलें अदालतों के चक्कर काटते-काटते घिस जाती हैं, तो ऐसे अनभिज्ञ लोगों को इस कदम के जरिए कार्रवाई से जुड़ी जानकारियां मिलेंगी। शैक्षणिक क्षेत्र में भी लोगों को वकीलों की कार्यशैली का नमूना देखने को मिलेगा जो कि इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं उन्हें सहूलियत होगी। वहीं अदालती कार्रवाई में पारदर्शिता से कानून पर लोगों का भरोसा पहले से और अधिक पुख्ता होगा।