हिन्दुओं को लुभाने के लिए ममता बनर्जी की बनी बनाई योजना पर कोलकाता हाई कोर्ट ने फेरा पानी

ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के आयोजनों पर विवाद होना एक रीति बन गई है और इस पूरे विवाद की धुरी पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही रहती हैं। इस वर्ष भी दुर्गा पूजा के आयोजन को लेकर विवाद तो हुआ है लेकिन यह विवाद दिलचस्प है क्योंकि इस बार ममता को मां दुर्गा के भक्तों की आस्था याद आई है जिसे असल में चुनावी एजेंडे के रूप में देखा जा रहा है। दुर्गा पूजा कमेटियों को दी जाने वाली सरकारी रकम बढ़ाने से लेकर हाइकोर्ट का डंडा चलाने तक सारा मामला पूरी तरह से दिलचस्प हो गया है। बंगाल में दुर्गा पूजा के सहारे 2021 विधानसभा चुनावों के लिए बिछाई जा रही बिसात को अब हाइकोर्ट ने ही झटका दे दिया है।

दरअसल, पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए हाईकोर्ट ने दुर्गा पूजा के आयोजन पंडालों में लोगों के जाने पर रोक लगा दी है। इसको लेकर ये भी कहा गया है कि आयोजक संगठनों के सदस्यों के अलावा पंडालों में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा दुर्गा पूजा के मसले पर 2021 के चुनावों को  देखते हुए राजनीतिक एजेंडे के तहत काम करने वाली सीएम ममता बनर्जी को भी कोलकाता हाईकोर्ट ने एक तगड़ा झटका दे दिया है जो अब उस पर भारी पड़ेगा।

ममता सरकार प्रत्येक वर्ष की तरह ही इस बार भी प्रदेश की सभी दुर्गा पूजा कमेटियों को सरकारी पैसा देने का प्लान बना चुकी थीं। पिछले कई सालों से चल रही इस स्कीम में लगातार प्रतिवर्ष रकम बढ़ाई जा रही थी। 2018 में 10 हजार 2019 में 25,000 और इस वर्ष बंगाल सरकार ने ये रकम 50 हजार तय की थी। इस पूरे खेल को लेकर टीएमसी की प्लानिंग थी कि वो इसके जरिए 2021 के चुनावों में बहुसंख्यकों के मन में अपनी छवि सुधार सके, लेकिन उसके सारे दांव अब उल्टे पड़ गए हैं।

पश्चिम बंगाल सराकर के इस फैसले पर हाइकोर्ट के जज संजीव बनर्जी ने कहा है कि सरकार को धार्मिक कार्यों के लिए अपनी जनता का पैसा नहीं खर्च करना चाहिए, यह गलत है। बंगाल सरकार की दुर्गा पूजा बोनांजा स्कीम को लेकर कोर्ट ने कहा, दुर्गा पूजा कमेटियों को इस पूरे पैसे का 75 फीसदी खर्च पंडाल में आने वाले लोगों के लिए मास्क औऱ सैनिटाइजर की व्यवस्था के लिए करना चाहिए, वहीं 25 प्रतिशत खर्च सार्वजनिक रूप से कोरोना को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए करना चाहिए।

कोर्ट ने इसको लेकर ममता सरकार से भी सवाल पूछा है कि सरकार इस तरह के धार्मिक आयोजनों को वित्तीय अनुदान क्यों देती है इन पूरे सवालों के साथ कोर्ट ने ममता बनर्जी की दोहरी राजनीति की पोल खोल दी है। दुर्गा पूजा को लेकर बवाल तो हर साल ही होता है लेकिन अब कठघरे में ममता फिर से इसलिए हैं क्योंकि इस बार वो बहुसंख्यकों के तुष्टीकरण की योजना बना रही थी।

हमने पिछले 4 सालों में हर बार ये सुना है कि बंगाल में दुर्गा पूजा को लेकर बवाल हुआ है। माता के आगमन से लेकर विसर्जन तक, विवाद की इस आग में पश्चिम बंगाल आए दिन जलता रहता था। मोहर्रम के ताजिए निकलने के मामले में जिस तरह से ममता सरकार ने मां दुर्गा के मूर्ति विसर्जन को एक दिन आगे बढ़ाने का फरमान जारी किया था वो इस बात का सबूत था कि ममता सरकार हमेशा ही दुर्गा पूजा को कई महत्व नहीं देती थी।

बहुसंख्यकों के मन में लगातार यही छवि बनती गई कि ममता बनर्जी बहुसंख्यक विरोधी हैं। इसका सीधा फायदा बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला जब हाशिए पर खड़ी बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की लगभग आधी लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया। नुकसान के बाद अब ममता की नींद टूट चुकी है जिसके चलते ममता बनर्जी इस तरह की स्कीमों को अब ज्यादा महत्व दे रही हैं। दुर्गा पूजा से लेकर रामनवमी तक में जिस तरह से ममता सरकार हिन्दू विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाई गईं वो टीएमसी को नुकसान पहुंचा चुकी हैं। अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में ममता समझ गईं हैं कि बहुसंख्यकों को चुनावों में नजरंदाज नहीं किया जा सकता है, इसीलिए अब ममता अपनी छवि को बदलने के उद्देश्य पर काम कर रही हैं।

बहुसंख्यक विरोधी छवि बदलने की नीति पर काम करने को आतुर ममता बनर्जी की दुर्गा पूजा वाली स्कीम अब हाइकोर्ट ने फेल कर दी है। साथ ही अब ये सबक भी ममता की टीएमसी को मिल चुका है कि चुनाव को देखते हुए अचानक रणनीति बदलना उन्हें कितना मंहगा पड़ेगा।

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